Criminal Procedure Identification Bill 2022 UPSC (हिन्दी)

भारतीय राष्ट्रपति ने संसद द्वारा पारित ‘Criminal Procedure Identification Bill 2022’ को अपनी मंजूरी दे दी है। इस लेख में हम Criminal Procedure Identification Bill 2022 पर चर्चा करेंगे और विस्तार से इसे जानेंगे।

मुख्य बिंदु

  • यह अधिनियम पुलिस और जेल अधिकारियों को पुलिस हिरासत में लिये. गए व्यक्ति की रेटिना और आइरिस स्कैन सहित भौतिक व जैविक नमूनों को एकत्र करने, संगृहीत करने तथा उनके विश्लेषण की अनुमति देता है।
  • यह कानून ‘कैदियों की पहचान अधिनियम, 1920’ को प्रतिस्थापित करता है। गौरतलब है कि वर्ष 1920 के अधिनियम के तहत केवल उन लोगों की पहचान से जुड़े नमूनों या माप (Measurements) के संग्रह का प्रावधान किया गया है जिन्हें दोषी ठहराया गया हो तथा जिन्हें जेल की सज़ा की घोषणा कर दी गई हो। साथ ही, इस अधिनियम के तहत फोटो के अलावा माप में केवल उंगलियों के निशान और पदचिह्नों की छाप को शामिल किया गया था।
  • इस अधिनियम के तहत मजिस्ट्रेट को यह शक्ति दी गई है कि वह आवश्यक परिस्थितियों में किसी भी व्यक्ति को इस अधिनियम के तहत आवश्यक नमूने/माप देने का आदेश दे सकता है।

अन्य प्रमुख प्रावधान

  • इस अधिनियम की धारा 2(1)(b) अनुसार, पुलिस को आरोपी व्यक्ति की उंगलियों, हथेली व पैरों के निशान के साथ फोटोग्राफ, आइरिस और रेटिना स्कैन, भौतिक एवं जैविक नमूनों तथा लिखावट या दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), 1973 की धारा 53 या धारा 53ए में संदर्भित व्यवहार संबंधी विशेषताओं से जुड़ी कोई अन्य परीक्षा लेने का अधिकार होगा।
  • ध्यातव्य है कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), 1973 की धारा 53 मेडिकल परीक्षण से संबंधित है।
  • शक्ति का विस्तारः यह अधिनियम तीन श्रेणियों में विभाजित लोगों पर लागू होगा।
  • जो किसी दंडनीय अपराध के लिये दोषी ठहराया गया हो।

CrPC की धारा 107, 108, 109 या 110 के तहत कार्यवाही से जुड़े मामलों में सीआरपीसी की धारा 117 के तहत अच्छे व्यवहार या शांति बनाए रखने के लिये सुरक्षा की गारंटी देने का आदेश दिया। ये अपराध को रोकने की दृष्टि से ‘संदिग्ध अपराधियों’ या ‘आदतन अपराधियों’ से जुड़े प्रावधान हैं।

किसी भी कानून के तहत दंडनीय अपराध के संबंध में गिरफ्तार या किसी निवारक निरोध कानून के तहत हिरासत में लिये गए लोग। इसके तहत राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम या सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम शामिल होगा।

अपवादः किसी महिला या बच्चे के विरुद्ध किये गए अपराध या ऐसे अपराध जिनमें न्यूनतम 7 वर्ष की सजा का प्रावधान हो, से जुड़े आरोपियों को छोड़कर अन्य अपराधों के मामलों में आरोपियों को बायोलॉजिकल सैम्पल देने से इनकार कर सकते हैं।

यदि ऐसे मामलों में आरोपी से इस तरह का डेटा एकत्र किया जाता है, तो भी उसे रिकॉर्ड से नष्ट किया जा सकता है।

  •  यदि आरोपी को बिना मुकदमे के रिहा कर दिया जाए या अदालत द्वारा आरोप मुक्त या बरी कर दिया जाए।

डेटा संग्रहः इस अधिनियम के तहत ‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ (NCRB) को बायोलॉजिकल डेटा संग्रह का अधिकार दिया गया है।

NCRB संबंधित राज्य सरकार या केंद्रशासित प्रदेश प्रशासन या किसी अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों से नमूनों/माप का रिकॉर्ड एकत्र कर सकती है, साथ ही उसके पास राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी माप के रिकॉर्ड को स्टोर करने, संरक्षित करने, नष्ट करने और ऐसे रिकॉर्ड को किसी भी कानून प्रवर्तन एजेंसी के साथ साझा एवं प्रसारित करने की शक्ति होगी।

NCRB के पास ऐसे साक्ष्य को अगले 75 वर्षों तक अपने पास सुरक्षित रखे रहने का अधिकार होगा।

पुलिस की शक्तियाँ: यह पुलिस अधिकारियों (हेड कॉन्स्टेबल या उससे वरिष्ठ) को वह किसी भी आरोपी व्यक्ति से इस प्रकार के माप/नमूने लेने का अधिकार देता है। साथ ही, इस अधिनियम के तहत माप लेने की अनुमति देने से इनकार या विरोध करना भारतीय दंड संहिता की धारा 186 के तहत अपराध माना जाएगा।

उद्देश्य एवं महत्त्व

केंद्रीय गृह मंत्री के अनुसार, इस कानून का उद्देश्य आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि दर को बढ़ाना है।

NCRB के वर्ष 2020 के आँकड़ों के अनुसार, भारत में हत्या के मामलों में कुल दोषसिद्धि दर सिर्फ 44% थी, वहीं बलात्कार के मामलों में यह 39%; हत्या के प्रयास के मामलों में 24% ; चोरी के मामलों में 38% और डकैती के मामलों में 29 फीसदी। जबकि यूनाइटेड किंगडम में औसत दोषसिद्धि दर 83.6%, कनाडा में यह 68%, दक्षिण अफ्रीका में 82%, ऑस्ट्रेलिया में 97% (2020-21) और संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 93% थी।

इस कानून के लागू होने से अपराधों की जाँच में तेजी आएगी तथा आपराधिक न्याय प्रणाली को मज़बूत करने में भी सहायता प्राप्त होगी।

वर्ष 1920 का अधिनियम वर्ष 1922 अधिनियम में बदलाव
डेटा: उंगलियों के निशान, पैरों के निशान, तस्वीरें डेटा: जैविक नमूने, और उनका विश्लेषण, (ii) हस्ताक्षर, लिखावट सहित व्यवहार संबंधी विशेषताएँ, और (iii) सीआरपीसी की धारा 53 और 53 ए के तहत परीक्षाएँ (रक्त, वीर्य, बालों के नमूने एवं स्वाब ।
संबंधित व्यक्तिः एक वर्ष या उससे अधिक के कठोर कारावास के साथ दंडनीय अपराधों के लिये दोषी ठहराया या गिरफ्तार किया गया संबंधित व्यक्तिः किसी भी अपराध के लिये दोषी या गिरफ्तार। ( हालाँकि, जैविक नमूने केवल एक महिला या बच्चे के खिलाफ अपराधों के लिये गिरफ्तार किये गए व्यक्तियों से ही बलपूर्वक लिये जा सकते हैं, या यदि अपराध में न्यूनतम सात साल की कैद हो)
ऐसे लोग जिन्हें अच्छा व्यवहार या शांति बनाए रखने की गारंटी देने का आदेश दिया गया हो।
किसी भी निवारक निरोध कानून के तहत हिरासत में लिये गए व्यक्ति
आपराधिक जाँच में सहायता के लिये मजिस्ट्रेट अन्य मामलों में किसी गिरफ्तार व्यक्ति से माप/नमूने लेने का आदेश दे सकता है मजिस्ट्रेट के आदेश पर किसी भी व्यक्ति (सिर्फ एक गिरफ्तार व्यक्ति) से जाँच में सहायता करने के लिये
प्राधिकारी: जाँच अधिकारी, पुलिस थाने का प्रभारी अधिकारी या उप-निरीक्षक या उससे ऊपर के रैंक का अधिकारी प्राधिकारीः पुलिस थाने का प्रभारी अधिकारी, या हेड कॉन्स्टेबल या उससे ऊपर के रैंक का अधिकारी। इसके अलावा, एक जेल का एक हेड वार्डन
मजिस्ट्रेट मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट, कार्यकारी मजिस्ट्रेट

कानून से जुड़ी चिंताएँ

अस्पष्टताः यह कानून आपराधिक मामलों के संदर्भ में आरोपियों की पहचान एवं जाँच के लिये ‘अपराधियों तथा अन्य व्यक्तियों’ (Convicts. and Other persons) से आवश्यक माप लेने का अधिकार प्रदान करता है, हालाँकि इसके तहत ‘अन्य व्यक्तियों’ के दायरे में आने वाले लोगों के संदर्भ में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। साथ ही इस कानून के तहत संदिग्ध की श्रेणी में आने वाले लोगों को भी माप/नमूने देने के लिये विवश किया जा सकता है।

इस कानून के तहत कुछ अपराधों को छोड़कर बाकी मामलों में आरोपी व्यक्ति को पुलिस को अपनी माप देने से इनकार करने का अधिकार है, हालाँकि अधिकांश लोगों को अपने अधिकारों का ज्ञान न होने से इसके दुरुपयोग का भय बना रहेगा।

निजता का अधिकार

इस कानून के तहत किसी भी अपराध की जाँच के लिये पुलिस को लोगों से कई प्रकार के डेटा को प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया है, जिसमें व्यक्तिगत डेटा भी शामिल है। ध्यातव्य है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्यक्तिगत डेटा को निजता के अधिकार के तहत संरक्षण प्रदान किया गया है, ऐसे में वर्तमान में इस कानून के कार्यान्वयन के दौरान कुछ मामलों में लोगों की निजता के अधिकार के उल्लंघन का भय बना रहेगा।

आत्मदोषारोपण से सुरक्षा

सर्वोच्च न्यायालय ने ‘सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य’ में यह माना था कि किसी व्यक्ति की सहमति के खिलाफ इन जाँच तकनीकों को संविधान के अनुच्छेद 20(3) द्वारा गारंटीकृत आत्मदोषारोपण के खिलाफ मौलिक अधिकार और अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन के अधिकार का उल्लंघन होगा।

पूर्व प्रयास

इससे पूर्व वर्ष 2021 में कर्नाटक विधानसभा में वर्ष 1920 के कानून को संशोधित करने के लिये एक विधेयक प्रस्तुत किया गया।

इस विधेयक के तहत रक्त के नमूने के साथ डीएनए, आवास तथा आइरिस स्कैन आदि की माप का प्रावधान किया गया था। इसके तहत मजिस्ट्रेट के अलावा पुलिस अधीक्षक या पुलिस उपायुक्त को आरोपी व्यक्ति से माप लेने हेतु आदेश देने का अधिकार दिया गया। हालाँकि, यह कर्नाटक राज्यपाल द्वारा इस विधेयक को राष्ट्रपति के पास विचार के लिये भेज दिया गया था परंतु इस विधेयक पर अभी तक राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं प्राप्त हुई है।

तमिलनाडु सरकार ने वर्ष 2010 में ‘कैदियों की पहचान ( तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम’ को अधिसूचित किया। यह अधिनियम पुलिस को वर्ष 1920 के अधिनियम में परिभाषित संदिग्धों और दोषियों की सीमित श्रेणियों से निर्दिष्ट माप के अलावा ‘रक्त के नमूने’ लेने की अनुमति देता है।

क्या करना चाहिए?

हाल के वर्षों में हो रहे आर्थिक, सामाजिक एवं तकनीकी विकास का + प्रभाव अपराधों की प्रकृति पर भी देखने को मिला है, ऐसे में जाँच प्रक्रिया में आधुनिक तकनीकों को बढ़ावा देकर आपराधिक न्याय प्रणाली को मज़बूत करना बहुत ही आवश्यक हो गया है।

हालाँकि यह कानून नागरिकों के मानवाधिकारों को प्रभावित कर सकता है, ऐसे में सरकार को इसमें व्याप्त अस्पष्टता को दूर करने के साथ इन अधिकारों के उल्लंघन के मामलों से निपटने एवं जनता में इस कानून के प्रति विश्वास स्थापित करने के लिये पर्याप्त उपाय करने चाहिये।

निष्कर्ष (Conclusion)

इस लेख के माध्यम से मैंने “Criminal Procedure Identification Bill 2022” के बारे में जानकारी दी है, यह लेख UPSC के MAINS और PRELIMS के लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है।

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