सिंधु घाटी की सभ्यता (Indus Valley Civilization In Hindi) UPSC

सिंधु घाटी की सभ्यता (Indus Valley Civilization)

विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में कौन-सी सभ्यता सबसे अधिक प्राचीन है, यह कहना बड़ा कठिन है। लेकिन विद्वानों का अनुमान है कि इन सभी सभ्यताओं का विकास स्वतंत्र ढंग से हुआ होगा और पारस्परिक मेल-मिलाप के कारण इन सभ्यताओं ने एक दूसरे को प्रभावित किया होगा। हम इन सभ्यताओं का अध्ययन, भारत की सिन्धु घाटी की सभ्यता से प्रारम्भ करना उपयुक्त समझते हैं।

1. सिन्धु सभ्यता की खोज (Discovery of Indus Civilization) 

कुछ समय पहले यह माना जाता था कि भारत में सभ्यता के युग का प्रारम्भ आर्यों के आने से हुआ था, परन्तु 1621-22 ई० में ‘सर जॉन मार्शल’ की अध्यक्षता में श्री राखालदास बनर्जी और श्री दयाराम साहनी ने पंजाब प्रान्त में स्थित मांटगुमरी व लरकाना जिलों में हड़प्पा व मोहनजोदड़ों नामक स्थान पर खुदाई करवायी।

इस खुदाई से ऐसे असंख्य अवशेष प्राप्त हुये, जिनसे पता चलता है कि आज से कोई 5 हजार वर्ष पूर्व भारत में एक प्राचीन सभ्यता विद्यमान थी । इस सभ्यता का विस्तार सिन्धु नदी की घाटी के आस-पास होने के कारण इसे सिन्धु सभ्यता (Indus Civilization) का नाम दिया गया।

2. सिंधु घाटी सभ्यता स्थल (Indus Valley Civilization Sites)

सिन्धु सभ्यता का विस्तार हडप्पा, मोहन जोदड़ो (लरकाना व माण्टगोमरी जिले), चन्द्रदड़ो, अमरी, नाल, रोपड़, आधुनिक बिलोचिस्तान, उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रान्त, पंजाब, सिन्धु, सौराष्ट्र, राजस्थान तथा गंगा नदी की उत्तरी पाठों तक फैला हुआ था।

मोहन जोदड़ों में सात तहों वाला एक टीला मिला है, जिसे ‘मृतकों का टीला’ कहा जाता है। विद्वानों अनुमान है कि हडप्पा और मोहनजोदड़ो इस सभ्यता के दो प्रमुख नगर और सम्भवतया यो भित प्रदेशों को राजधानी थे।

3. सिन्धु सभ्यता की सामग्री (Source Material of Indus Civilization)

सिन्धु घाटी के प्रदेशों की खुदाई से अनेक भवनों, मकानों, सड़कों, नालियों, स्नानागारों, कुओं आदि के अवशेष मिले हैं। इस क्षेत्र से अनेक मूर्तियाँ, आभूषण, खिलौने, मोहरें तथा नाना प्रकार की असंख्य वस्तुयें मिली हैं, जिनका अध्ययन व निरीक्षण करके विद्वानों ने सिन्धु सभ्यता के अन्तर्गत मानव जीवन की विशेषताओं पर प्रकाश डालने का प्रयत्न किया है।

4. सिन्धु सभ्यता का काल (Period of Indus Civilization)

जॉन मार्शल का कहना है कि सिन्धु सभ्यता लगभग 5 हजार वर्ष पुरानी है, परन्तु अभी तक सिन्धु निवासियों की लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है, इसलिए इस सभ्यता की तिथि के सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन विद्वानों ने मेसोपोटामिया व विध की सभ्यता के अवशेषों के आधार पर यह अनुमान लगाया है कि सिन्धु सभ्यता का सम्बन्ध इनके साथ अवश्य रहा होगा। लेकिन मिश्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता की तिथि 3200 ईसा पूर्व से 2450 ईसा पूर्व मानी गई है।

इसलिए यह अनुमान लगाया गया है कि सिन्धु सभ्यता भी 3200 से 2450 ईसा पूर्व की ही रही होगी और वह आज से कोई ५ हजार वर्ष पुरानी होगी। इसके अतिरिक्त मोहनजोदड़ो की खुदाई करने पर सात सतहें मिट्टी के नीचे पानी तक निकली है। प्रत्येक सतह को 500 वर्ष का समय दिया गया है। इस प्रकार से भी सिन्धु सभ्यता ईसा से 3500 वर्ष पुरानी मानी जा सकती है।

5. सिन्धु सभ्यता के निवासी और निर्माता (Citizen and Founder of Indus Civilization)

सिन्धु सभ्यता के मूल निवासी और निर्माता कौन थे ? इस सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ भी कहना कठिन है। इस सम्बन्ध में निम्न मत प्रचलित है-

  1. अधिकांश विद्वानों का मत है कि सिन्धुवासी आर्य नहीं थे और शायद वे असुर लोग थे। जिन्हे आर्यों ने बाद में हराकर भगा दिया था।
  2. सर जॉन मार्श के अनुसार सिन्धु घाटी में अनेक जातियों के लोग निवास करते थे।
  3. भाषा विशेषज्ञों ने भाषा व बोली के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि सिन्धु प्रदेश के मूल निवासी थे।
  4. कुछ विद्वानों का यह भी कहना है कि यहाँ के मूल निवासी आर्य ही थे और यहीं से वे लोग पश्चिमी एशिया के देशों में गये।

6. सिन्धु सभ्यता का विनाश (End of Indus Civilization)

सिन्धु सभ्यता का विनाश कब और कैसे हुआ इस सम्बन्ध में कोई निश्चित उत्तर देना कठिन है। विद्वानों में इस सभ्यता के विनाश के निम्न कारण माने है-

  1. सिन्धु नदी में आयी किसी भयंकर बाढ़ ने इस सभ्यता को मिटा दिया होगा।
  2. सिन्धु नदी ने अपना मार्ग बदल कर इस सभ्यता को नष्ट कर दिया होगा ।
  3. सिन्धु प्रदेश के स्थल बन जाने से यह सभ्यता नष्ट हो गयी होगी ।
  4. किसी भयंकर भूकम्प के कारण यह सभ्यता जमीन में दब गई होगी
  5. आय अथवा किसी अन्य आक्रमणकारी जाति ने बार-बार आक्रमण करके इस सभ्यता का नामो निशान मिटा दिया होगा ।

7. सिन्धु सभ्यता की विशेषतायें (Salient Features of Indus Civilization )

खुदाई से प्राप्त अवशेषों और विभिन्न वस्तुओं के आधार पर विद्वानों ने सिन्धु सभ्यता की प्रमुख विशेषताओं का अनुमान लगाया है, जो निम्नलिखित हैं-

1. सुनियोजित नगर व्यवस्था

हडप्पा व मोहनजोदड़ो में मिले नगरों के खण्डहरों को देखने से पता चलता है कि सिन्धु निवासी नगर स्थापना में बड़ी कुशल थे। मोहनजोदड़ो का नगर 10 वर्ग किलोमीटर से भी अधिक क्षेत्र में एक निश्चित योजना के अनुसार बसाया गया था।

नगर की सड़कें 13 फीट से लेकर 333 फ़ीट तक चौड़ी थीं । अन्य सड़के 9 फुट से 13 फुट तक चौड़ी थीं। सड़कों के दोनों और भवन व मकान बने हुये थे, जिनमें गलियों की सुन्दर व्यवस्था थी। नगर की सड़क चौराहों पर एक-दूसरे को काटती थीं। चार फुट चौड़ी गलियों में हवा के आवागमन की अच्छी व्यवस्था थी।

2. भवन निर्माण

खुदाई से मिले अवशेषों को देखकर यह कहा जा सकता है कि सिन्धुवासी भवन व मकान निर्माण की कला में दक्ष थे। उस समय एक कमरे के मकान से लेकर बड़े-बड़े भवन बनाये जाते थे । इस काल में भवन तीन प्रकार के होते थे

  1. रहने के घर
  2. पूजा गृह या सार्वजनिक स्थान
  3. विशाल स्नानागार

निवास स्थान वाले मकान कई प्रकार के बनाये जाते थे, जिनके निर्माण में पक्की ईटों व मिट्टी आदि का प्रयोग होता था। मकान कई मंजिलों के होते थे और उनमें ऊपर जाने के लिए सीढियाँ होती थीं। मकानों में हवा और प्रकाश आने के लिए पर्याप्त खिड़कियां और रोशनदान होते थे। मकान के दरवाजे जिनकी चोड़ाई 3 फुट से 7 फुट हुआ करती थी, और गली की ओर खुलते थे। मकानों की दीवारें मोटी होती थी और छतों को सरकण्डों की चटाइयों से ढककर उन्हें मिट्टी के गारे से लेप दिया जाता था प्रत्येक मकान में कुआँ, रसोईंघर व स्नान गृह अवश्य होते थे। मकान में बरामदे शौचालय भी होते थे ।

3. सार्वजनिक भवन और विशाल स्नानागार

मोहनजोदड़ो में अनेक बड़े-बड़े सार्वजनिक थे, जिनमें स्तम्भों वाला हाल तथा राज्य बन्न संग्रहालय विशेष उल्लेखनीय है। इन भवनों में सम्भवतः राज्य कार्य चलाने के लिए सभा के अधिवेशन हुआ करते थे

खुदाई में मोहनजोदड़ो में एक विशाल स्नाभावार प्राप्त हुआ है, जो 180 फुट चौड़ा और फुट गहरा है। इसके चारों ओर बरामदों में अनेक कमरे बने हुए हैं। इस स्नानागार के पास एक कुआँ है, जिसका पानी इस स्नानागार को भरने के लिए प्रयोग में लाया जाता था। स्नानागार में उतरने के लिए सीड़ियाँ बनी हुई थी और गन्दे पानी की निकासी की सुन्दर व्यवस्था थी। विद्वानों का अनुमान है कि धार्मिक अवसरों पर लोग इसमें नहाने के लिए जाते होंगे

4. कुशल नागरिक प्रवन्ध

नगर की सफाई का प्रबन्ध एक व्यक्ति अथवा किसी कमेटी के हाथ में था, यह कहना कठिन है। लेकिन इतना अवश्य है कि सिन्धुवासी नगर की सफाई व स्वच्छता के प्रति बड़े जागरूक थे। किसी बर्तन पकाने की मिट्टी को नगर के अन्दर नहीं बनने दिया जाता था, गलियों में रोशनी का विशेष प्रबन्ध था। यात्रियों के लिए सरायों व नागरिकों की सुरक्षा के लिए पहरे की व्यवस्था थी। नगर का कूड़ा-करकट बाहर फेंका जाता था । गलियों के किनारे पर कूड़ा डालने के लिए स्थान बने होते थे

5. जल-निकासी की व्यवस्था (Drainage System Of Indus Valley Civilization)

सिन्धुवासियों ने नगर में जल निकासी की सुन्दर व्यवस्था की थी। नालियाँ पक्की व ढकी हुई थीं। घरों की छोटी-छोटी नालियाँ गलियों को बड़ी-बड़ी नालियों में मिलती थी और वही नालियां बड़े नालों से मिलकर सारे नगर का गन्दा पानी निकालती रहती थी।

6. कलाओं का विकास

खुदाई में मिली वस्तुओं को देखने से पता चलता है कि सिन्धुवासी अनेक कलाओं में निपुण थे।

(a) मूर्ति कला- सिन्धु घाटी में मनुष्यों तथा पशुओं की अनेक मूर्तियां मिली हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि सिन्धुवासी मूर्ति कला में बड़े दक्ष थे। यह मूर्तियाँ मिट्टी पत्थर तथा कांसे की बनायी जाती थी और उन्हें रंगा भी जाता था। सिन्धु घाटी में पक्षियों व पशुओं की आकृतियों के बच्चों के बहुत से खिलाने भी मिले है। इन मूर्तियों में जीवन की स्पष्ट झलक दिखाई पड़ती है और इनमें शरीर के विभिन्न अंगों को स्पष्ट और वास्तविक रूप में दिखाया गया है।

(b) चित्रकला- सिन्धु घाटी की सभ्यता में बर्तनों पर चित्र- कारी करने का रिवाज था प्रायः बेल-बूटे, पशु-पक्षी तथा पेड़ पत्तियों के चित्र बनाये जाते थे। खुदाई में हमे भेस, नील गाय, तथा बैल के चित्र मिले हैं।

(c) मुहरें- खुदाई में 600 के लगभग मुहरें मिली है। यह राख, पत्थर तथा चमड़ा इत्यादि पर बनी हुई है। इनमें बहुत सी पाषाण मूर्ति (मोहनजोदड़ों मुहरों पर विभिन्न प्रकार के चित्र बने हुए है, जैसे साण्ड, हाथी, बारहसिंघा इत्यादि। इनपे अंकित लेख अभी तक नहीं पढ़े जा सके हैं।

(d) नृत्य कला- खुदाई से निकली एक मूर्ति नृत्य के हाव-भाव को व्यक्त करती दिखाई देती है। इससे पता चलता है कि उस समय नृत्य का भी रिवाज था ।

(e) सामाजिक और आर्थिक जीवन- मोहनजोदड़ो व हड़प्पा से मिली वस्तुओं को देखकर सिन्धुवासियों के सामाजिक और आर्थिक जीवन का अनुमान लगाया गया है।

(f) भोजन- सिन्धुवासियों का भोजन बड़ा सादा था । गेहूं, जौं, दूध और उनसे बनी चीजों का अधिक प्रयोग करते थे । वे सब्जियों तथा मांस-मछली का भी प्रयोग करते थे ।

(g) पहनावा और आभूषण- खुदाई में बहुत सी कलियाँ मिली हैं, जिनसे यह अनुमान लगाया गया है कि सिन्धुवासी सूती और ऊनी कपड़ा बनाना जानते थे। वस्त्रों को छोटे-मोटे अवशेषों से पता चलता है कि इस काल में पुरुष लोग धोती पहनते थे और चादर या शाल को कन्धों पर डाले रहते थे। स्त्रियों की पोषाक के बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है।

आभूषण स्त्रियों व पुरुषों दोनों को प्रिय थे। इन आभूषणों में अंगूठी, हार, कड़े, करधनी और कुण्डल प्रमुख थे। आभूषण सोना, चाँदी, कीमती पत्थर, हावी दांत, घोंघा तथा हड्डियों आदि से बनाये जाते थे।

(h) केश विन्यास श्रृंगार- सिन्धुवासी सुन्दरता व श्रृंगार के प्रेमी थे। वे बालों को बाँधने के लिए कई ढंगों का प्रयोग करते थे। उनमें छोटी-छोटी दाढ़ी रखने तथा दाढ़ी साफ करवाने का रिवाज था। खुदाई में दोनों ओर से चलने वाले उस्तरे मिले हैं और हाथी दांत, हडिडयों तथा धातुओं के बने कांटे व कंघियाँ भी मिली है। इस काल की स्त्रियां रिवन द्वारा बालों का बूटा बांघती थीं और अनेक प्रकार के सुगन्धित तेल, पाउडर तथा लाली आदि का प्रयोग करती थीं।

(i) उद्योग एवं व्यापार- सिन्धु निवासियों का मुख्य व्यवसाय खेती करना था। वे गेहूं तथा जो आदि खेती करते थे और बैल, बकरी, सुअर, ऊंट आदि घरेलू पशुओं तथा बन्दर, सरपोस बादि जंगली घरेलू पशुओं को पालते थे । उनके अन्य उद्योग कपड़े बनाना, अनूप बनाना, मिट्टी के बर्तन बनाना और व्यापार करना थे । खुदाई में अनेक प्रकार के बांट मिले हैं। विद्वानों का अनुमान है कि यहाँ के निवासी सुमेरिया तथा बेबीलोन बादि सुदूर देशों के साथ व्यापार किया करते थे । लेकिन इस काल में शायद उन्हें घोड़ोंलोहे का ज्ञान नहीं था।

(j) मनोरंजन के साथन- खुदाई में मिली वस्तुओं से यह पता चलता है कि सिन्धुवासी नृत्य, संगीत के अतिरिक्त शतरंज खेलना भी जानते थे। शिकार खेलना, मछली पकड़ना, खाँडों की लड़ाई करवाना, पक्षी पालना आदि उनके मनोरंजन के अन्य प्रमुख साधन थे।

(k) शव विसर्जन- हड़प्पा व मोहनजोदड़ों में मिले अवशेषों का अध्ययन कर विद्वानों ने यह अनुमान गया है कि इस समय शव विसर्जन की तीन विधियाँ मुर्दे को गाड़ना, मुर्दे को जलाना तथा मुर्दे को सुला छोड़ देना प्रचलित थीं।

(l) अस्त्र शस्त्र- ऐसा मालूम पड़ता है कि सिन्धुवासियों को लोहे का ज्ञान नहीं था और वे शान्ति प्रेमी थे इसलिए उनके अस्त्र-शस्त्र साधारण थे। वे हड्डी, पत्थर तथा ताँबे से कुल्हाड़ी, तीर कमान और नेजा आदि हथियार बनाते थे और इनका प्रयोग शिकार के लिये करते थे ।

(m) लेखन लिपि- सिन्धु घाटी की लेखन लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। मार्शल का कहना है कि उनकी भाषा, लिपि आदि द्रविण थी। वास्तव में यह चित्रलिपि है, जिसे वृक्ष, मछली, पक्षी आदि के रूप में लिखा गया है ।

 

(n) धार्मिक जीवन- सिन्धु घाटी के लोग मूर्ति पूजक थे। खुदाई से मिली विभिन्न प्रकार की मूर्तियां (लिंग व योनि की मूर्तियां, पशुपति की मूर्ति, मातृदेवी की मूर्ति पशु-पक्षियों व वृक्षों की मूर्तियां) से पता चलता है कि ये लोग लिंग-योनि, पाशुपति (शिव), मातृ देवी तथा पशु, वृक्षों व पक्षियों की पूजा करते थे। जल, अग्नि आदि प्राकृतिक शक्तियों के भी उपासक थे। इनके धार्मिक जीवन में पुरोहितों तथा योगियों विशेष महत्व वा । विद्वानों का मत है कि इनका पुनर्जन्म में भी विश्वास था ।

(e) शासन पद्धति विद्वानों का अनुमान है कि हडप्पा का शासन प्रबन्ध दो प्रमुख नगरों से होता यहाँ के शासक पुरोहित होते थे। लेकिन लिपि के पढ़े न जा सकने के कारण उनकी शासन पद्धति के विषय निश्चित रूप से कुछ भी कहना कठिन है।

(10) सिन्धु सभ्यता और वैदिक सभ्यता में तुलना (Distinction between Indus and Vedi Civilizations)

इन दोनों सभ्यताओं की तुलना इस प्रकार की जा सकती है-

(1) समानतायें-

  1. दोनों सभ्यतालों में कृषि प्रमुख व्यवसाय था और अन्य व्यवसायों में भी का समानता थी।
  2. दोनों में एक जैसे पशुओं का प्रयोग होता था, परन्तु सिन्धु सभ्यता में घोड़े का वर्णन मिलता है।
  3. दोनों में खाद्य पदार्थ एक समान थे।
  4. दोनों में वरुण, आभूषण, गार के साधन व केश विन्यास में पर्याप्त समानता थी ।

(b) असमानतायें –

  1. सिन्धु घाटी की सभ्यता नगरों को सभ्यता थी, जब कि वैदिक सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी।
  2. ग्रामीण सिन्धु पाटी के लोग शान्ति प्रिय थे, परन्तु वैदिक कार्य एक बुद्ध प्रिय जाति थी।
  3. वैदिक सभ्यता में घोड़े, पाय तथा लोहे का भारी महत्व था, जब कि सिरसा में इनका महत्व नहीं के बराबर था।
  4. सिन्धु घाटी के लोगों का धार्मिक जीवन वैदिक आर्यों के समान उन्नत नहीं था ।
  5. दोनों सभ्यताओं में स्त्रियों के पहनावे में पर्याप्त भिन्नता थी।

सिन्धु सभ्यता व विश्व की अन्य सभ्यतायें (Indus Civilization and other Civilizations of the World)

सिन्धु सभ्यता मिस्र, सुमेरियन तथा मेसोपोटामिया की सभ्यताओं से मिलती-जुलती है। मैक्डोनल के अनुसार सिन्धु सभ्यता “सुमेरियन सभ्यता की बेटी” है। हाल के अनुसार सुमेरियन की सभ्यता सिन्धु सभ्यता से निकली है। विद्वानों का अनुमान है कि सिन्धु सभ्यता मिस्र व मेसोपोटामिया की सभ्यताओं से श्रेष्ठ थी। लेकिन इनमें निम्न अन्तर भी पाया जाता है-

  1. मिश्र और मेसोपोटामिया में बबरों की प्रधानता नहीं है और न ही वहाँ नागरिक सभ्यता के जिन्ह मिलते हैं।
  2. इन दोनों सभ्यताओं में राजतन्त्र था, जबकि सिन्धु सभ्यता प्रजातन्त्रात्मक थी।

सिन्धु सभ्यता को देन (Legacy of Indus Civilization ) – वास्तव में सिन्धु सभ्यता विश्व को प्रायोगाय सभ्यताओं में से एक थी। प्रो० चाइल्ड के अनुसार यह सभी सभ्यताओं में सर्वश्रेष्ठ थी, इस सभ्यता की देन का मूल्यांकन करते हुए डा० आर० के० मुकर्जी ने लिखा है कि, “सिन्धु घाटी के लोगों ने संसार को सबसे पहले नगर दिये, सबसे पहले नागरिक सभ्यता प्रदान की, सबसे पहले नगर योजना उपलब्ध की, बाढ़ों से बचने के लिए सबसे पहले पत्थर और ईंटों के बाँध दिये और सफाई के लिए सबसे पहले वैज्ञानिकनिकास व्यवस्था प्रदान की। उनको ही सबसे पहले मिट्टी के बर्तन बनाने का श्रेय है।”

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