ईसाई धर्म का जन्म रोमन सम्राज्य के जूडिया नामक स्थान पर हुआ था। इस धर्म के प्रवत्त क जीसस अथवा ईसा मसीह (4 ईसा पूर्व से 29) थे। उन्होंने अपने 12 शिष्यों को ओलाहब नामक पहाड़ी पर धार्मिक उपदेश दिये, जिन्हें ईताई धर्म की शिक्षायें कहा जाता है। ईसा मसीह को देशद्रोह के अपराध में रोम के गर्वनर पाइलेट ने सूली पर लटका दिया था। ईसाई धर्म की पवित्र पुस्तक बाइबिल है, जिसे इंजील भी कहा जाता है। ईसाई धर्म के दो प्रमुख सम्प्रदाय रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टेन्ट हैं।
ईसाई धर्म तथा ईसा माह की प्रमुख शिक्षायें निम्नलिखित हैं-
(1) ईश्वर एक है, इसलिये अनेक देवी-देवताओं की पूजा स्थान पर सबको एक ही ईश्वर को पंजा करनी चाहिये ।
(2) सभी मनुष्यों से प्रेम करना चाहिये क्योंकि जहाँ प्रेम है, वहाँ ईश्वर है।
(3) ईश्वर सबको अपने बच्चों की तरह समान रूप से प्यार करता है। हुच मीच, जाति-पाँति के भेदभाव झूठे हैं।
(4) ईश्वर का राज्य एक ऐसा राज्य है जिसमें आपसी प्रेम, बन्धुत्व, सहयोग, सद्भावना, सदाचार, सत्य, अहिंसा, ईश्वर मक्ति आदि गुण पाये जाते हैं। ईश्वर के राज्य में वही लोग जा सकते हैं, जो लोग ईमान- दार, शान्तिमय तथा अत्याचारों को नहने करने की शक्ति रखने वाले हैं।
(5) मनुष्य को पापों से घृणा करनी चाहिये, न कि पापी से, क्योंकि आज का पापी ब्यक्ति भी कल अपने सत्कर्मों व सदाचार से धर्मात्मा बन सकता है।
(6) ईश्वर दीन दुखियों से प्रेम करने वाला है तथा पापी पश्चाताप करने पर ईश्वर से क्षमा प्राप्त कर सकता है।
(7) मनुष्य को सभी प्राणियों पर दया करनी चाहिये ।
(8) मनुष्य को सांसारिक लोभ, मोह तथा अभिमान को त्याग देना चाहिए ।
(9) ईसा के अनुसार दूसरों के साथ ऐसा दयामय प्रेम का व्यवहार करो, जैसा कि तुम स्वयं से करते हो।
(10) हर मनुष्य को मृत्यु के तीसरे दिन उसके कर्मों के अनुसार दण्ड या पुरुस्कार मिल जाता है।
संक्षेप में ईसा मसीह की शिक्षाओं का सार यह था कि “अपने शत्रुओं से प्रेम करो, जो तुम्हें बुण देते हैं उनकी भी मलाई की इच्छा करो। जो तुमसे घृणा करते है, तुम उनके प्रति नेक रहो। जो तुम से बुरा व्यवहार करते हैं या पीड़ा देते हैं, उाके लिये तुम प्रार्थना करो ताकि उस पिता की अच्छी सन्तान बन सको, जो म्वर्ग में निवास करता है।”