मिश्र की प्राचीन सभ्यता अथवा नील घाटी की सभ्यता (Ancient Civilization of Egypt or Nile Valley Civilization)

प्राक्कथन- बहुत से विद्वान और इतिहासकार मित्र की सभ्यता को विश्व की अन्य प्राचीन सभ्यताओं की अपेक्षा प्राथमिकता देते हैं और विश्व के इतिहास का प्रारम्भ far की सभ्यता से करते है। इसके दो प्रमुख कारण हैं—पहला कारण तो यह है कि मिस्र की सभ्यता बहुत पुरानी है और दूसरा कारण यह कि मि की प्राचीन सभ्यता के अनेक अवशेष पिरामिड, ममियाँ (मसालों से सुरक्षित शद) और आदि जा भी मौजूद हैं। विख्यात इतिहासकार कोनाई ऐपिस (Conard Appel) ने लिखा है कि काल में मिश्र के लोगों ने विश्य के लोगों को जो बहुत सी बातें सिखाई, उन बातों में यद्यपि अब बहुत सुधार और उप्रति हो गई है, किन्तु मिश्रवासियों ने ही सबसे पहले उन बातों की कल्पना की थी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि विश्व में मिश्र के लोगों ने ही सर्वप्रथम एक संगठित राष्ट्र के रूप में उस मार्ग पर ना शुरू किया था, जिसे हम सभ्यता कहते हैं।”

जब हम मिश्र की प्राचीन सभ्यता, जो कि नील नदी की घाटी में विकसित हुई थी, का अध्ययन करेंगे।

1. मिश्र को सभ्यता-

नील नदी की देन (Civilization of Egypt As a legacy of Nile River)” मिश्र का देश अफ्रीका महाद्वीप के उत्तर-पूर्व में स्थित है। इसके उत्तर में भूमध्य सागर, पूर्व में लाल सागर तथा सिनाई का महस्थल, पश्चिम मे सहारा का रेगिस्तान और दक्षिण में पने वन है। नील नदी देश के पूर्वी भाग में बहती है। इसकी तीन सहायक नदियां नीला मोल, बतबारा और श्वेत नील हैं। इस प्रकार नील नदी 50 किलोमीटर चौड़ी और 800 किलोमीटर लम्बी भूमि को उपजाऊ बनाती है। मिश्र को नील नदी की देन अथवा “नील नदी की पुत्री‘ कहा जाता है। नील नदी ने मिश्र को सिचाई के जल भण्डार, यातायात के साधन तथा उपजाऊ भूमि प्रदान की है। इसीलिए नील नदी की घाटी में मिश्र को सभ्यता का बड़ी तेजी के साथ विकास हुआ ।

2. मिश्र को सभ्यता के स्रोत (Sources of the Civilization of Egypt)—

अधिकांश विद्वान मिश्र की सम्पता को अन्य प्राचीन सभ्यताओं की अपेक्षा प्राथमिकता देते हैं। इसका कारण यह है कि इस सभ्यता के ऐतिहासिक खोत इतनी अधिक मात्रा में उपलब्ध होते हैं कि उतने किसी अन्य सभ्यता के नहीं पाये जाते हैं । मिश्र के विशाल पिरामिड, स्फिक्स (मनुष्य के मुख और पशु के शरीर वाली मूर्तियां), मन्दिर, समाधियाँ, ममी, और अभिलेख आज भी सुरक्षित हैं और मिश्र की प्राचीन सभ्यता के गौरव की याद दिलाते हुए संसार को आश्चर्य चकित कर रहे हैं

3. मिश्र की सभ्यता का इतिहास (History of the Civilization of Egypt)

विद्वानों का मत है कि पूर्व पाषाण काल में महस्थल के गर्म भागों में घूमने वाले लोग नील नदी के उपजाऊ प्रदेशों की ओर आकर्षित हुए। नवपाषाण काल में यहाँ खेती का रिवाज बढा और यह लोग कृषक बनकर एक स्थिर जीवन व्यतीत करने लगे । धीरे-धीरे ये लोग परिवार, फिर कबीले और अन्त में राज्य के रूप में बस गये। 4300 वर्ष ईसा पूर्व के लगभग मिश्र में राजवंश की स्थापना हुई। इसके बाद 3400 वर्ष ईसा पूर्व से हमें मिश्र का क्रमबद्ध इतिहास उपलब्ध होता है। इतिहासकारों का मत है कि 3400 वर्ष ईसा पूर्व से लेकर 332 वर्ष ईसा पूर्व तक, जब सिकन्दर महान ने मित्र को अपने अधीन किया, लगभग 31 राजवंश मिश्र पर राज्य कर चुके थे । संक्षेप में मिश्र की सभ्यता के इतिहास को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है—

पिरामिड युग (3400 से 2500 वर्ष ईसा पूर्व तक)-

मिश्र का ऐतिहासिक युग 3400 वर्ष ईसा पूर्व से प्रारम्भ होता है। इस समय भी के शक्तिशाली शासक मेनीज (Menes) ने उत्तरी मिश्र को जीत कर एक विशाल राज्य की स्थाप की और मेम्फिस (Memphis ) को उसने अपनी राजधानी बनाया। इस समय से मिश्र की सभ्यता तेजी के साथ विकसित होने लगी। मेनीक के बाद चार राजवंशों ने सिनाई, फिलीस्तीन, फोनेशिया और सीरिया आदि को जीत कर मिश्र के साम्राज्य पर निरंकुश शासन किया। ये शासक सूर्य पुत्र थे और देवी शक्ति के स्वामी माने जाते थे। इन्हें फराओ (Pharaohs) या ‘फरउन’ कहा जाता था। इस युग में कला, भवन निर्माण और विज्ञान आदि की आश्चर्यजनक उन्नति हुई खुफु (Khufu) नामक शासक ने इसी काल में विश्वविख्यात भीजे के पिरामिड का निर्माण करवाया। इस काल में अनेक विशाल रिमित स्तुन, बांध तथा महरें बनी फरोजा शासकों ने लगभग 700 वर्षों तक शासन किया और 2500 वर्ष ईसा पूर्व के लगभग राज्य की बागडोर सामन्तों के हाथ में आ गई ।

(2) सामन्त युग (2500 – 1580 वर्ष ईसा पूर्व तक) –

यह युग मिश्र के इतिहास में अशान्ति, अराजकता, अध्यवस्था और विदेशों आक्रमणों का युग था । इस काल में अनेक सामन्तों ने अपने छोटे-छोटे राज्य स्थापित कर लिये और वे आपस में लड़ने लगे, जिससे देश में अराजकता फैल गई। इसका लाभ उठाकर लगभग 2000 वर्ष ईसा पूर्व में हिक्सोस (Hy- ksos) नामक विदेशी जाति ने मिश्र पर आक्रमण कर दिया और मिश्र के अधिकांश भाग पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया । इन लोगों ने मिश्र में घोड़ों तथा रथों का प्रचलन किया। हिक्सोस शासक। को ‘गड़रिये शासक’ की संज्ञा दी गई । 400 वर्षों तक गुलाम रहने के बाद मिश्र वालों ने विद्रोह कर दिया और 1580 वर्ष ईसा पूर्व के लगभग हेक्सोस जाति को हराकर अपने देश से निकाल दिया। इसके बाद मिश्र में साम्राज्य युग का प्रारम्भ हुआ ।

(3) सामाज्य युग (1580 – 1150 वर्ष ईसा पूर्व तक) –

यह युग मिश्र की सभ्यता का स्वर्ण युग माना जाता है । इस युग में थटमोस प्रथम (Thangmnose I) ने हेक्सोस जाति को पराजित कर मिश्र में एक संगठित साम्राज्य की स्थापना की और दक्षिण में स्थित थीबिज (Thebes) को अपनी राजधानी बनाया।

थटमोस प्रथम की मृत्यु के बाद उसकी पुत्री हेतशेप्तुस (Hatshepset) संसार की पहली महिला शासिका बनी, जिसने 1485 से 1472 वर्ष ईसा पूर्व तक शासन किया। वह पुरुषों के समान वीर थी और पुरुषों के समान ही कपड़े पहनती थी । उसके शासन काल में मिश्र में अनेक भव्य मन्दिरों का निर्माण हुआ, जिसमें थीबिज का लक्सौर का मन्दिर अति प्रसिद्ध है। उसने कारनाक के मन्दिर की भी मरम्मत करवाई और व्यापार को विशेष प्रोत्साहन दिया। मृत्यु के बाद वह सूर्य देवी के नाम से पूजी जाने लगी ।

इस महारानी की मृत्यु के बाद थटमोस तृतीय ने शासन की बागडोर संभाली और उसने लगभग 32 वर्ष (1472-1450 वर्ष ईसा पूर्व) तक राज्य किया। यह एक महान विजेता था। इसने नील से लेकर हेरात तक और फिलिस्तीन, सीरिया, फिनोशिया, अलासिया तथा सूडान तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया । इसके काल में मिश्र की कलाओं में अभूतपूर्व उन्नति हुई ।

थटमोस तृतीय के बाद व्याग्रहोतेय तृतीय (Amenhotop III) बालक बना, जिसने 1411 से 1373 ईसा पूर्व तक शासन किया। उसके समय में मिश्र की सभ्यता व संस्कृति अपने विकास की चरम सीमा पर थी । इतिहासकार इसे रजत सम्राट कर पुकारते है।

आमेनहोतेय तृतीय के बाद उसका पुत्र आमेनहोतेय चतुर्थ 1345 ईसा पूर्व में राजा बना। उसने 1675 से 1358 ईसा पूर्व तक राज्य किया। वह एक समान व धर्म मुबारक था, जिसने धर्म के क्षेत्र में फान्तिकारी सुधार करने की चेष्टा की। उसने अनेक प्रकार के देवी देवतानों के स्थान पर केवल एक देवता की पूजा को प्रचलित करने का प्रयास किया, जिसे ‘एटन’ (Aton) या ‘सूर्य देवता की संज्ञा दी गई। उसने अपनी राजधानी पीविज के स्थान पर तैले सरांना (Telle Amarna) को बनायी, परन्तु वह अपने हर कार्य में असफल रहा । इतिहासकार उसकी तुलना भारत के मुस्लिम सम्राट युहम्मद बिन से करते हैं। उसके काल में कला और विज्ञान की भारी क्षति हुई। इस यथा की समाधि में 1923 की खुदाई में मिली है।

इस राजा की मृत्यु के बाद उसके दामाद और उत्तराधिकारी तूतेंनखामेज (Tutenkhames) ने उसके सभी सुधारों को रद्द कर दिया और फिर से यीबिज को अपनी राजधानी बनाया। इसके बाद मिश्र में 19 राजवंश ने 1350 से 1150 ईसा पूर्व तक शासन किया। इस वंस का सबसे शक्तिशाली राजा रेमेशिन द्वितीय (Ramases II) पा, जिसने लगभग 67 वर्ष तक (1300 -1233 ईसा पूर्व) राज्य किया । उसके काल में कला की विशेष उन्नति हुई। उसने 10 फीट ऊंची और 25 हजार मन वजन को अपनी एक विशाल मूर्ति बनवायी और कारनक का विशाल हाल भी बनवाया।

इसकी मृत्यु के बाद मिश्र में घरेलू संघर्ष चल पड़ा और विदेशी आक्रमण होने लगे । 1100 ईसा पूर्व में बसोरिया ने मिश्र के कई भागों पर अधिकार कर लिया। 652 ईसा पूर्व में ईरानियों ने मित्र को जीत लिया और 332 ईसा पूर्व में ‘सिकन्दर महान’ ने ईरानियों को हराकर मिश्र को अपने अधीन कर लिया। बाद में मित्र रोमन साम्राज्य का बंग बन गया और अनेक शताब्दियों तक मिश्र को दासता का जीवन व्यतीत करना पड़ा।

4. मिश्र की सभ्यता की विशेषताएँ (Salient Features of the Civilization of the Egypt)—

मिश्र की सभ्यता की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-

(अ) राजनीतिक जीवन-मिश्र के प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी राजा होता था, जिसे ‘का ‘फ़रऊन’ कहा जाता था। उसे व्यापक शक्तियां प्राप्त थीं। वह निरंकुश और देवी शक्तियों का स्वामी होता था। वही सर्वोच्च सेनापति, कानून बनाने वाला, न्यायाधीश और धार्मिक नेता होता था। लोग उसकी देवता के समात पूजा करते थे।

फरोआ शासक निरंकुश होते हुए भी अपनी प्रजा के सुख का विशेष ध्यान रखते थे। लेकिन कुछ शासक बड़े कठोर और अत्याचारी भी थे ।

‘शासक की सहायता के लिए अनेक मभी होते थे, जो शासन कार्य में उसको सहयोग तथा परामर्श देते । लेकिन उनके परामर्श को मानना या न माथना राजा की इच्छा पर निर्भर था।

सारा साम्राज्य बनेक प्रान्तों में बंटा हुआ था, जिनके अधिकारी या राज्यपाल राजा द्वारा नियुक्त किये बाते थे। प्रान्तों की शासन व्यवस्था पर राधा का पूर्ण नियंत्रण होता था ।

राजा का दरबार ही सर्वोज्य न्यायालय था । मुकदमों के निर्णय कानून के अनुसार किये जाते थे। जिसने कानून में नैतिकता को विशेष स्थान प्राप्त था । न्याय निष्पक्ष होता था और कठोर दण्ड दिये जाते थे ।

मिश्र में सेना दो प्रकार की होती थी। स्थायी सेगा सम्राट के अधीन रहती थी और अस्थायी सेना प्रान्तों में रहा करती थी, जिसे आवश्यकता पड़ने पर प्रयोग में लाया जाता था ।

इस समय राज्य की आय के अनेक साधन थे, जिनमें सिचाई कर, चुंगी तथा जुर्माना आदि प्रमुख थे इस धन का व्यय अधिकतर विशाल मकबरे, भव्य मन्दिर आदि बनवाने तथा राजा के ऐश्वर्य पर होता था ।

(अ) सामाजिक जीवन – मिश्र का सामाजिक जीवन निम्न प्रकार का था –

(1) उच्च वर्ग- मिश्र का समाज तीन वर्गों उच्च, मध्यम तथा निम्न में बंटा हुआ था। उच्च वर्ग में रीवा, भायन्स, दरवारी तथा पुरोहित आदि शामिल थे। इस वर्ग का जीवन बड़ा विलासमय था । उनका राज्य के विशाल भू-भाग पर अधिकार था और इन्हें अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। ये बड़े-बड़े महलों तथा सुन्दर भववों में रहते थे । इनका जीवन स्तर उच्चकोटि का था।

(2) मध्यम वर्ग— इस वर्ग में व्यापारी, व्यवसायी तथा सरकारी नौकर आदि शामिल थे। इनका जीवन परिश्रम का जीवन था । ये लोग अच्छे शित्यकार और व्यवसायी थे।

(3) निम्न वर्ग- इस वर्ग में किसान, मजबूर व दास आते थे । इनकी दशा अच्छी नहीं थी और उनसे हर प्रकार की बेगार ली जाती थी । बड़े-बड़े पिरामिड इन्हीं लोगों के द्वारा बनाये गये थे।

(4) स्त्रियों की दशा- मिश्र के समाज में स्त्रियों को विशेष स्थान प्राप्त था। उन्हें पुरुषों के समान सामाजिक और राजनीतिक अधिकार प्राप्त थे। इस समय बहु विवाह प्रचलित था और पुरुष तथा स्त्री विवाह विच्छेद भी करते थे । इख्नातन की महारानी एक गौरव पूर्ण महिला थीं। ‘हेतशेप्सुत’ इस काल ही नहीं सारे संसार की पहली महिला साम्राज्ञी थी। मिश्र की स्त्रियाँ सौंदर्य एवं कला की विशेष प्रेमी थीं और अनेक प्रकार की शृंगार की वस्तुओं का प्रयोग करती थीं। महारानियों की ममियों को देखने से पता चलता है कि उनका जीवन कितना ऐश्वर्य पूर्ण था।

(5) रहन-सहन— इस काल में उच्च वर्ग का जीवन सुखी और वैभवपूर्ण था। वे लोग सोने-चांदी के आभूषण बहुत पसन्द करते थे । अंगूर तथा जौ को शराब का बहुतायत से प्रयोग होता था। खान-पान में छुरी कांटे तथा चमचे बादि का प्रयोग किया जाता था। मिश्री साहित्य में 40 प्रकार के मांस पदार्थों और 25 हजार पेय पदार्थों का उल्लेख मिलता है । मध्यम वर्ग का रहन-सहन साधारण वा और निम्न वर्ग के रहन-सहन का स्तर काफी गिरा हुआ था।

(6) मनोरंजन के साधन- मिश्री लोगों को स्पोहार और उत्सव मनाने का बड़ा शौक था। इस सम ‘ईश देवी’, दीपों का त्यौहार, ‘सत्य के देवता’ का त्योहार तथा ‘मोल वेबसा’ का स्योहार आदि बड़ी धूम-वा से मनाये जाते थे । खेल-कूद, कुश्ती, बंगल, व्यायाम, गायन-वादन, पांसा बेलना, शिकार, स्नान व किश्ती चलाना आदि मिश्र लोगों के मनोरंजन के साधन थे।

(7) निवास स्थान- इस समय चुने तथा पत्थर के मकान बनाये जाते य । दीवारों पर चित्रकारी की जाती थी । अमीरों के भवन फर्नीचरों, सुन्दर चटाइयों, कालीनों तथा गद्देदारों से सज्जत होते थे। मकान प्रायः एक कतार में और कई मंजिलों के बने होते थे।

(स) आर्थिक जीवन-

(१) कृषि — मिश्र के लोगों का मुख्य व्यवसाय, या सेती करता था। खेत में दास लोग काम करते थे । इस समय गेहूं, मटर, चुकन्दर, कंपास, अंजीर बबूर, तथा असून ‘आदि की खेती की जाती थी। खेती के लिए, बकरियों, सांडों तथा बहों का प्रयोग किया जाता वा । नील नदी पर अनेक बाँध बनाये गये थे, जिनसे अनेक नहरें निकाली गई थीं। इन नहरों से लेख में की जाती थी। भूमि को नापने का पहत्व था और सरकार भूमि कर भी वसूल करती थी । इस काम में हल का आविष्कार हो चुका था।

(2) उद्योग-धन्धे – पशु पालन मिश्र का दूसरा प्रमुख व्यवसाय था। मिश्री लोग पत्थर काटने, नवन बनाने, आभूषण बनाने तथा कपड़ा बुनने की कला निपुण थे। वे कागज और जहाज बनाना भी जानते थे । शीशे का उद्योग भी प्रचलित था। फराओं शासकों के मकबरों में मिली असंख्य वस्तुयें इस काल के उद्योग-धन्धों पर गहरा प्रकाश डालती हैं ।

(3) व्यापार- मिश्र का व्यापार भारत, बेबीलोन, सुडान तथा दूर-दूर के देशों से होता था। दूसरे देशों से यहाँ सोना, मोती, हाथी दाँत, तांबा-लकड़ी व शृंगार की वस्तुयें आती थीं और उन्हें गेहूँ, जौ, खाद्य पदार्थ तथा कांच के सामान आदि भेजे जाते थे । 1600 ईसा पूर्व रूम सागर और काला सागर को मिलाती हुई एक नहर बनायी गई थी। इस समय व्यापार का माध्यम वस्तु विनिमय था । बाद में सोने-चाँदी के गोलाकार टुकड़े भी मुद्रा के रूप में प्रयोग किये जाने लगे थे ।

(घ) धार्मिक जीवन — मिश्र के निवासी बहु देवतावादी थे । लगभग प्रत्येक नगर व ग्राम का अपना- अपना, देवता होता था । इन देवी देवताओं की संख्या २२०० के लगभग थी। इनमें ‘रा’ (Ra), ‘ओसीरिस’ (Osiris), ‘आइसिस’ (Isis), और ‘होरस’ (Horus) आदि देवताओं की सर्वत्र पूजा की जाती थी। ‘रा’ को सूर्य देवता, ‘ओसीरिस’ को नील नदी का देवता माना जाता था। आइसिस इसी देवता की पत्नी और होरस पुत्र था। आइसिस को धरती की देवी माना जाता था। इन देवी-देवताओं की पूजा विभिन्न मन्दिरों में भिन्न- भिन्न तरीके से की जाती थी । मिश्रवासी पशुओं की पूजा करते थे । स्फिक्स (मनुष्य का मुख और पशु के शरीर वाली मूर्तियाँ) इस बात का उदाहरण हैं ।

मिश्रवासी पुर्नजन्म में विश्वास रखते थे । इसीलिए वे मसालों को लगाकर मृतकों के शरीरों को सुरक्षित रखते थे । मिश्र के मकबरों तथा पिरामिडों में अब भी ऐसी बहुत सी ममियाँ मिलती हैं। इस समय मृतकों के खाने-पीने की वस्तुयें, वस्त्र व अन्य वस्तुयें भी रख दी जाती थीं ।

धर्म के क्षेत्र में सम्राट शामेनहोलेप चतुर्थ (इसनातन) ने मित्र में एsserene अर्थात ‘एटन’ (सूर्य देवता) नामक एक ही देवता की पूजा को प्रचलित करने का प्रयास किया, परन्तु पुरोहितों व पुजारियों के घोर विरोध के कारण वह असफल रहा । मिश्र के वार्षिक जीवन में पुरोहितों व पुजारियों को विशेष स्थान प्राप्त था ।

(घ) मिश्र की कलायें-चथव निर्माण कला, मूर्ति कला तथा विकला के क्षेत्र में मित्र के लोगों मैं आश्चर्यजनक उन्नति की थी।

(१) भवन निर्माण कला- गीजे का पिरामिड-मिश्रवासी भवन निर्माण कला में दक्ष थे। उन्होंने विशाल पिरामिड, भव्य मंदिरों तथा राजभवनो का निर्माण किया। इनमें मिश्र के पिरामिड अब भी संसार को आश्चर्य चकित कर रहे हैं। मित्र के फरोगा शासकों ने इन पिरामिडों (मकबरों का निर्माण करवाया इनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध कर पिरामिड है जो लगभग 13 एकड़ भूमि पर बना हुआ है। इसकी लम्बाई 15 फुट तथा ऊचाई 484 फुट है। इसमें 2-23टन के 23 लाख पत्थर लगे हुए हैं। इसे मित्र के सम्राट खुफु (Khufu) ने 2000 ईसा पूर्व के लगभग बनवाया था। यूनानी इतिहासकार ‘रोबोट’ के अनुसार इस बकेले पिरामिड को तैयार करने में 1 लाख व्यक्तियों को 20 वर्ष के लगभग समय लगा था। इस पिरामिड के पत्थरों के जोड़ों में एक बाल की भी जगह नहीं हैं।”

मिश्रवासियों ने लगभग 70 पिरामिडों का निर्माण किया था। इनमें बनी सुरंगें, तथा अन्य कलात्मक कारीनदी आाज के लोगों के लिए आच का विषय है ।

मिश्र के लोगों वे अनेक विशाल भव्य मन्दिरों का भी निर्माण किया, जिनमें काराक का मन्दिर अपनी विशालता और भव्यता के लिए बारे संसार में सिद्ध हैं। कहा जाता है कि इस मन्दिर के निर्माण में 2000 वर्ष लगे थे । इसके निर्माण में अनेक शासकों ने योगदान दिया था। इस मन्दिर में 335 फुट लम्बा और 170 फुट चौड़ा एक ऊंचे स्तन्धों वाला ऐसा हाल है, जिससे बड़ा हाल शायद संसार भर में कहीं नहीं है । यह हाल 136 स्वम्मों पर खड़ा है। इन स्तम्भों की संख्या 19 है और इनकी ऊंचाई लगभग 76 फुट है । दनका थाकार इतना बड़ा है कि उनके शिखर पर 100 जादमी एक साथ बड़ी आसानी से बड़े हो सकते हैं।

इस मन्दिर की दीवारों व स्तम्भों पर की गई चित्रकारी बड़ी सजीव और आकर्षक है। इस मन्दिर के बाहर बाज भी मिश्र की पुरानी राजधानी थीबिल के निकट देखने को मिलते हैं।

इस मन्दिर के अतिरिक्त हेलियोपोलिस ( Helio-polis ) में ”देवता मन्दिर, रजत सम्राट ओमनहोतय तृतीय द्वारा निर्मित लक्खोर का मन्दिर तथा रेमेसिज द्वितीय द्वारा बनवाया गया. अबु सिम्बल का मन्दिर अपनी भव्यता तथा सोने, चांदी एवं हीरे-जवाहरात के उपकरणों के कारण सारे संसार में प्रसिद्ध थे ।

(2) मूर्ति कला-मूर्तिकला के क्षेत्र में भी far ने आश्चर्यजनक उन्नति की। मिश्र के लोगों द्वारा निर्मित फरामों की ६० से ६० फुट तक ऊंची पत्थर की मूर्तियों को देखकर बाज लोग दंग रह जाते हैं। इन मूर्तियों को एक ही पत्थर को काट कर बनाया गया है । गौधे के पिरामिड के निकट स्थित स्फिक्स (Sphinx) की मूर्ति सारे संसार में प्रसिद्ध है । यह 160 फुट लम्बी और 70 फुट चौड़ी होने के कारण मीलों दूर से दिखाई पड़ती है । इसका शरीर तो सिंह का है, परन्तु मुख खेको नामक फरोआ शासक का है। कुछ राजाओं व रानियों की मूर्तियाँ भी इस समय बनायी गई, जो आज भी प्राप्त होती हैं। इनमें इख्नातन और उसकी रानी नफरतीती (Nefertiti) की मूर्तियाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं ।

(3) चित्रकला – मिश्र के मन्दिरों, पिरामिडों तथा भवनों की दीवारों पर बनाये गये मनुष्य, पशु, पक्षी और प्रकृति सौन्दर्य के चित्र अपनी कलात्मकता व सजीवता के लिए प्रसिद्ध हैं। इन चित्रों से प्राचीन मिश्र शसियों के सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक जीवन पर अच्छा प्रकाश पड़ता है ।

(4) ममी बनाने की कला- मिश्र के लोग ममी बनाने या मृतक शरीरों को सुरक्षित रखने की कला में दक्ष थे। प्राचीन मिश्र के सम्राटों या अन्य महान व्यक्तियों के शवों को अनेक प्रकार के तेल मसाले, वाइयों तथा अन्य पदार्थों की सहायता से सुरक्षित रखा जाता था । 1892 में मिली पहली ममी आज भी लन्दन के अजायबघर में सुरक्षित रखी हुई हैं। मिश्र के लोग ममियों को सन्दूक में बन्द कर देते थे और उस ममी या सम्राट के जीवन की पूरी कहानी लिख देते थे ।

(5) लेखन कला- कुछ विद्वानों का अनुमान है कि लिखने की कला का प्रारम्भ सर्वप्रथम मिश्र में ही हुआ। लगभग 300 ईसा पूर्व तक मिश्र के निवासियों ने लिखने की कला में दक्षता आय कर ली थी। मारम्भ में उन्होंने चित्रलिपि का सहारा लिया और के लिए चित्रों का प्रयोग किया। ऐसे कोई २ हजार चित्र सिन्ह में जो आज भी मित्र के स्मारकों पर अंकित मिलते हैं। बाद में उन्होंने 24 वर्षों की वर्णमाला का आविष्कार किया। स्वरों का प्रयोग अभी शुरू नहीं हुआ था। मिश्र देश की यह मूर्ति लिखावट (Hieroglyph) संसार की. सबसे पहली लिखावट मानी जाती है । सन्देहात्मक अर्थी को स्पष्ट करने के लिये मिश्रवासी छोटे-छोटे चित्र भी बनाते थे ।

प्रारम्भ में मिश्रबासी पत्थरों या मकानों की दीवारों पर खुदाई करके लिखते थे। फिर वे मुलायम मिट्टी, मोम की कमी सल्लियों या शीशे पर लिखने लगे। बाद में पेपिरस, जो नील पाटी में या जाने बाला एक प्रकार का सरकण्डा था, प्रयोग में लाया जाने गया। इसी विरस शब्द से पेपर शब्द बना है। कागज के ये तख्ते लिखे जाने के बाद गोल मुट्ठों की शक्ल में लपेट लिये जाते थे। लग्न के अजायबघर 135 फुट लम्बा और 17 फुट चौड़ा कागज का एक टुकड़ा रखा बा है। मिश्र के निवासी एक नुकीले सरकंडे की कलम का प्रयोग करते थे। वनस्पति, गोंद, काजल और पानी का गाढ़ा घोल स्याही का काम देता था । सन् 1822 में शम्पोलियन (Champollion) नामक कांसीसी ने मिश्री लिपि के रहस्य को जान लिया और तभी से मिश्र की सभ्यता प्रकाश में आने लगी

(द) शिक्षा और साहित्य —

(१) शिक्षा- मिश्र के मन्दिरों में पुरोहितों द्वारा बच्चों को शिक्षा दो जाती थी। शिक्षा के लिए सरकार आर्थिक सहायता देती थी। इस समय गणित, इतिहास, खगोल शास्त्र, ज्योतिष, धर्म तथा राजनीतिक शिक्षा विशेष रूप से दी जाती थी। विज्ञान की शिक्षा के लिए प्रयोग शालाओं की भी व्यवस्था थी ।

(२) साहित्य – लिपि के आविष्कार के कारण मिश्र में साहित्य की भी काफी प्रगति हुई। धन के कफनों के अन्दर कुछ शिक्षायें और उपदेश लिखने का बहुत रिवाज थाळी इनमें बताया गया है कि मृत्यु के बाद आत्मा को कैसे बुरी आत्माओं से बचकर निकलना चाहिए। ये शिक्षायें बाद में ‘भूत आत्माओं की पुस्तक (Book of Dead) के नाम से प्रसिद्ध हुई । ये लेख साहित्य की दृष्टि से उच्च कोटि के थे । इन लेखों में धार्मिक विक्य, प्रेम गीत, कवितायें, स्तुतियां, वंशावलियाँ तथा नीति के उपदेश मिले हैं। इनके अतिरिक्त मिश्र में विज्ञान, गणित, आयुर्वेद तथा धर्म के क्षेत्र में बहुत सी पुस्तकें तैयार की गई। लेकिन मिश्र में नाट्य शास्त्र का अधिक विकास नहीं हुआ था ।

(य) गणित, विज्ञान और ज्योतिष मिश्रवासियों ने गणित, विशेष कर रेखागणित का काफी शान प्राप्त कर लिया था, जिसका प्रयोग उन्होंने सरलतापूर्वक महान पिरामिडों तथा विशाल मन्दिरों को बनाने में किया। उन्होंने ‘दशमलव प्रणाली’ का आविष्कार किया तथा घृणा और भाम करने की खोज की। उन्होंने एक सौ, हजार, लाख और दस लाख के लिए विशेष चिन्हों का प्रयोग किया ।

इसी प्रकार उन्होंने औषधि विज्ञान में भी दक्षता प्राप्त की। उनकी पुस्तकों में हजारों बीमारियों व उद के इलाज के नुस्खों का उल्लेख मिलता है। वे शवों को मसाला आदि लगाकर सुरक्षित रखने की कला जानते  जो कि आज भी चिकित्सा क्षेत्र में एक आश्चर्य का विषय मानी जाती है।

मिश्र के लोगों को ज्योतिष शास्त्र का भी काफी ज्ञान था। उन्होंने बूष बड़ी, तारों की गति का पता लगाने वाले कम, सौर जन्मी आदि का आविष्कार किया। वे वर्षा, नूकम्प आदि घटनाओं की भविष्यवाणी भी किया करते थे। उन्हें सूर्य, चन्द्रमा तथा अन्य नक्षत्रों का भी काफी ज्ञान था। वे 365 दिन के वर्ष में शिम मनोरंजन के मानकर प्रत्येक महीने में 30 दिन रखते थे ।

उस समय मौसमों की गणना में नील नदी में पानी चढ़ने, नील नदी के पानी में कमी होने और फसल के एकने के आधार पर करते थे। प्रारम्भ में वे किसी प्रमुख घटना से बधं की गणना करते थे, बाद में उन्होंने वर्षको गणना विभिन्न सम्राटों के राज्यकाल के प्रारम्भ से करनी शुरू कर दी थी।

5. विश्व की सभ्यता की रेन (Legacy of the Civilization of Egypt ) — मिश्र की प्राचीर यता संसार की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक थी। संक्षेप में इस सभ्यता की प्रमुख देनें इस प्रकार रहीं-

  • (1) मिश्रवासियों ने सबसे पहले मानव सभ्यता की ओर पग बढ़ाया।
  • (2) उन्होंने सर्वप्रथम एक संगठित शासन की नींव डाली।
  • (3) भवन निर्माण के क्षेत्र में उनकी सफलतायें महान हैं। मिश्र के पिरामिड और विशाल मंदिर आदि आज भी संसार को आश्चर्यचकित कर रहे हैं ।
  • (4) स्फिक्स जैसी विशालकाय मूर्तियां मिश्र की सभ्यता की विश्व को अमूल्य देन हैं ।
  • (5) मृतकों के शरीरों को मनी के रूप में सुरक्षित रखना मिश्र की सभ्यता का एक आवत्रजनक दाहरण है। ..
  • (6) मिश्र की फर्नीचर निर्माण कला आज भी हमें आश्चर्य में डाल देती है।
  • (7) संसार में सबसे पहली वर्णमाला, स्याही व कला का आविष्कार करने का श्रेय मिश्र के लोगों को ही प्राप्त है।
  • (8) पेपरस से पेपर (कागज) बनाने का सर्वप्रथम प्रयत्न मिश्रवासियों ने ही किया ।
  • (9) उन्होने ही सबसे पहले साहित्य की रचना की ।
  • (10) उन्होंने ही बशमलव प्रणाली, धूपघड़ी, सौर जन्त्री तथा कैलेण्डर का सर्वप्रथम अविष्कार किया।

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