चर्चा में क्यों?
गुजरात के हड़प्पा कब्रिस्तान से 5,000 साल पहले के मृत्यु संस्कारों का पता चलता है। गुजरात के कच्छ में जूना खटिया गाँव से सबसे बड़े कब्रिस्तानों (Necropolises) में से एक में खुदाई से मिट्टी के बर्तन, मनकों के आभूषण, जानवरों की हड्डियाँ आदि जैसी मूल्यवान वस्तुओं के साथ कब्रों की पंक्तियों की खोज हुई है।
नेक्रोपोलिस क्या है?
एक नेक्रोपोलिस विस्तृत कब्र स्मारकों के साथ बड़े रूप में डिज़ाइन किया गया कब्रिस्तान है। यह नाम प्राचीन ग्रीक अर्थ ‘मृतकों का शहर’ (City of The Dead) से उपजा है। मिस्र में गीजा के पिरामिड नेक्रोपोलिस का एक उदाहरण है।
प्रमुख बिंदु
ये 3,200 ईसा पूर्व से 2,600 ईसा पूर्व तक के हैं, जो धौलावीरा (विश्व विरासत स्थल) और राज्य के कई अन्य हड़प्पा स्थलों से पहले के हैं।
यह स्थल महत्त्वपूर्ण है क्योंकि धौलावीरा जैसे अन्य स्थानों में एवं उसके आस-पास एक कब्रिस्तान है, लेकिन जूना खटिया के पास कोई बड़ी बस्ती नहीं खोजी गई है।
यह स्थल मिट्टी के टीले की कब्रों से पत्थर की कब्रों में संक्रमण को प्रदर्शित करता है।
इस स्थल से प्राप्त मिट्टी के बर्तनों की विशेषताएँ एवं शैली सिंध व बलूचिस्तान में प्रारंभिक हड़प्पा स्थलों की खुदाई के समान हैं।
कुछ कब्रगाह संरचनाओं में बेसाल्ट के पत्थरों को कवर के रूप में रखा गया है। विनिर्माण संरचनाओं के लिये स्थानीय चट्टान, बेसाल्ट आदि के पत्थरों का उपयोग किया गया और उन्हें एक साथ जोड़ने के लिये मिट्टी का उपयोग किया गया।
यहाँ से प्राप्त कलाकृतियाँ इस स्थल को गुजरात के अन्य पूर्व-शहरी हड़प्पा स्थलों के परिप्रेक्ष्य में स्थापित करती हैं।
धौलावीरा
यह दक्षिण एशिया में सबसे अनूठी और अच्छी तरह से संरक्षित शहरी बस्तियों में से एक है। इसकी खोज वर्ष 1968 में पुरातत्त्वविद् जगतपति जोशी द्वारा की गई थी।
पुरातत्वविद् रवींद्र सिंह बिष्ट की देखरेख में वर्ष 1990 और वर्ष 2005 के बीच इस जगह की खुदाई से प्राचीन शहर का पता चला। # माना जाता है कि 1,500 ईसा पूर्व में इस शहर के पतन और अंततः बर्बाद होने से पहले लगभग 1,500 वर्षों तक यह एक वाणिज्यिक एवं विनिर्माण केंद्र था।
पाकिस्तान के मोहनजोदड़ो, गनेरीवाला और हड़प्पा तथा भारत के हरियाणा में राखीगढ़ी के बाद धौलावीरा, सिंधु घाटी सभ्यता का पाँचवा सबसे बड़ा महानगर है।
इस स्थल में एक प्राचीन हड़प्पा शहर के खंडहर मौजूद हैं। इसके दो भाग हैं: एक चारदीवारी युक्त शहर और शहर के पश्चिम में एक कब्रिस्तान ।
- चारदीवारी वाले शहर में एक मज़बूत प्राचीर से युक्त एक दृढ़ीकृत गढ़/ दुर्ग और अनुष्ठानिक स्थल तथा दृढ़ीकृत मध्य शहर एवनिचला शहर स्थित है।
- गढ़ के पूर्व एवं दक्षिण में जलाशयों की एक श्रृंखला पाई जाती है।।
अवस्थिति
धौलावीरा का प्राचीन शहर गुजरात राज्य के कच्छ जिले में एक पुरातात्त्विक स्थल है, जो ईसा पूर्व तीसरी से दूसरी सहस्राब्दी तक का है।
धौलावीरा कर्क रेखा पर स्थित है। यह कच्छ जिले में खादिर बेट द्वीप पर अवस्थित है।
अन्य हड़प्पा पूर्वगामी शहरों के विपरीत, जो आमतौर पर नदियों और जल के बारहमासी स्रोतों के पास स्थित हैं, धौलावीरा खादिर बेट द्वीप पर स्थित है।
यह स्थल विभिन्न खनिज एवं कच्चे माल के स्रोतों (तांबा, कौड़ी. गोमेद कारेलियन, शैलखटी, सीसा, चूना पत्थर तथा अन्य) के दोहन हेतु महत्त्वपूर्ण थी। इसने मगन (आधुनिक ओमान प्रायद्वीप) और मेसोपोटामिया क्षेत्रों में आंतरिक एवं बाहरी व्यापार को भी सुगम बनाया।
पुरातात्त्विक परिणाम
यहाँ पाई गई कलाकृतियों में टेराकोटा मिट्टी के बर्तन, मोती, सोने और तांबे के गहने, मुहरें, मछलीकृत हुक, जानवरों की मूर्तियाँ, उपकरण, कलश एवं कुछ महत्त्वपूर्ण वर्तन शामिल हैं।
यहाँ से प्राप्त तांबे को गलाने वाली भट्ठी के अवशेषों से संकेत मिलता है कि धौलावीरा में रहने वाले हड़प्पावासी धातुकर्म (Metallurgy) के बारे में जानते थे।
ऐसा माना जाता है कि धौलावीरा के व्यापारी वर्तमान राजस्थान, ओमान तथा संयुक्त अरब अमीरात से तांबा अयस्क प्राप्त करते थे और निर्मित उत्पादों का निर्यात करते थे।
यह कौड़ियों (Shells) एवं गोमेद की तरह अर्द्ध कीमती पत्थरों से बने आभूषणों के निर्माण का भी केंद्र था तथा यहाँ से इमारती लकड़ी का भी निर्यात किया जाता था।
यहाँ सिंधु घाटी लिपि में खुदे हुए 10 बड़े पत्थरों के शिलालेख हैं जो शायद दुनिया के सबसे पुराने साइन बोर्ड हैं।
प्राचीन शहर के पास एक जीवाश्म पार्क है जहाँ काष्ठ जीवाश्म संरक्षित हैं।
अन्य हड़प्पाई स्थलों पर कब्रों के विपरीत धौलावीरा में मनुष्यों के किसी भी नश्वर अवशेष की खोज नहीं की गई है।
सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) की प्रमुख अंत्येष्टि प्रथाएँ
हालाँकि, विभिन्न स्थलों पर भिन्न-भिन्न, दफनाने की प्रथा के तीन ज्ञात प्रकार थे: पूर्ण अंत्येष्टि (Complete Burial), आशिक अंत्येष्टि (Fractional Burial) और कलश अंत्येष्टि (Um Burial) अर्थात दाह-संस्कार के बाद की राख को दफनाना।
सबसे आम अंत्येष्टि विधि एक साधारण गड्ढे या ईंट के कक्ष में उत्तर की ओर सिर करके शरीर को रखना था।
कब्र में शरीर के साथ भोजन, मिट्टी के बर्तन, औजार एवं आभूषण सहित सामान रखना।
लोथल से पुरुष एवं स्त्री के जोड़े को एक साथ दफनाने का साक्ष्य मिला है।
अंत्येष्टि प्रथाओं का अध्ययन करने का महत्त्व
इसके अंत्येष्टि संस्कारों, रीति-रिवाज़ों और रीति-रिवाजों के अध्ययन से इस संस्कृति में जीवन के बारे में कई विवरण सामने आए हैं। जो प्रदर्शित करते हैं कि दुनिया भर में लगभग सभी सभ्यताओं में जीवन के बाद की प्राचीन वस्तुओं को शरीर के साथ दफनाया जाता है।
लैंगिक अंतरः पुरुष कब्रों में अधिक संख्या में संकल्प/मन्नत के बर्तन (चढ़ाने के बर्तन) इंगित करते हैं कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर नहीं माना जाता था।
वर्ग विविधताः कई सामाजिक वर्गों की महिलाओं की कब्रों पर आभूषण पाए गए, जिनमें तांबे, शंख और रत्नों से बने हार एवं चूड़ियाँ शामिल हैं।
अन्य सभ्यताओं के साथ संबंध: पुरातत्त्वविद संकल्प/मन्नत के बर्तनों में राखी गई वस्तुओं के बारे में यह मानते हैं कि जीवन के बाद भी ये वस्तुएँ उस व्यक्ति के उपयोग के लिये थीं। कुछ अंत्येष्टि प्रथाएँ उनकी समकालीन मिस्र की सभ्यता के समान हैं।