राष्ट्रीय खुदरा व्यापार नीति का मसौदा (Draft National Retail Trade Policy)

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय का ‘उद्योग संवर्द्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग’ (Department for Promotion of Industry and Internal Trade-DPIIT) ने राष्ट्रीय खुदरा व्यापार नीति के मसौदे पर सुझाव आमंत्रित किये हैं।

प्रमुख बिंदु

DPIIT की इस मसौदा नीति में खुदरा व्यापार के समग्र विकास के लिये विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा और सतत माहौल प्रदान करने हेतु रणनीति तैयार करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

गौरतलब है कि भारत खुदरा क्षेत्र में दुनिया का पाँचवाँ सबसे बड़ा वैश्विक गंतव्य है।

इस नीति के उद्देश्य

किफायती ऋण तक आसान एवं त्वरित पहुँच सुनिश्चित करना।

आधुनिक तकनीक और बेहतर ढाँचागत समर्थन के माध्यम से खुदरा व्यापार के आधुनिकीकरण व डिजिटलीकरण को सुगम बनाना। समग्र आपूर्ति शृंखला में भौतिक बुनियादी ढाँचे का विकास करना ।

कौशल विकास को बढ़ावा देना और श्रम उत्पादकता में सुधार करना ।

एक प्रभावी परामर्श और शिकायत निवारण तंत्र प्रदान करना।

भारत में खुदरा व्यापार का आर्थिक महत्त्व |

यह देश के सकल घरेलू उत्पाद में 12% से अधिक का सकल मूल्य योगदान करता है। इस तरह यह भारत की अर्थव्यवस्था में तीसरा सबसे बड़ा क्षेत्रक है।

खुदरा क्षेत्रक पाँच करोड़ से अधिक कामगारों को प्रत्यक्ष रोज़गार प्रदान करता है। साथ ही, यह भंडारण, लॉजिस्टिक, निर्माण और पैकेजिंग जैसे क्षेत्रकों में बड़ी संख्या में अप्रत्यक्ष रोजगार भी पैदा करता है।

इस नीति का महत्त्व

ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देना: यह नीति खुदरा व्यापार को सुव्यवस्थित करेगी और खुदरा व्यापार क्षेत्र में व्यापार को सुगम बनाने में सहायता करेगी।

ई-कॉमर्स : यह पूरे देश में ई-कॉमर्स को बढ़ावा देगी।

रोजगार सृजन: यह देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये एक -उपकरण के रूप में खुदरा व्यापार का लाभ उठाएगा। एक सामंजस्यपूर्ण राष्ट्रीय खुदरा नीति वर्ष 2024 तक 30 लाख रोजगार उत्पन्न करने में मदद कर सकती है।

कौशल विकासः यह कौशल विकास को प्रोत्साहित करेगी और खुदरा व्यापार में शामिल समाज के सभी वर्गों के लिये रोज़गार के अधिक अवसर पैदा करेगी।

आधारभूत संरचना: यह खुदरा व्यापार उद्योग को प्रभावित करने वाले मौजूदा बुनियादी ढाँचे के अंतराल की पहचान करेगी और उसे संबोधित करेगी।

निवेशः यह देश भर के अविकसित क्षेत्रों में निवेश प्रवाह को गति देगी। खुदरा उद्योग को वर्ष 2032 तक लगभग 2 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँचने के लिये 10% वार्षिक वृद्धि बनाए रखने की ज़रूरत होगी।

सभी विक्रेताओं के लिये लाभकारी: यह छोटे विक्रेताओं के लिये साख तक पहुँच प्रदान करने के साथ-साथ बड़े, संगठित खुदरा विक्रेताओं को त्वरित स्वीकृति प्रदान करके एक समान अवसर प्रदान करेगा।

महिला सशक्तीकरणः खुदरा उद्योग भारत में महिलाओं के सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है, जो कुल कार्यबल का लगभग 25-30% है।

भारत के खुदरा उद्योग में प्रमुख चुनौतियाँ

असंगठित क्षेत्र: भारतीय खुदरा क्षेत्र अत्यधिक विखंडित है और असंगठित क्षेत्र में लगभग 13 मिलियन रिटेल आउटलेट हैं जो कुल भारतीय खुदरा उद्योग का लगभग 96% है।

उच्च जटिलताएँ: कई कानून, कार्यान्वयन में राज्य-स्तरीय बाधाएँ, खुदरा विक्रेताओं के लिये अत्यधिक जटिलता उत्पन्न करती हैं, विशेष रूप से अखिल भारतीय फुटप्रिंट वाले खुदरा विक्रेताओं के लिये। इससे खुदरा विक्रेताओं के लिये एक व्यापक अखिल भारतीय नीति सुनिश्चित करना अनिवार्य हो जाता है।

प्रौद्योगिकी अपनाने का अभावः भारतीय खुदरा दुकानों के सामने प्रौद्योगिकी की उपलब्धता, व्यवहार्यता और अपनाने की प्रमुख चुनौतियाँ हैं।

बुनियादी ढाँचा और रसद की कमी: अकुशल बुनियादी ढाँचे और रसद के परिणामस्वरूप अक्षम प्रक्रियाएँ होती हैं।

कुशल कार्यबल की कमीः भारतीय संगठित खुदरा व्यापारी अपनी बिक्री का 7% से अधिक कार्मिक लागत पर खर्च करते हैं। खुदरा उद्योग को 50% तक संघर्षण दर (Attrition Rate) का सामना करना है जो अन्य क्षेत्रों की पड़ता तुलना में बहुत अधिक है।

खुदरा क्षेत्रक को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार द्वारा की गई पहलें

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, प्रधानमंत्री जन-धन योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से वित्त तक बेहतर पहुँच सुनिश्चित कराई जा रही है।

वेयरहाउसिंग और लॉजिस्टिक्स को अवसंरचना का दर्जा प्रदान करके अवसंरचना विकास पर बल दिया जा रहा है। इसके अलावा ‘मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क्स’ विकसित किये जा रहे हैं, स्मार्ट सिटीज़ मिशन का क्रियान्वयन किया जा रहा है आदि।

डिजिटल इंडिया कार्यक्रम जैसी पहलों के माध्यम से प्रौद्योगिकी को प्राथमिकता दी जा रही है।

आगे की राह

DPIIT देश में ऑनलाइन खुदरा क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिये एक राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति तैयार करने पर भी काम कर रहा है। साथ ही एक नई औद्योगिक नीति भी प्रस्तावित है जो वर्ष 1956 में पहली और वर्ष 1991 में दूसरी के बाद तीसरी औद्योगिक नीति होगी।

सरलीकरण, मानकीकरण और डिजिटलीकरण के स्तंभों पर निर्मित एक सामंजस्यपूर्ण खुदरा नीति महत्त्वपूर्ण विकास का मार्ग प्रशस्त करेगी और अल्पकालिक आर्थिक सुधार में तेजी लाएगी।

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