भारत के वैदिक धर्म को ही हिन्दू धर्मं कहा जाता है । इस धर्म का समय-समय पर विकास होता रहा और इसकी अनेक शाखायें बनती गई । आर्यों के प्रारम्भिक काल में यह ऋग्वैदिक धर्म, उत्तर वैदिक काल में आर्य धर्म या वर्णाश्रम धर्म, गुप्तकाल में हिन्दू धर्म या वैष्णव धर्म, राजपूत काल में कुल धर्म कहलाया । गुप्तकाल में इस धर्म की विशेष उन्नति हुई । इस धर्म की अनेक शाखायें हैं, जिनमें शैव धर्म वैष्णव धर्म, आदि प्रमुख हैं, जिनका अध्ययन हम आगे करेंगे ।
विशेषतायें – हिन्दू धर्म की प्रमुख विशेषतायें इस प्रकार हैं-
(1) हिन्दू धर्म बहु देववादी है। इसमें तीन देवताओं ब्रह्मा (संसार के निर्माता), विष्णु (संसार के रक्षक), और शिव (संसार के संहार कर्ता) को विशेष ध्यान दिया जाता है।
(2) हिन्दू धर्म अवतारवाद में विश्वास रखता है। इसके अनुसार अब तक ईश्वर के नौ अवतार हो चुके हैं।
(3) गुप्तकाल में हिन्दू धर्म में मूर्तिपूजा का प्रचलन शुरू हो गया । इन मन्दिरों में अनेक देवी-देवताओं मूर्तियों की पूजा हिन्दू लोग करते हैं।
(4) हिन्दू धर्म विश्व के सर्वोच्च सत्ता के रूप में ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करना है।
(5) हिन्दू धर्म के सिद्धान्त और पुनर्जन्म के सिद्धान्त को स्वीकार करता है
(6) हिन्दू धर्म के तीन मुख्य लक्ष्य धर्म, अर्थ और काम है। इन लक्ष्यों के सही अनुमरण से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
(7) हिन्दू धर्म के अनुसार भोक्ष प्राप्ति के तीन मार्ग है। कर्ममार्ग में धार्मिक कर्मकाण्ड और यज्ञ आदि ठीक प्रकार से करने का प्रतिपादन किया गया। ज्ञान मार्ग में ज्ञान की प्राप्ति मोक्ष का साधन माना गया है और भक्ति मार्ग में किसी एक देवता विष्णु, कृष्ण अथवा राम की भक्ति पर बल दिया गया है।
(8) हिन्दू धर्म की एक अन्य विशेषता वर्णाश्रम व्यवस्था है। इसे जनसाधारण का में जाति प्रथा कहा जाता है।
(9) हिन्दु धर्म मानव प्रेम सदाचार, समानता, सहनशीलता, उदारता और सदाचार पर विशेष बल देता देता है।
(10) हिन्दू धर्म के अनेक ग्रन्थ है, जिनमें वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, भगवद् गीता, पुराण आदि प्रमुख है।
हिन्दू धर्म के विभिन्न सम्प्रदाय- हिन्दू धर्म में अनेक सिद्धान्तों, दार्शनिक विचारों और रीति रिवाजों का समावेश है। इसलिए इसमें अनेक सम्प्रदाय बन गये। हम यहाँ उनमें से कुछ महत्वपूर्ण समुदायों का वर्णन करेंगे ।
(i) वैष्णव सम्प्रदाय- वैदिक देवताओं में विष्णु का कोई महत्वपूर्ण स्थान न था, परन्तु धीरे-धीरे उन्हें सर्वश्रेश्ठ देवता अर्थात् ईश्वर (परमात्मा) मान लिया गया। भगवद् गीता, महाभारत और पुराणों में वर्णित कृष्ण को विष्णु को अपना अवतार माना गया। गुप्तकाल में वैष्णव सम्प्रदाय काफी लोकप्रिय हो गया। इस सम्प्रदाय के अनुसार भगवान विष्णु संसार को पाप से मुक्त करने के लिए पृथ्वी पर बार-बार अवतार लेते है। है । लोग विष्णु के दस अवतारों में विश्वास रखते है। उनके अनुसार विष्णु का दसवां अवतार कभी होना है।
(ii) सैव सम्प्रदाय- इस सम्प्रदाय के लोग शिव (शंकर) को ही ईश्वर मानते हैं। यद्यपि शिव की गणना वैदिक देवताओं में नहीं की जाती, फिर भी सिन्धु घाटी के मिली पशुपति की मूर्ति सम्भवत, शिव का हो प्रतिरूप है। शैव सम्प्रदाय दक्षिण भारत में अधिक लोकप्रिय है। दक्षिण भारत के नायनार सन्तों ने शिव की स्तुति में अनेक भजनों की रचना की है।
(iii) शाक्त सम्प्रदाय – सिन्धु घाटी में मातृ देवी की उपासना के प्रमाण मिले है। बाद में एक पुरुष देवता की पत्नी के रूप में इस देवी की पूजा होने लगी। इस सम्प्रदाय के लोग उमा, दुर्गा, भवानी, अनपूर्णा, काली, कराली, चामुण्टा का चण्डी देवियों की शक्ति के रूप में पूजा करते हैं। पूर्वी भारत में यह सम्प्रदाय काफी लोकप्रिय है।