हमारे देश की संस्कृति संसार के सभी देशों की संस्कृतियों से अधिक प्राचीन है। विश्व की अन्य संस्कृतियों की अपेक्षा हमारी संस्कृति की कुछ विशिष्ट विशेषतायें हैं। इसीलिये भारतीय संस्कृति को विश्व के इतिहास में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
संस्कृति शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के ‘कृ’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ सम्यक रूप से कार्य करना है। इस अर्थ में मनुष्य अपनी बुद्धि का प्रयोग कर विचार और कर्म के क्षेत्र में जो सृजन करता है उसी को संस्कृति कहा जाता है। संस्कृति किसी व्यक्ति विशेष के किये गये व्यक्तिगत प्रयत्नों का परिणाम नहीं है, वरन इसका निर्माण तथा विकास व्यक्ति समूह अथवा विभिन्न व्यक्तियों के विभिन्न कालों में किये गये प्रयत्नों से होता है।
कतिपय विद्वानों ने संस्कृति को निम्नलिखित शब्दों में परिभाषित किया है-
(I) पं० जवाहरलाल नेहरु के अनुसार- “विश्व भर में जो अच्छी या सर्वोत्तम बातें कही गयी हैं या जानी गयी हैं, उनसे अपने आपको परिचित कराना ही संस्कृति है।”
(II) डॉ० राधाकृष्णन के अनुसार- “संस्कृति विवेक बुद्धि द्वारा जोवन को भली प्रकार जान लेने का नाम है।”
(II) डॉ० रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के अनुसार- “संस्कृति जीवन का एक तरीका है।”
(IV) डॉ० आरनोल्ड के अनुसार- “संस्कृति पूर्णता का अध्ययन, सौन्दर्य एवं प्रकाश की खोज है।”
(V) इलियट के अनुसार- “ज्ञानार्जन, शिष्ट व्यवहार, कला आदि के अतिरिक्त किसी राष्ट्र एवं जाति की वे सम्पूर्ण क्रियायें जो उसे विशिष्टता प्रदान करती हैं, उनकी संस्कृति के अंग हैं।”
इस प्रकार संस्कृति का मानव जीवन से गहरा सम्बन्ध हैं। समाज के रीति-रिवाज, आन्तरिक विचारधारा और धार्मिक मान्यतायें सभी संस्कृति के अन्तर्गत आते हैं