जैन धर्म (Jainism)

जैन धर्म भारत का अति प्राचीन धर्म है। लेकिन सबसे पहले जैन धर्म का उपदेश छठी शताब्दी ईसा पू० में महावीर स्वामी से पहले २३ अन्य धार्मिक नेता हुए । उन्हें तीर्था कर कहते हैं। महावीर स्वामी अन्तिम और चौबीसवें तीर्था कर थे।

महावीर स्वामी के काल में जैन धर्म का काफी प्रचार और प्रसार हुआ। आज भी दक्षिणी भारत में जैन धर्म के बहुत से अनुयायी पाये जाते हैं।

जैन धर्म के दो मुख्य व्यवसाय है- श्वेताम्पर और दिगम्बर । दवेताम्बर सफेद कपड़े पहनते हैं और दिगम्बर दिशाओं को ही अपने शरीर का वस्त्र समझकर नंगे रहते हैं। श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनेक धर्मग्रन् हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण “बारह अंग” हैं। प्रत्येक ‘अंग’ का एक ‘उपांग’ हैं। यह ग्रंथ ‘प्राकृत भाषा में लिखे गये हैं।

विशेषताएँ या शिक्षायें जैन धर्म को प्रमुख विशेषतायें या शिक्षायें निम्नलिखित है—

(1) जैन धर्म परम अहिंसावादी है।

(2) जैन धर्म सनार को अनादि, शादवत और स्वधारित मानता है।

(3) यह ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखता है।

(4) यह व्यक्तिगत निर्वाण या मोक्ष को व्यक्तिगत साधना या तपस्या का फल मानता है।

(5) जैन धर्म तोर्था करों अथवा ‘जिन’ तथा उनके सिद्धान्तों में विश्वास रखता है।

(6) जैन धर्म पाँव महाव्रत (अहिंसा, असत्य त्याग, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह), पाँच अणुव्रत तथा क्रोध का दमन गर्व का अन्त, नरलता, आत्मा का शुद्धीकरण, सत्य, संयम आदि पर बल देता है।

(7) जैन धर्म वेदों को प्रामाणिक अथवा ज्ञान का स्रोत नहीं मानता है ।

(8) यह संसार के सभी तत्वों के कण-कण में आना के अस्तित्व को स्वीकार करता है ।

( 9) जैन धर्म तपस्या पर विशेष बल देता है।

(10) जैन धर्म ऊंच-नीच असमानता तथा कर्मकाण्डों का विरोधी है।

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