उत्तर वैदिक काल या महाकाव्य काल (Later Vedic Age)
ऋग्वेदिक काल के अन्त से बौद्ध काल के प्रारम्भ के बीच का युग उत्तर वैदिक काल कहलाता है। इस में आर्यों के अनेक धार्मिक ग्रन्थों की रचना हुई और आर्य सम्पूर्ण उत्तरी भारत व दक्षिण में नर्मदा नदी बस गये। इसी काल में रामायण तथा महाभारत नाम के दो महाकाव्यों की भी रचना हुई। इसीलिए इस काल को महाकाव्य युग भी कहते हैं। इस काल में आर्यों के राजनीतिक, सामाजिक, आदि और धार्मिक वन में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन आ चुके थे।
(I) राजनीतिक जीवन (Political Life ) — इस काल में आर्य पंजाब से चलकर देश के आन्तरिक भागों में फ़ैल चुके थे। रामायण काल के समय आर्यों ने विंध्याचल पर्वत को पार नहीं किया था, परन्तु महाभारत के युद्ध में आर्य धर्म सारे भारत में फैल चुका था। कौरव और पाण्डवों का साथ देने के लिये दक्षिण के बहुत से राजा उत्तर में महाभारत के युद्ध में शामिल होने के लिये आये थे।
इस काल में शक्तिशाली राज्यों की स्थापना हो चुकी थी। कुरु, पांचाल, मगध, काशी और अंग जैसे शक्तिशाली साम्राज्य बन चुके थे। राजा अब सम्राट कहलाते थे और अश्वमेघ यज्ञ किया करते थे। प्राचीन के देशों राजा इन यज्ञों में भाग लिया करते थे ।
राजाओं की शक्ति अब काफी बढ़ चुकी थी। राजा प्रजा हित का सदा ध्यान रखते थे, पर कोई भी व्यक्ति राजा को आज्ञा की अवहेलना नहीं कर सकता था। राजा कर वसूल करता था। एक स्वेच्छाचारी राजा की शक्ति के सामने प्रजा और पुजारी बेबस थे। अब शासन प्रबन्ध का विस्तार होता जा रहा था। मुख्यमन्त्री, कोषाध्यक्ष, द्वारपाल, उच्च न्यायाधीश आदि राजा के मुख्य सहायक थे। राजधानी अब सुरक्षित बनायी जाती राजा को सेना में पैदल सैनिक, घुड़सवार, रथ, हाथी तथा धनुयधारी आदि होते थे। बुद्ध के लिये क कार के शस्त्रों का प्रयोग होता था ।
(II) सामाजिक जीवन (Social Life) – उत्तर वैदिक काल में आर्य समाज काफी बदल चुका था। कादर व सम्मान बढ़ गया था। राजवंशों में स्वयंवर की प्रथा प्रचलित थी। पद का रिवाज नहीं था और सती प्रथा प्रारम्भ हो चुकी थी । बाल विवाह व बहु विवाह भी शुरू हो चुके थे । स्त्रियों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था ।
जनसाधारण के जीवन में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं हुआ। वे अभी भी सादा जीवन व्यतीत करते थे । उनके भोजन में गेहूँ, चावल व दूध आदि को विशेष स्थान प्राप्त था।
इस काल में जाति प्रथा कठोर हो गई थी। जाति का आधार जन्म माना जाने लगा था। चार वर्णो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और सूट में लगभग 3 हजार उपजातियाँ बन चुकी थीं। शूद्रों का जीवन बड़ा कठिन था।उन्हें अपवित्र या अछूत माना जाने लगा था। समाज में ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा सन्यास, चार की व्यवस्था स्थापित हो चुकी थी।
इस काल में लोगों का नैतिक पतन होने लगा था। राजघरानों में नाव, जुना और शराब पीने प्रथा बढ़ चली थी। राजाओं का जीवन अब बिलासमय हो गया था।
(III) आर्थिक जीवन (Economic Life ) – कृषि इस काल में भी आर्यो का प्रमुख व्यवसाय था।
व्यापार भी अब काफी विकसित हो चुका था। अन्य उद्योग-धन्धों के संघ बने हुए थे। इस समय कई प्रकार के निष्क, शतमान, कर्षभाण सिक्के प्रचलित थे । इन्द्रप्रस्थ, मथुरा, अयोध्या, हस्तिनापुर जैसे बड़े-बड़े नगरों उदय हो रहा था।
(४) धार्मिक जीवन (Religious Life) – इस काल में पूर्व वैदिक काल के देवताओं के स्थान व ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश, पार्वती, राम, कृष्ण नादि देवताओं की पूजा शुरू हो चुकी थी। धर्म निरन्तर जटि होने लगा था धार्मिक कर्म काण्ड और संस्कार काफी बढ़ गये थे । यज्ञो व बलिदानों में काफी वृद्धि हो गई थी इस प्रकार इस युग में वैदिक धर्म काफी जटिल हो गया था और ब्राह्मणों का महत्व समाज में अत्यधिक गया था।
इस समय कर्म, पुनर्जन्म, भूत-प्रेत, जादू-टोना आदि धार्मिक विश्वास बढ़ने लगे थे ।
इस काल में सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, ब्राह्मण, अरण्यक, उपनिषद, सूत्र, वेदांग, षडदर्शन, पुराण, महा काव्य आदि धर्म ग्रन्थों की रचना हुई थी।