अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था क्या है? भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था

अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था क्या है (What Is Space Economy?)

अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के तहत अंतरिक्ष से जुड़े महत्त्वपूर्ण और मानव के लिये लाभप्रद व्यापक गतिविधियों एवं अंतरिक्ष संसाधनों के उपयोग को शामिल किया जाता है। इनमें शामिल हैं- अंतरिक्ष का अन्वेषण करना, अंतरिक्ष से संबंधित अनुसंधान करना, अंतरिक्ष से संबंधित समझ को बेहतर बनाना, अंतरिक्ष संसाधनों का प्रबंधन और उसका उपयोग करना आदि।

भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था

CDS-IIST अनुसंधान परियोजना के अनुसार, भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था काफी विकसित हो गई है और अब यह सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.23% है।

भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के अध्ययनकर्त्ता

भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का मूल्यांकन करने का अपनी तरह का पहला अध्ययन किया गया है। यह अध्ययन सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज़ (CDS) और भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (IIST) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है।

मुख्य निष्कर्ष

भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के आकार को मापने के अपनी तरह के पहले प्रयास में, शोधकर्त्ताओं ने वित्त वर्ष 2020-21 के लिये 36,794 करोड़ (लगभग $5 बिलियन) का आँकड़ा प्राप्त किया है।

उन्होंने पाया कि जीडीपी के प्रतिशत के रूप में भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का अनुमानित आकार वर्ष 2011-12 में 0.26% से गिरकर वर्ष 2020-21 में 0.19% हो गया है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत ढाँचे को नियोजित करके शोधकर्त्ताओं ने अंतरिक्ष कार्यक्रम और उसके घटकों, अंतरिक्ष हेतु विनिर्माण, संचालन और अनुप्रयोग के लिये वार्षिक बजट की जाँच की है।

इस विकसित अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के लिये ‘अंतरिक्ष अनुप्रयोग’ प्रमुख रूप से ज़िम्मेदार है। वर्ष 2020-21 में इसका बजट 73.57% (27061 करोड़) था, इसके बाद अंतरिक्ष अभियान (8218.82 करोड़ या 22.31%) और विनिर्माण (1515.59 करोड़ या 4.12%) था।

अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का महत्त्व

जीडीपी के संबंध में: भारत का खर्च चीन, जर्मनी, इटली और जापान की तुलना में अधिक है, लेकिन अमेरिका और रूस से कम है।

CDS-IIST अनुसंधान परियोजना इस क्षेत्र को निजी खिलाड़ियों के लिये खोलने वाली केंद्र सरकार की नई नीतियों के साथ मेल खाती है।

इस नीति से निजी निवेश में वृद्धि और वैश्विक निजी अंतरिक्ष उद्योग के साथ बेहतर एकीकरण के माध्यम से क्षेत्र के आकार में वृद्धि होने की संभावना है।

वर्ष 2021 में 100 में से 47 अंतरिक्ष स्टार्टअप: वर्ष 2022 में जारी आर्थिक सर्वेक्षण से पता चला कि पिछले वर्ष अंतरिक्ष उद्योग में स्टार्टअप की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है। भारत में कुल 100 अंतरिक्ष स्टार्टअप में से लगभग 47 को वर्ष 2021 में था, जो कि वर्ष 2020 के 21 से अधिक है। शुरू किया गया

भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था से संबंधित मुद्दे

अंतरिक्ष से संबंधित गतिविधियों के लिये बजट में गिरावट: पिछले दो वर्षों में अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के आकार में कमी आई है। सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में अंतरिक्ष बजट वर्ष 2000-01 में 0.09% से गिरकर वर्ष 2011-12 में 0.05% हो गया और तब से कमोबेश उस स्तर पर बना हुआ है।

बाधाएँ: इसरो के पास नागरिक, वाणिज्यिक ज़रूरतों और सैन्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये काफी अधिक उपग्रहों को लॉन्च करने में वैज्ञानिक, तकनीकी, बुनियादी ढाँचा और बजट संबंधी बाधाएँ हैं।

घाटाः इसरो के पास तकनीकी क्षमता और जनशक्ति दोनों में कमी है जो इसकी उत्पादन शक्ति पर बाधा डालते हैं।

वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धाः विशेष रूप से छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिये जो एक विस्तारित बाज़ार है। एलन मस्क के स्वामित्व वाले स्पेसएक्स फाल्कन 9 को व्यापक रूप से इसरो के कार्यक्षेत्र ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) के लिये एक संभावित गंभीर खतरा माना जाता है।

भारत द्वारा अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये उठाए गए कदम

भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (Indian National Space Promotion and Authorization Centre: IN- SPACE) : यह अंतरिक्ष विभाग के तहत गठित एक स्वतंत्र नोडल एजेंसी है। इसका कार्य अंतरिक्ष संबंधी गतिविधियों को अनुमति प्रदान करना है।

न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) : इसकी स्थापना भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की बढ़ती मांगों को पूरा करने और उभरते वैश्विक अंतरिक्ष बाजार का वाणिज्यिक रूप से दोहन करने के उद्देश्य से की गई है।

हाल ही में पारंपरिक उपग्रह संचार और सुदूर संवेदन क्षेत्रों को उदार बनाने के लिये क्रमशः स्पेसकॉम और स्पेस आर. एस. नीतियों का मसौदा जारी किया गया है।

अंतरिक्ष क्षेत्र से संबंधित दो स्टार्ट-अप्स अग्निकुल और स्काईरूट की स्थापना की गई है। इनके साथ अंतरिक्ष विभाग ने एक फ्रेमवर्क समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं। इसके तहत इन्हें स्पेस लॉन्च व्हीकल्स की उप- प्रणाली और प्रणाली के विकास एवं टेस्टिंग के लिये इसरो की सुविधाओं एवं विशेषज्ञता तक पहुँच प्रदान की जाएगी।

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