प्राक्कथन- चीन की प्राचीन सभ्यता सर्वप्रथम उत्तर में ह्वांगहो नदी की घाटी में फैली और वहाँ से दक्षिण तथा मध्य में यांग सीक्यांग नदी की घाटी तक विकसित हो गई। चीनी परम्परा के अनुसार चीनी सभ्यता का विकास ईसा से तीन हजार वर्ष पहले प्रारम्भ हो चुका था, परन्तु इसका प्रारम्भिक इतिहास नहीं कह सकते हैं। आरम्भ में यहाँ नगर राज्य थे और सामन्तों का बोलबाला था, परन्तु 2150 ईसा पूर्व के लगभग चीन में राजवंश की स्थापना हुई, तभी से इसका क्रमबद्ध इतिहास मिलता है ।
1. चीन के मूल मिवासी (Citize s of Ancient China) चीन के मूल निवासियों के सम्बन्ध में विद्वानों में काफी मतभेद है। चीनी इतिहासकारों का मत है कि चीन की सभ्यता मिश्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता से प्राचीन है । इस सभ्यता का विकास ‘पानक’ देवता ने किया था। इस सभ्यता का विकास करने वाले चीन के ही मूल निवासी थे । आधुनिक खोजों के अनुसार चीनी मंगोल उपजाति से हैं । यह आज से लगभग २० हजार वर्ष पहले पाषाण युग में मध्य एशिया से आकर यहाँ बस गये थे ।
अधिकांश विद्वानों का मत है कि चीन की सभ्यता का विकास संसार में सर्वप्रथम हुआ। इसलिये विश्व की अन्य सभ्यताओं ने चीन की सभ्यता को अधिक प्रभावित नहीं किया और यह सभ्यता एक लम्बे समय तक अलग-थलग रही।
2. बोन का प्राचीन इतिहास (Ancient History of China ) — जीन के प्राचीन इतिहास को हम निम्नलिखित भागों में बांट सकते हैं-
(I) हिस्या वंश (2150-1750 ईसा पूर्व) – चीनी परम्परा के अनुसार आज से कोई 3000 वर्ष ईसा पूर्व से चीन में राजवंशों का प्रारम्भ हुआ। सबसे पहले राजवंश जिसे हिस्या वंश (Hsia Dynasty) कहा जाता है, की स्थापना 2150 ईसा पूर्व के लगभग ‘बू सो’ (Yu-Hsi) नामक सम्राट ने की थी। उसने चीन में सभ्यता, साहित्य तथा कला का विकास किया। उसके समय में लेखन कला प्रचलित थी। हिस्या राजवंश लगभग 400 वर्षों तक चीन पर शासन करता रहा।
(II) शांग वंश (1750-1122 ईसा पूर्व) चीन पर शांग वंश के राजाओं ने लगभग 600 नयाँ से अधिक समय तक शासन किया। इस वंश के 23 सम्राटों के नाम शिलालेखों से प्राप्त हुये है। इन सम्राटों में 1 सम्राट नास्तिक वा और ईश्वर तथा देवी-देवताओं का घोर विरोधी था। इस काल के अवशेष यह स्पष्ट करते हैं कि इस समय चीनी सभ्यता प्रगति पर थी।
(III) बाऊ वंश (1122-250 ईसा पूर्व) – इस वंश का संस्थापक ‘यू बोंग’ (Wu Wong) या, जिसके समय में चीन की काफी उन्नति हुई । चाक बंदा ने लगभग 875 वर्षों तक चीन पर शासन किया। इस काल में ही चीन में ‘कन्फ्यूशियस’ तथा लाबोत्से’ नामक दो महान संतों का जन्म हुआ। इस काल में जीन की राज- भौतिक, सामाजिक, आर्मिक, सांस्कृतिक व धार्मिक सभी क्षेत्रों में काफी प्रगति हुई।
(IV) ‘चिन वंश (250 – 206 ईसा पूर्व) – इस वंश के राजाओं ने “वाऊ वंश का अंत किया और एक शक्ति शाली केन्द्रीय शासन की स्थापना की। इस बंद का सबसे महान सम्राट ‘शो होगटी’ (Shi Huang Ti) या इसी सम्राट ने चीन की महान दीवार का निर्माण करवाया, जो आज भी सारे संसार में प्रसिद्ध है। इस सम्राट ने 210 ईसा पूर्व तक चीन में निरंकुश शासन किया।
(V) हान वंश (206 ईसा पूर्व से 221 ई० तक) — इस वंश का काल चीन के इतिहास का स्वर्ण युग माना जाता है। इस वंश के राजाओं ने मध्य एशिया, पामीर तथा कोकन्द तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया। इस काल में बौद्ध धर्म का प्रचार हुआ तथा प्राचीन ज्ञान-विज्ञान तथा साहित्य की काफी उन्नति हुई। कागज, स्याही, चाय आदि का इसी युग में आविष्कार हुआ। इस वंश का सबसे महान सम्राट ‘बूतों’ (Wit Ti) था
(VI) तांग वंश (618-108 ई०) द्वांग वंश के पतन के बाद कोई 400 वर्षों तक चीन में आन्तरिक संघर्ष व विदेशी आक्रमणों का बोलबाला रहा। इसके बाद 616 ई० में चीन में तांग वंश की स्थापना हुई । इस काल में चीन के साम्राज्य का विस्तार हुआ तथा साहित्य व कला के क्षेत्र में काफी उन्नति हुई।
(VII) शुंग वंश (160-1206 ई० ) – इस वंश की स्थापना ९६० ई० में हुई। इसका सबसे महान सम्राट ‘लाई ‘ (२६०-६७६ ई०) था। इस काल में भी चीन की काफी प्रगति हुई ।
(८) युआन वंश (1206-1227 ई० ) – इस काल में मंगोल ‘बंगेज खाँ’ के नेतृत्व में सारे एशिया और यूरोप में छा गये । उन्होंने चीन पर भी अधिकार कर लिया। मंगोल राजाओं में ‘कुबलाई खां’ का शान बहुत प्रसिद्ध है। इसने अनाम वर्मा और स्याम को भी अपने राज्य में मिला लिया और शासन में अनेक सुधार किये।
3. राजनीतिक जीवन और शासन व्यवस्था (Political Life and Administration System)— चीन में अनेक राजवंशों ने शासन किया। चीन का सम्राट राज्य व धर्म सम्बन्धी दोनों प्रकार के कार्यों को करता था। वह निरंकुश व देवी अधिकारों का स्वामी होता था। प्रजा उसमें गहरी निष्ठा रखती थी। राजपद वंशानुगत होता था । सम्राट ही कानून निर्माता, न्यायाधीश और सबसे बड़ा पुजारी होता था। सआद की सहा- पता के लिए एक परिषद होती थी। साम्राज्य अनेक प्रान्तों में बँटा होता था। धीरे-धीरे इन प्रान्तों के अधिका- रियों ने शक्तिशाली होकर अपनी स्वतन्त्र सत्ता स्थापित कर ली।
चीन में उच्च कर्मचारियों की नियुक्ति प्रतियोगिता परीक्षाओं के आधार पर होती थी। इन अधिकारियों को ‘भंडारिन’ (Mandarin) कहा जाता था । उन्हें कम्पयूशियस के सिद्धान्तों का विशेष प्रशिक्षण दिया जाता था
इस काल के सम्राट प्रजा पालक तथा कला व साहित्य के पोषक होते थे ।
4. सामाजिक जीवन (Social Life) – प्राचीन काल में चीनी समाज चार वर्गों में बँटा हुआ था-
(I) उच्च वर्ग या विद्वान वर्ग— इसमें सामन्त पुरोहित तथा विद्वान आदि शामिल थे। राज्य के उच्चा- धिकारी इसी वर्ग से लिये जाते थे। इस वर्ग का समाज “में बड़ा मान और सम्मान था ।
(II) कृषक वर्ग – इसमें किसान शामिल थे। लेकिन इनकी दशा अधिक संतोषजनक नहीं थी। खेतों के विभा जन के कारण भूमि का अच्छा प्रयोग नहीं हो पाता था ।
(III) शिल्पी या कारीगर वर्ग- कारीगर वर्ग ने अपने संघ बना रखे थे । कारीगर आभूषण बनाने, रेशम वस्त्र तैयार करने, धातु व चीनी मिट्टी के बर्तन बनाने में प्रवीण थे।
(IV) व्यापारी वर्ग- व्यापारी लोग देश तथा विदेश में व्यापार करते थे ।
सैनिकों को चीन के समाज में सबसे निम्न स्थान प्राप्त था। निर्धन तथा गन्दे चरित्र के लोग ही सेना में भरती होते थे ।
चीनी समाज में परिवार एक महत्वपूर्ण इकाई था। प्रत्येक परिवार में माता-पिता का बड़ा सम्मान होता था। कुछ लोग अपने पूर्वजों की देवताओं के समान पूजा करते थे। स्त्रियों को समाज में ऊंचा स्थान प्राप्त नहीं था। पर्दे की प्रथा प्रचलित थी और स्त्रियों पर पुरुषों का नियंत्रण रहता था। समाज में दास प्रथा प्रचलित थी। कुछ दासों को तो स्वामी की मृत्यु के साथ ही दफना दिया जाता था।
5. आर्थिक जीवन (Economic Life) सभ्यता के प्रारम्भ में चीनियों का मुख्य व्यवसाय कृषि था । उस समय सिचाई के लिये बाँध व नहरें बनायी गई थीं । शांग बंश के काल में खेती में हल का प्रयोग शुरू हो गया था। उस समय गेहूं, चावल, जी आदि की खेती प्रमुख रूप से की जाती थी. बाद में चीन ने कांसे के चीनी मिट्टी के बर्तन व औजार, फर्नीचर वस्त्र व रेशमी कपड़ा बनाने में काफी उन्नति की। चीन में ही सर्वप्रथम कागज उद्योग का प्रारम्भ हुआ।
चीन का व्यापार मिश्र, मेसोपोटामिया, ईरान, भारत, तथा रोमन साम्राज्य से होता था। चीनी जहाज मलाया प्राय द्वीप से भूमध्य सागर तक जाते थे। व्यापारियों को अपनी आय का पांचवां भाग आयकर के रूप में देना पड़ता था। पांचवीं शताब्दी के बाद चीन में सोने, चांदी, टीन, तथा चमड़े के सिक्के बनने लगे। शुंग वंश के काल में कागजी मुद्रा भी प्रचलित हुई।
6. धार्मिक जीवन (Religious life) – प्रारम्भ में चीनी अनेक प्रकार के जादू-टोनों और अन्ध विश्वासों में आस्था रखते थे और प्राकृतिक तथा देवी शक्तियों की पूजा करते थे। उनका सबसे बड़ा चीन का दार्शनिक लाओत्से देवता शांगटी (Shang Ti) या ‘स्वर्ग का पिता’ (Father of Heaven ) था। वे अपने पूर्वजों की भी उपासना करते थे । छठी शताब्दी ईसा पूर्व में चीन में दो महान विचार को लाओत्से (Lao Tse) तथा कन्फ्यूशियस (Conf- ucius) ने जन्म लिया, जिनके धार्मिक प्रचार ने चीनी धर्म को एक नया रूप प्रदान किया। ईसा की पहल | शताब्दी में चीन में बौद्ध धर्म ने प्रवेश किया।
(I) लाभोत्से और ताओ धर्म-प्रथम, महान चीनी दार्शनिक लाओत्से ने जिस धर्म का प्रचार किया, वह संसार में ताओ धर्म के नाम से जाना जाता है। लाओत्से का जन्म 604 ईसा पूर्व के लगभग हुआ था। उसका कहना था कि मनुष्य जिसको ज्ञान कहता है, वह वास्तव में धोखा है, हम ताओ या सृष्टिकर्ता को ज्ञान से नहीं, भक्ति से पा सकते हैं। मनुष्य को अपनी इच्छाओं का दास नहीं होना चाहिए क्योंकि इच्छायें ही मनुष्य की मानसिक शान्ति को मंग करती है। सुख-दुख तो आते-जाते रहते हैं। उसकी शिक्षा का सार यह था कि कुछ मत करो, सब कुछ अपने आप ठीक होता जायेगा।’
लाओत्से ने अपने ग्रन्थ ताओ तो विंग में अपनी शिक्षाओं का संकलन किया है। दक्षिणी चीन में ताओ धर्म का काफी प्रचार हुआ और यह चार-पांच शताब्दियों तक चीनियों के धार्मिक जीवन को प्रभावित करता रहा।
(II) कन्फ्यूशियस (551-479 ईसा पूर्व)- चीन का सबसे महान दार्शनिक कम्पयूशियस 551 ईसा पूर्व में ‘स्नू’ (Lu) प्रान्त के एक कुलीन परिवार में पैदा हुआ था। शिक्षा प्राप्त करके वह एक प्रकाण्ड विद्वान बना। २२ वर्ष की आयु में उसने एक विद्यालय (एकेडमी) की स्थापना की और 52 वर्ष की आयु में राज्य का मुख्य न्यायाधीश तथा बाद में प्रधान मन्त्री बना। उसने पाँच ग्रन्थों (Record of Rites, Book of charge, Book of cdes, Spring and Autu- mn Annals और Book of History ) की रचना की । 72 वर्ष की आयु में उसका निधन हो गया।
कन्फ्यूशियस की प्रमुख शिक्षायें भी शिष्टाचार पर बल, पारिवारिक सम्बन्ध को सुधारने पर जर, समाज सुधार क्रान्ति- कारी राजनीतिक विचार, राजा को प्रजापालक होना चाहिये आदि । एक लम्बे समय तक चीन में कन्फ्यूशियस के धर्म का बोलबाला रहा। उसकी शिक्षाओं ने चीनी सभ्यता का काफी विकास किया।
(3) बौद्ध धर्म भारत के कुशान वंश के शासन काल में लगभग ईसा की पहली शताब्दी में चीन में बौद्ध धर्म का प्रवेश चीन का महान दार्शनिक कन्फ्यूशियन हुआ। तीन चार वर्षों में बौद्ध धर्म सारे चीन में फैल गया। फाह्यान ह्वेनसांग तथा इत्सिंग जैसे बहुत से चीनी यात्रियों ने बौद्ध धर्म का विस्तृत ज्ञान प्राप्त करने के लिए भारत की यात्रा की। चीन में अनेक बौद्ध मठों बिहारों तथा महात्मा बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण हुआ। आज भी चीन में बौद्ध धर्म का काफी प्रभाव है ।
7. भाषा और लेखन कला (Language and Art of Writing)- चीनी भाषा व लिपि चित्रलिपि का ही रूपान्तर है । विद्वानों का मत है कि यह बड़ी प्राचीन लिपि है । इस लिपि के 1400 ईसा पूर्व के नमूने हडिडयों पर लिखे मिले हैं। इस लिपि में कोई 40 हजार संकेत चिन्ह हैं। यह लिपि ऊपर से नीचे की दिशा में लिखी जाती है।
8. खोजे और आविष्कार ( Discoveries and Inventions) – (1) चीन ने सर्वप्रथम 105 ई० के लगभग पेड़ों की छाल, फटे कपड़ों तथा रेशेदार पौधों से कागज बनाने की कला का आविष्कार किया।
(II) इन लोगों ने ही संसार में सबसे पहले स्याही और छपाई का आविष्कार किया। चीन में 668 ई० के लगभग छपी हुई पहली पुस्तक तैयार की गई ।
(III) चीनियों ने ही सबसे पहले रेशम के कीड़ों से रेशम तैयार करना सीखा और चाय नामक पेय पदार्थ करना की खोज की।