प्रथम विश्व युद्ध के कारण एवं परिणाम

प्रथम विश्व युद्ध (First World War)

बीसवीं शताब्दी को महायुद्धों की शताब्दी माना जा सकता है। इस शताब्दी के प्रथम चरण में विश्व को एक विनाशकारी युद्ध देखना पड़ा। औद्योगिक क्रान्ति और उपनिवेशी साम्राज्यवाद के विकास ने विश्व के देशों को एक-दूसरे का कट्टर शत्रु बना दिया। सन् 1914 ई० में प्रथम विश्व युद्ध प्रारम्भ हुआ । इस युद्ध के अनेक कारण थे, जिनमें सैनिकबाद, साम्राज्यवाद, राष्ट्रवाद, यूरोपीय देशों को गुटबन्दी आदि कारण प्रमुख थे। इस युद्ध से पहले कोई भी युद्ध इतना व्यापक और विनाशकारी नहीं हुआ था। इस युद्ध में विश्व के अधिकांश देशों ने भाग लिया और यह युद्ध जल, बल और आकाश तीनों स्थानों पर लड़ा गया। इस मृद्ध को जर्मनी के महत्वाकाँकी सम्राट फंसर विलियम द्वितीय ने प्रारम्भ किया था। इस युद्ध में एक ओर जर्मनी, कास्ट्रिया-हमरी, स्को कादि देश थे और दूसरी ओर इंग्लैण्ड , फ़्रांस, रूस, अमेरिका आदि देश थे।

प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम (Results of the First World War)

प्रथम विश्व युद्ध मानव इतिहास की एक भयानक और विनाशकारी घटना थी। इस युद्ध का प्रारम्भ 28 जुलाई 1914 को हुआ और 4 वर्षों तक यह निरंतर चलता रहा। 12 नवम्बर 1918 को इस युद्ध का अन्त हुआ। इस युद्ध के निम्नलिखित परिणाम हुये –

1. धन और जन की क्षति- इस विश्व युद्ध में जन और धन की अपार क्षति हुई। इस युद्ध में कुल 10 अरब रुपया खर्च हुआ और 13,200 करोड़ रुपये की सम्पत्ति नष्ट हो गई।

इस युद्ध में मित्र राष्ट्रों के लगभग 50 लाख व्यक्ति मारे गये और 1 करोड़ 10 लाख बुरी तरह घायल हुये। दोनों पक्षों के 80 लाख व्यक्ति लापता हो गये। जर्मनी व उसके सहायक देशों के 80 लाख व्यक्ति  मौत के मुंह में चले गये और 60 लाख व्यक्ति भयंकर रूप से घायल हुये ।

युद्ध विराम होने के समय मित्र राष्ट्रों को केवल जर्मनी से ही 50 हजार तोपे, 25 हजार मशीनगने, एक हजार हवाई जहाज, 10 जंगी जहाज, 13 क्रूजर तथा 50 युद्ध विनाशक जहाज प्राप्त हुये ।

2. युद्ध का विस्तार – यह युद्ध विश्वव्यापी था । यह युद्ध यूरोप और एशिया महाद्वीपों में लड़ा गया और इसमें विश्व के 30 देशों ने भाग लिया । लगभग 205 करोड़ व्यक्तियों ने इस युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया। इस युद्ध में बिशाल टंकों, विषैली गैसों, हवाई जहाजों और पनडुब्बियों आदि का बहुतायत से प्रयोग किया गया ।

3. राजनीतिक परिणाम – (i) इस युद्ध बाद आस्ट्रिया, हंगरी, बल्गारिया आदि निरकुश के राज्यों का अन्त हो गया।

(ii) प्रथम विश्व युद्ध के बाद क्स, जर्मनी, आस्ट्रिया, फिनलैण्ड, पोलैण्ड, टर्की, लिवूनिया, लेटेविया, यूगोस्लाविया जादि राज्यों में गणतन्त्र शासन की स्थापना हुई।

(iii) प्रथम विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप राष्ट्रीयता की भावना को बड़ा प्रोत्साहन मिला और राष्ट्रीयता के आधार पर पूरोप के 8 नये राज्यों की स्थापना हुई।

(iv) प्रथम विश्व युद्ध के बाद रूस में साम्यवादी, जर्मनी में नाजीवादी, जापान में साम्राज्यवादी और इटली में फासीवादी तानाशाही की स्थापना हुई ।

(v) विश्व में शान्ति स्थापित करने और भविध्य में युद्धों को रोकने के लिए सन् 1920 में राष्ट्र संघ नामके एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की स्थापना हुई।

4. सामाजिक परिणाम-

(i) समाज में स्त्रियों को काफी स्वतन्त्रता प्राप्त हो गई।

(ii) स्त्रियाँ कल-कारखानों, कार्यालयों आदि में कार्य करने लगीं।

(iii) सामाजिक बन्धन ढीले पड़ने लगे और शिक्षा का विस्तार रुक गया ।

(iv) विज्ञान के क्षेत्र में अनेक नये आविष्कार हुये ।

(v) समाजवाद का विकास हुआ और विश्व के श्रमिकों को अनेक प्रकार की सुविधायें प्राप्त होने लगी ।

5. आर्थिक परिणाम

(i) विश्व के अनेक देश आर्थिक संकट के कारण दिवालिया हो गये।

(ii) विश्व में आर्थिक मन्दी छा गई।

(iii) अनेक देशों में बेकारी, गरीबी तथा भुखमरी फैल गई।

(iv) मुद्रा का अवमूल्यन हो गया और वस्तुओं के भाव तेजी के साथ बढ़ने लगे ।

6. धार्मिक परिणाम –

(i) रूस में नास्तिकवाद का विकास हुआ ।

(ii) यूरोप के ईसाई अपने धर्म में आस्थाहीन हो गये ।

(iii) चामिक कार्यों पर घातक प्रभाव पड़ा ।

राष्ट्र संघ (League of Nations)

प्रथम विश्व युद्ध की भयानकता और भीषणता से सम्पूर्ण मानव जाति काँप उठी। लाखों व्यक्तियों ६) अकाल मृत्यु तया अरबों डालर की क्षति ने विश्व के राजनीतिज्ञों को यह विचार करने के लिये विवश कर दिया कि यदि युद्धों का हमेशा के लिये अन्त कर दिया जाये, तभी मानव जाति का कल्याण हो सकता ।। यदि सभी राष्ट्र अग्ने आपसी विवादों को आपसी बातचीत के द्वारा हल कर लिया करें तो छोटे-छोटे एमलों के लिये भीषण रक्तपात करने की आवश्यकता न पड़े। इस बात को ध्यान में रखकर विश्व के राजनीतिज्ञों ने राष्ट्र संघ नामक एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था का निर्माण करने की योजना बनायो ।

1. राष्ट्र संघ की स्थापना – प्रथम विश्व युद्ध के विनाशकारी परिणामों को देखकर संसार के राजनीतिज्ञों ने अमेरिका के राष्ट्रपति ‘बुडरो विलसन’ के परामर्श पर 10 जनवरी 1920 ई० को राष्ट्र मंत्र एक एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की स्थापना की।

2. राष्ट्र संघ के उद्देश्य इस सस्था के निम्नलिखित उद्देश्य थे-

(i) विश्व के सभी राष्ट्रों को अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये प्रोत्साहन देता जिससे भविष्य में संसार को युद्ध की आग में न जलना पड़े ।

(ii) अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा की स्थापना करता ।

(iii) विभिन्न राष्ट्रों के पारस्परिक विवादों को शान्तिपूर्ण तरीकों से सुलझाना ।

(iv) भविष्य में युद्धों को रोकने के लिये सभी राष्ट्रों को निःशस्त्रीकरण के लिये तैयार करना ।

(v) इस बात का प्रयास करना कि सभी राष्ट्र अम्तर्राष्ट्रीय कानून का पालन करें।

3. राष्ट्रसंघ की सदस्यता प्रारम्भ में राष्ट्रसंघ के 42 देश सदस्य थे। 1926 में जर्मनी को और 1934 में रूस को भी इसकी सदस्यता प्राप्त हो गई और 1936 तक इसकी सदस्य संख्या 60 तक पहुँच गयी। लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका ने इसकी सदस्यता ग्रहण नहीं की।

4. राष्ट्र संघ के अंग- राष्ट्रसंघ के प्रमुख अंग निम्नलिखित थे-

(i) साधारण सभा- राष्ट्र संघ का प्रत्येक सदस्य राष्ट्र इस सभा का सदस्य होता था और प्रत्येक राष्ट्र अपने तीन प्रतिनिधि इस सभा में भेज कता था, परन्तु प्रत्येक राष्ट्र को केवल एक ही मत देने का धिकार था। इस सभा का अध्यक्ष महामन्त्री कहलाता था। इस प्रतिवर्ष सितम्बर माह में ‘जेनेवा’ में अधिवेशन होता था। इस सभा को राष्ट्र संघ के सभी विषयों पर विचार-विमर्श करने का अधिकार था। यह नये सदस्यों का चुनाव, सुरक्षा परिषद के सदस्यों चुताव और अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशो चुनाव करती थी और अनेक राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, कानूनी, संवैधानिक तथा औपनिवेशिक समितियों का गठन करती थी।

(ii) परिषद- परिषद में दो प्रकार के सदस्य होते थे स्थायी और अस्थायणे । प्रारम्भ में इसके तार स्थायी सदस्य- इगलंण्ड, फ्रांस, इटली तथा जापान थे। कुछ समय के बाद जर्मनी को भी इसका पायी सदस्य बना लिया गया था। 1936 में इसके अस्थायी सदस्यों की संख्या 11 हो गई थी। प्रति वर्ष परिषद के चार अधिवेशन और आवश्यकता पड़ने पर विशेष अधिवेशन होते थे। यह परिषद अपने भापति व उपसभापति का चुनाव स्वयं करती थी। इस परिषद के प्रमुख कार्य विश्व शान्ति की रक्षा करना, निःशस्त्रीकरण पर बल देना, अन्तर्राष्ट्रीय विवादों की मध्यस्थता करना, मंण्डेट व्यवस्था का बन्ध करना आदि थे।

(iii) सचिवालय- राष्ट्र संघ ‘महामन्त्री’ होता था। इसमें विभिन्न देशों का प्रधान कार्यान ‘सवि’ कहलाता था। इसका अधिकारी के 500 से अधिक अधिकारी कार्य करते थे। राष्ट्रब की समस्त कार्यवाही को लेख बद्ध हरनाव व्यवहार करना सचिवालय का कार्य था।

(iv) अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय- इस न्यायालय में 15 न्यायधीश थे, जिनकी न्युक्ति साधारण सभा व परिषद की सिफारिश पर 9 वर्ष के लिये की जाती थी । यह न्यायालय अपने सामने अन्तर्राष्ट्रीय विवादों पर निर्णय देता था। अन्तर्राष्ट्रीय कानून की व्याख्या करना भी इसका कार्य था।

(v) अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन- इस संघ की साधारण श्रमिक सभा में प्रत्येक राष्ट्र के चार प्रतिनिधि (दो राष्ट्र के, एक उद्योगपतियों का और एक श्रमिक का ) होते थे जिन्हें अलग-अलग मत देने का अधिकार था। शासन परिषद में 12 राष्ट्रों के 6 पूंजीपति और 6 श्रमिकों के प्रतिनिधि होते थे, जिनका कार्यकाल 3 वर्ष था। श्रमिक कार्यालय में अन सम्बन्धी योग्यता रखने वाले 35 विशेषज्ञ होते थे। इस संगठन’का प्रमुख कार्य विश्व के श्रमिकों की समस्याओं का अध्ययन करके उन्हें विभिन्न प्रकार की सुविधायें दिलाना था ।

(6) राष्ट्र संघ की असफलता और अन्त- सन 1920 से 1930 तक राष्ट्र संघ को अपने उद्देश्या की पूर्ति करने में पर्याप्त सफनता प्राप्त हुई और इसने अनेक नम्तर्राष्ट्रीय झगड़ों का निपटारा किया तथा सामाजिक तथा लोकहितकारी क्षेत्रों में अनेरु उरयोगो कार्य किये, परस्तु 1930 से 1936 तक राष्ट्र संघ को बड़े राष्ट्रों की स्वार्वप्रियता, सैनिक शक्ति का अभाव, संयुक्त राज्य अमेरिका की पुनरुता और यूरोप में सैनिकवाद, फासीवाद व नाजीवाद के विकास के कारण प्रवरुनता का मुंह देखना पड़ा। अन्त में 1 सितम्बर 1939 को द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारम्भ होते ही इसका अन्त हो गया ।

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