प्राक्कथन- दजला नदी के किनारे असुर (अस्सुर) नगर में रहने के कारण इस क्षेत्र और जाति का नाम असीरिया पड़ा । यहाँ के लोग सेमेटिक जाति के थे। ये बड़े भयंकर, खूंख्वार तवा लड़ाकू ये और लम्बी-लम्बी दाढ़ियाँ तथा घुंघराले बाल रखते थे। इन लोगों ने घोड़ों और स्वों की सहायता से कई अन्य जातियों से अनेक युद्ध किये और उन्हें पराजित किया
1. सभ्यता का इतिहास (History of Civilization) – मेसोपोटामिया के उत्तरी पहाड़ी में ‘असुर’ नामक एक नगर था, जो काफी समय तक बेबीलोनिया के अधीन रहा, परन्तु 1600 ईसा पूर्व के लगभग यहाँ के निवासियों ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली। धीरे-धीरे इन लोगों ने अपने एक विशाल साम्राज्य का निर्माण कर लिया। यहाँ के निवासी असुर (सूर्य) नामक देवता की इनका नाम ‘असीरियन जाति’ पड़ गया ।
असीरियन साम्राज्य की स्थापना लगभग 1100 ईसा पूर्व में ‘टिग्लथ पिलेजर प्रथम’ (Tiglath Pilaser I) ने की थी। इस साम्राज्य का पहला महान शासक ‘सारगन द्वितीय’ (Sargon II) था । उसके बाद उसके पुत्र ‘सेनाक्रीब’ (Senackerib) और सेना क्रीब के पोते ‘असुरबनीपाल’ (Assurbanipal) के समय असीरियन साम्राज्य की अभूतपूर्व उन्नति हुई । सारगन द्वितीय (७२२-७०५ ईसा पूर्व) और सेनाक्रीन (७०५- ६८१ ईसा पूर्व) दोनों महान विजेता था । उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार फारस से लेकर मिश्र की सीमा तक कर लिया था। इन्होंने एशिया माइनर और पेलेस्टाइन के नगरों पर भी आक्रमण किये और उन्हें लूट लिया । ये. शासक कला व साहित्य के विशेष प्रेभी थे।
असुरबनोपाल (666 – 626 ईसा पूर्व) का शासन काल असीरियन सभ्यता का स्वर्ण युग था । इसके काल की 22 हजार प्लेट खुदाई में मिली है। इसकी मृत्यु के बाद असीरियन साम्राज्य का पतन होने लगा और 612 ईसा पूर्व के लगभग यह पूरी तरह से नष्ट हो गया ।
2. राजनीतिक जीवन और शासन व्यबस्था (Political Life and System of Administration)- असीरियन साम्राज्य एक सैनिक साम्राज्य था। इस साम्राज्य के प्रमुख नगर नासुर, अरबेला तथा निनेवेह आदि थे । इन स्थानों की खुदाइयों से मौसूल के महल, राजा सेनाकीब का विशाल महल, पुस्तकालय व असंख्य प्लेटें प्राप्त हुई हैं । अनेक मूर्तियाँ,
असीरियन लोग युद्ध प्रिय थे । इन्होंने सबसे पहले युद्ध के मौवारों तथा घोड़ों का प्रयोग किया। इन की सेना में पैदल, एच आदि होते थे। सेना बड़ी अनुशासित मोर बोर होती थी । साम्राज्य विस्तार को नीति असीरियन लोगों की प्रमुख विशेषता थी ।
इनकी शासन व्यवस्था बड़ी संगठित भी । सम्राट निरंकुश, स्वेच्छाचारी और बंबी अधिकारों के स्वामी होते थे। वे प्रधान सेनापति, सर्वोच्च न्यायाधीश और कानून निर्माता थे। उस समय दण्ड विधान कठोर था और डाक व्यवस्था शुरू हो चुकी थी। दास प्रथा भी प्रचलित थी।
3. सामाजिक जीवन (Social Life) असीरियन समाज मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित था- स्वतंत्र नागरिक और बास स्वतंत्र नागरिक सामन्त, जनसाधारण व कारीगर वर्ग में बंटे हुये थे। कारीगरों के संघ बने हुये थे। दासों की दशा नहीं शोचनीय थी। समाज में स्त्रियों को पूरा सम्मान प्राप्त था।
4. आर्थिक जीवन (Economic Life)- इनका मुख्य व्यवसाय युद्ध करना व लूटवार करता था। कुछ लोग दासों द्वारा गेहूं, जौं, बाजरा, सरसों, कपास आदि की खेती करवाते थे।
5. धार्मिक जीवन (Religious Life) – ‘असुर’ (सूर्य) उनका प्रधान देवता था। वे देवता को स करने के लिए बलि दिया करते थे। वे प्रेम की देवी की भी पूजा करते थे। मन्त्र-तन्त्र व जादू-टोने में उनका विश्वास थे।
6. कला और साहित्य (Art and Literature ) उन्होंने भवन निर्माण कला, चित्रकला और शिल्प कला या मूर्ति कला के क्षेत्र में पर्याप्त उन्नति कर रखी थी। सारगन द्वितीय और सैनाकोब बड़े महान भवन निर्माता थे। उनके शासन काल में अनेक सुन्दर महलों व मन्दिरों का निर्माण हुआ था। असीरियन लोगों ने पत्थर से सिहों तथा सम्मों व रथ आदि की बड़ी सामक मूर्तियाँ बनायीं। सारगन द्वितीय के महलों से प्राप्त थोड़ों के चित्र सेनाकीव के महल से प्राप्त वा शेरनी की मूर्ति, सुरजनी पास के महल से प्राप्त ‘मर रहे शेर की मूर्ति’ तथा ‘आराम कर रहो शेरनी की प्रतिमा आज भी शिल्प कला के अद्वितीय नमूने माने जाते हैं। इनमें परों वाले बेल की मूर्ति विशेष सुन्दर है ।
इन मूर्तियों के अतिरिक्त शिकार व पुद्ध सम्बन्धी अनेक चित्र भी पत्थरों पर खुदे हुए मिले हैं, जो बड़े ही सजीब लगते हैं।
कुछ विद्वानों का मत है कि इन लोगों के रसायन विज्ञान के क्षेत्र में भी काफी उन्नति कर लो वो असीरियन लोगों ने शिक्षा व साहित्य का भी विकास किया था। असुर बनो पाल ने 22 हजार प्लेटों को जमा करके एक पुस्तकालय की स्थापना की थी। इनमें गीत, रीति-रिवाज, व्याकरण, औषधि विज्ञान तथा मौसम विज्ञान की पुस्तकें प्रमुख थीं।
7. सभ्यता का महत्व (Significance of the Civilization) अन्त में वही कहना पड़ेगा कि कला और साहित्य की अपेक्षा सैनिक और राजनीतिक संगठन हो असीरियन सभ्यता की प्रमुख विशेषता की। फिर भी सभ्यता के विकास में असीरियन लोगों की देन कुछ कम नहीं है। उन्होंने युद्ध कला, मूर्ति कला तथा लेख कला का काफी विस्तार किया और बेबीलोनिया की संस्कृति को सारे मेसोपोटामिया में फैला दिया।