How Many Military Satellites Does India Have?

Military Satellites Of India (भारत के सैन्य उपग्रह)

रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC)

सशस्त्र बलों की स्वीकृत आवश्यकताओं की शीघ्र खरीद सुनिश्चित करने के उद्देश्य से वर्ष 2001 में रक्षा अधिग्रहण परिषद की स्थापना की गई थी।

DAC की अध्यक्षता रक्षा मंत्री द्वारा की जाती है।

उल्लेखनीय है कि DAC अधिग्रहण संबंधी मामलों पर निर्णय लेने वाली रक्षा मंत्रालय की सर्वोच्च संस्था है।

GSAT 7 उपग्रह श्रृंखला

वर्तमान तक, GSAT-7 ( रुक्मिणी) और GSAT- 7A (एंग्री बर्ड) भारत के केवल दो समर्पित सैन्य उपग्रह हैं जिनका विकास क्रमश: नौसेना और वायुसेना के लिये किया गया था।

GSAT 7 (रुक्मिणी )

जीसैट 7 उपग्रह रक्षा सेवाओं की संचार जरूरतों को पूरा करने हेतु भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) द्वारा विकसित उन्नत उपग्रह है।

इसे अगस्त 2013 में फ्रेंच गुयाना के कौरौ से एरियन 5 ECA रॉकेट से लॉन्च किया गया था।

यह 2,650 किलोग्राम का उपग्रह है। इसका उपयोग मुख्य रूप से भारतीय नौसेना द्वारा अपनी संचार आवश्यकताओं के लिये किया जाता है। जीसैट-7 सभी नौसैनिक अभियानों के लिये प्राथमिक संचार कड़ी है।

इसमें मल्टी-बैंड संचार सहित लो बिट वॉयस रेट (Low Bit Voice Rate) से लेकर हाई बिट वॉयस रेट (High Bit Voice Rate) डेटा सुविधाएँ शामिल हैं।

यह उपग्रह अल्ट्रा हाई फ्रीक्वेंसी (UHF), सी-बैंड और केयू-बैंड (KU Band) में पेलोड ले जाने में सक्षम है तथा नौसेना को अपने भूमि प्रतिष्ठानों, सतही जहाजों, पनडुब्बियों और विमानों के बीच एक सुरक्षित, वास्तविक समय संचार स्थापित करने में मदद करता है।

  • अल्ट्रा हाई फ्रीक्वेंसी (UHF), सी-बैंड और केयू-बैंड विभिन्न प्रकार के सैटेलाइट फ्रीक्वेंसी बैंड हैं।

उपग्रह को 249 किमी. पेरिंगी (पृथ्वी से निकटतम बिंदु), 35,929 किमी. अपोजी (पृथ्वी से सबसे दूर बिंदु) तथा भूमध्य रेखा के संबंध में 3.5 डिग्री के झुकाव की भू-तुल्यकालिक स्थानांतरण कक्षा (GTO) में अंतः स्थापित किया गया था।

GSAT 7A ( एंग्री बर्ड)

यह भारतीय वायुसेना के लिये एक समर्पित उपग्रह है।

GSAT 7A को वर्ष 2018 में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था और इसने भारतीय वायुसेना के ग्राउंड रडार स्टेशनों, एयरबेस और एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल एयरक्राफ्ट (AEW-C) के बीच कनेक्टिविटी को बढ़ाने में एक लंबा सफर तय किया है।

यह मानवरहित हवाई वाहनों (Unmanned Aerial Vehicles-UAVs) के उपग्रह नियंत्रित संचालन में भी मदद करता है जो भूमि नियंत्रित संचालन की तुलना में अधिक विश्वसनीयता प्रदान करता है।

इस उपग्रह में मोबाइल उपयोगकर्त्ताओं के लिये स्विचेबल आवृत्ति (Switchable Frequency) के साथ केयू बैंड में 10 चैनल हैं, एक निश्चित ग्रेगोरियन या परवलयिक एंटीना और चार स्टीयरेबल एंटीना हैं।

GSAT 7B

जीसैट 7B मुख्य रूप से सेना की संचार ज़रूरतों को पूरा करेगा। वर्तमान में, सेना GSAT 7A उपग्रह की संचार क्षमताओं का 30 प्रतिशत उपयोग कर रही है।

यह सेना का पहला विशेष संचार उपग्रह होगा।

जीसैट 7B सीमावर्ती इलाकों में सेना की निगरानी बढ़ाने में भी मदद करेगा।

जीसैट 7B उपग्रह, जो सेना की लंबे समय से लंबित मांग रही है, अगले दो-तीन वर्षों में लॉन्च किया जाएगा और न केवल बल के भीतर बल्कि अन्य दो सेवाओं- नौसेना और वायुसेना के भीतर भी एकीकृत संचार प्रदान करेगा।

GSAT 7C

पिछले साल नवंबर 2021 में, DAC GSAT- 7C उपग्रह के लिये भारतीय वायुसेना (IAF) के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी।

यह उपग्रह भारतीय वायुसेना के सॉफ्टवेयर परिभाषित रेडियो संचार सेट के साथ वास्तविक समय संचार की सुविधा प्रदान करेगा।

इसके अलावा सुरक्षित मोड में दृश्य सीमा से परे संचार स्थापित करने में भारतीय वायुसेना की क्षमता को बढ़ाएगा।

भारत के पास अन्य सैन्य उपग्रह

एमीसैट (EMISAT): इसरो द्वारा विकसित इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंटेलिजेंस गैदरिंग सैटेलाइट (EMISAT) को अप्रैल 2020 में पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV-C45) के माध्यम से लॉन्च किया गया था।

इसमें कौटिल्य नामक एक इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस (ELINT) पैकेज है जो भूमि-आधारित रडार के अवरोधन (Interception) की अनुमति देता है और पूरे भारत में इलेक्ट्रॉनिक निगरानी भी करता है।

  • ELINT पैकेज रडार को दिशा की खोज करने में सहायता प्रदान करता है और उनके स्थानों को फिक्स करता है।
  • इसे 748 किलोमीटर की कक्षा में स्थापित किया गया है तथा यह इज़राइली उपग्रह प्रणाली पर आधारित है।
  • यह उपग्रह पृथ्वी का पोल-टू-पोल चक्कर लगाता है और भारत के
  • साथ सीमा वाले देशों के रडार से जानकारी एकत्र करने में सहायक है।

RISAT 2BR1: भारत के पास RISAT 2BR1 सिंथेटिक अपर्चर रडार इमेजिंग उपग्रह भी है जिसे दिसंबर 2019 में श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था।

जीसैट 7B का महत्त्व

वर्तमान तक भारतीय सेना जीसैट- 7A और अन्य उपग्रहों पर निर्भर रही है, लेकिन इस नई अत्याधुनिक तकनीक से सेना, आकाश में नए अवसरों को पहचान करने में सक्षम हो सकेगी।

भारत की विशाल और जटिल स्थलाकृति पर निरंतर उपग्रह कवरेज से भारतीय सेना को शांति बनाए रखने और आवश्यकता पड़ने पर सुरक्षा अभियान चलाने में मदद मिलेगी।

ऐसा उपग्रह भारतीय सेना के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण होगा क्योंकि वर्तमान में इसकी सीमाओं पर चीन और पाकिस्तान के दोहरे खतरे का सामना करना पड़ रहा है।

इस तरह के उपग्रह के उपयोग का अर्थ यह भी होगा कि सेना के रेडियो संचार उपकरणों की विशाल श्रृंखला एक ही मंच के तहत आ सकती है।

उपग्रह दूर-दराज के स्थानों के बीच संचार को भी सक्षम करेगा, सेना के नेटवर्क को बढ़ावा देगा और इसे और अधिक युद्ध के लिये तैयार करेगा।

ये उपग्रह न केवल संचार के लिये होंगे बल्कि भारत की सीमाओं की चौबीसों घंटे निगरानी (एक ऐसी विशेषता जिसका देश में वर्तमान में अभाव है) भी प्रदान करेंगे।

भारत अपनी सीमाओं, विशेष रूप से चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर विकास पर नजर रखने के लिये, वाणिज्यिक उपग्रहों के अलावा. अपने स्वयं के उपग्रहों और मित्र राष्ट्रों के उपग्रहों का उपयोग करता है।

निष्कर्ष

जीसैट-7B सही दिशा में एक कदम है, परंतु अभी भी भारत को अंतरिक्ष युद्ध में लाभ या श्रेष्ठता की स्थिति बनाए रखने के लिये एक लंबा रास्ता तय करना है।

जब अंतरिक्ष क्षेत्र की बात आती है तो चीन पहले से ही इस क्षेत्र में महाशक्ति के रूप नजर आता है और वह पहले से ही अंतरिक्ष कार्यक्रमों में भारी निवेश कर रहा है। चीन के पास लगभग 300 परिचालन उपग्रह हैं।

जैसे-जैसे युद्ध तेजी से तकनीक उन्मुख होता जा रहा है, निर्वाध और सुरक्षित नेटवर्क संचार एक प्रमुख तत्त्व के रूप में उभर कर आते हैं। भारत अगले दो-तीन वर्षों में कई उपग्रहों को लॉन्च करने का लक्ष्य बना रहा है।

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