प्राचीन भारत की स्थापत्य कला (Architecture of Ancient India)
स्थापत्य कला को वास्तु कला, ‘भवन निर्माण कला, मन्दिर निर्माण कला और ‘भास्कर कला‘ भी कहा जाता है। प्राचीन भारत में स्थापत्य कला की विशेष उन्नति हुई। इतिहास के कालक्रम के अनुसार हम इस कला के विकास का संक्षिप्त वर्णन करेंगे ।
(I) मौर्य काल, कुशान, शुंग एवं सातवाहन काल (300 ईसा पूर्व से 320 ई० तक)- इस काल में अनेक भवन, स्तूप, चैस्य, बिहार, मठ आदि का निर्माण किया हया। ‘चन्द्रगुप्त मौर्य’ ने पाटलीपुत्र का नगर बसाया और एक विशाल राजभवन बनवाया जिसमें अनेक बड़े सभा भवन थे। इस नगर का वर्णन यूनानी राजदूत ‘मेगस्थनीज‘ ने अपनी पुस्तक ‘इण्डिका‘ में किया है।
सम्राट अशोक ने अनेक शिलालेख, स्तम्भलेख तथा गुहा लेख निर्मित करायें, जिनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं-
(i) चौदह शिलालेख- गिरनार (जूनागढ़) काल्सी (देहरादून), शहबाज गढ़ी (पेशावर), मानसेहरा (हजारा), धौली (उड़ीसा), जोगड़ (मद्रास), सोराया (बम्बई), इटाकुही (करनाल), आदि।
(ii) लघु शिलालेख- रूपनाथ (जबलपुर), सहसाराम (बिहार), वंराट (जयपुर), मास्को (रायचूर), सिद्धपुर (मैसूर), गिरि (मैसूर) आदि ।
(iii) स्तम्भलेख- दिल्ली-तोपरा दिल्ली-मेरठ, कौशाम्बी (इलाहाबाद), रामपुरुवा (चम्पारन), लोरिया अरराज (बिहार), भौरिया नन्दन गढ़ (बिहार) आदि ।
(iv) लघु स्तम्भ लेख- राँची, सारनाथ, रुम्मिनदेई (नेपाल) आदि।
(v) गुहा लेख- गया के निकट ‘बारावर’ और नागार्जुन पहाड़ी में उपलब्ध हुये हैं।
इनके अतिरिक्त अशोक ने 84 हजार स्तूपों और 80 के लगभग बिहारों का निर्माण कराया था। चीनी यात्री ‘ह्व’ नसांग’ ने इनमें से बहुत से स्तूरों व बिहारों को बरनी बांखों से देखा था। ये स्तूर व बिहार बोनगर, कपिलवस्तु, बनारस, अयोध्या, कन्नौज तथा प्रयाग में बने हुये थे। अशोक ने पटना में सौ स्तम्भों बाला एक हाल भी बनवाया था, जिसे देखकर फाह्यान’ (चीनी यात्री) ने उसे ईश्वर की रचना बताया था। ‘कल्हण‘ के अनुसार श्रीनगर का निर्माता भी अशोक था ।
शुग वंश के शासकों ने भी अनेक स्तूपों और भवनों का निर्माण करवाया। ‘पुष्पमित्र शु’ग’ ने सौराष्ट्र में ‘सुदर्शर झोल’ का निर्माण करवाया। सातवाहन काल में अनेक गुहा चैत्य व भवन बनाये गये। ‘अजन्ता’ की गुफायें विश्वविख्यात हैं। इन गुफाओं का निर्माण इसी युग में शुरू हो गया था।
इसी युग में ‘कनिष्क’ ने अपनी राजधानी ‘पुरुषपुर’ में अनेक भवन बनवाये । उसने पेशावर में एक मठ और लकड़ी का एक बहुत बड़ा ‘बुजे’ भी बनवाया । उसने ‘कनिष्क पुर’ (पेशावर) की भी स्थापना की ।
(II) गुप्त काल – गुप्त काल में राजप्रासाद, स्तम्भ, स्तूप, बिहार, गुफायें तथा मन्दिरों का निर्माण हुआ । गुप्त काल की वास्तु कला का अनुमान अमरावती, नागार्जुन कोडा और अजन्ता के भित्ति चित्रों से लगाया जा सकता है, जिनमें राजकीय महल आदि दिखाये गये हैं ।
(i) राजप्रासाद- ‘बाणभट्ट’ ने कादम्बरी में शूद्रक के महत्व का वर्णन किया है। मृच्छकटिक में बसन्त सेना के महल का उल्लेख मिलता है। कालिवास के उज्जैनी के विवरण से कई राजप्रासादों के भब्यता का पता बलता है। मन्दसौर प्रशस्ति (वत्स सट्टी) से ज्ञात होता है कि इस काल में महलों के शिखर कैलाश पर्वत के समान ऊँचे थे।
(ii) स्तम्भ- गुप्त काल में बने इलाहाबाद का प्रशस्ति लेख स्वम्भ ‘समुद्रगुप्त के कार्यों की मादगार है। इसका निर्माता हरिषेण था। अन्य स्तम्भों में ‘स्कन्छ गुप्त’ का फोति स्तम्भ (काहोप, जिला गोरखपुर) ऐरन का विष्णु स्तम्त आदि दर्शनीय है। स्वतन्त्र स्तम्भों में महरौली का लौह स्तम्भ स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है, जिस ‘फिरोज तुगलक’ ने इलाहाबाद से उठवा कर दिल्ली में स्थापित करवाया था। आश्चर्य का विषय है कि हजारों वर्षों के बाद भी खुले स्थान पर वर्षा व धूप में खड़े रहने पर भी इस स्तम्भ में जरा भी जंग नहीं लगी है।
(iii) गुफायें- गुप्त काल में निमित्त अजन्ता, ऐलोरा, बाघ और औरंगाबाद की गुफायें स्थापत्य कला का उत्तम नमूना है ।
(iv) मन्दिर- गुप्त काल में अनेक भब्य मन्दिरों का निर्माण हुआ, जिनमें झांसी में देवगढ़ का दशावतार विष्णु मन्दिर’ म्यापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसके अतिरिक्त कानपुर में ‘भीतरगांव का मन्दिर’, जबलपुर जिले में ‘तिम्या का विष्णु मन्दिर’, ‘भ्रमरा का शिव मन्दिर’, बासाम में, दाह परवतिया का पार्वती मन्दिर’, ‘बोध गवा सांची’ तथा ‘सारनाथ के बौद्ध मन्दिर’, ‘सिरपुर का मन्दिर’ तथा ‘बोह’ का शिव मन्दिर’ विशेष प्रसिद्ध हैं।
(v) मठ, स्तूप, बिहार- गुप्त काल में अनेक बौद्ध मठों, स्तूपों तथा विहारों का भी निर्माण हुआ, जिनमें सांची, सारनाथ के स्तूप विशेष उल्लेखनीय है। ‘नालन्दा’ का ३०० फीट ऊँचा बौद्ध मन्दिर भी इसी काल में बनाया गया था ।
(III) राजपूत काल – राजपूत राजाओं ने अनेक किले, झोले, भवन, मन्दिर आदि बनवाये ।
(i) किले- चित्तौड़, रणथम्भौर, मांडू व ग्वालियर के किले इस काल को कला के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं।
(ii) महल- ग्वालियर में बासिह का महल, उदयपुर का हवा महल, जयपुर के अनेक भवन विशेष प्रसिद्ध हैं।
(iii) मन्दिर- उड़ीसा में ‘भुवनेश्वर लिगराज का मन्दिर’, बुन्देलखण्ड में ‘खजुराहो का महादेव मन्दिर, बाबू पर्वत पर बना ‘जैन मन्दिर’, कोणार्क का ‘सूर्य मन्दिर’, ‘पार्श्वनाथ का मन्दिर’ आदि सारे भारत में प्रसिद्ध हैं।
(iv) दक्षिण भारत की स्थापत्य कला- दक्षिण भारत के राष्ट्रकूट, बालूक्य, पल्लव, और राजाओं ने स्वापत्य कला के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।
दक्षिणी भारत में चालुक्ष्य शैली में बना ‘ऐहोल का विष्णु मन्दिर’ विशेष प्रसिद्ध हैं। सुदूर दक्षिण में पल्तयों ने ‘द्रविड़ शैली’ में अनेक भब्य मन्दिरों व महलों का निर्माण करवाया।