भारत में लर्निंग पॉवर्टी (Learning Poverty In India)

संदर्भ

विश्व बैंक के वैश्विक शिक्षा निदेशक के अनुसार भारत में ‘लर्निंग पॉवर्टी’ (Learning Poverty) में वृद्धि हुई है।

प्रमुख बिंदु

विश्व बैंक के वैश्विक शिक्षा निदेशक के अनुसार महामारी के दौरान ‘लर्निंग पॉवर्टी’ दर 54% से बढ़कर 70% हो गई।

भारत में लड़कियों की तुलना में लड़कों में लर्निंग पॉवर्टी की दर अधिक है। ऐसा निम्नलिखित के कारण हो सकता है-

पहला स्कूल न जाने वाले बच्चों में लड़कियों (1.6%) की तुलना में लड़कों (2.9%) का प्रतिशत अधिक है।

दूसरा, भारत में लड़कियों ( 53%) की तुलना में लड़कों में (55%) प्राथमिक स्कूल की समाप्ति पर न्यूनतम दक्षता हासिल करने की संभावना कम है।

विश्व बैंक ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि लर्निंग पॉवर्टी मुख्य रूप से भारत सहित विकासशील देशों में पाई जाती है। विश्व में लगभग 260 मिलियन से अधिक बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं।

गैर सरकारी संस्था ‘प्रथम’ द्वारा जारी असर सर्वेक्षण (ASER Survey) के अनुसार, ग्रामीण कर्नाटक में सरकारी स्कूलों में ग्रेड 3 के छात्रों की हिस्सेदारी वर्ष 2018 में 24% से गिरकर वर्ष 2020 में 16% हो गई।

क्या आप जानते हैं?

लर्निंग पॉवटी (Learning Poverty)

विश्व बैंक ने लर्निंग पॉवर्टी को किसी बच्चे का 10 साल की आयु तक एक साधारण पाठ को पढ़ने और समझने में असमर्थ होने के रूप में परिभाषित किया है।

Indicators and Components Boys Girls All
Learning Poverty 56.3 53.7 54.8
Below Minimum Proficiency 55 53 53.7
Out-Of-School 2.9 1.6 2.3
Human Capital Index 0.43 0.45 0.44
Learning-Adjusted Year Of Schooling 5.6 5.9 5.8

लर्निंग पॉवर्टी में वृद्धि के कारण

कोरोना महामारी: कोरोना महामारी को मद्देनज़र रखते हुए भारत समेत कई देशों को स्कूलों और कॉलेजों को बंद करना पड़ा तथा ऑनलाइन कक्षाओं को बढ़ावा देना पड़ा।

अव्यवस्थित स्कूल सिस्टम: यदि बच्चा एक साधारण पाठ को नहीं पढ़ सकता तो इसका अर्थ है कि बच्चों को गणित, विज्ञान और मानविकी जैसे अन्य क्षेत्रों में सीखने में मदद करने के लिये स्कूल सिस्टम अच्छी तरह से व्यवस्थित नहीं है।

प्रवीणता से पढ़ने में अक्षमताः विश्व बैंक के अनुसार लगभग 260 मिलियन से अधिक बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं, जिससे लर्निंग पॉवर्टी संकट और गहरा रहा है।

शिक्षा गुणवत्ता का अभावः सर्वेक्षणों से पता चला है कि निजी और सरकारी स्कूलों में शिक्षा गुणवत्ता में अंतर है।

गरीबी: घरेलू आय में गिरावट के कारण कई छात्रों को निजी स्कूलों से हटने और सरकारी स्कूलों में दाखिला लेने के लिये मजबूर होना पड़ा है।

लर्निंग पॉवर्टी में कमी के लिये संभावित उपाय

चूँकि विश्व अब महामारी से उबर रहा है इसलिये स्कूलों को खोलने की आवश्यकता है।

नए स्कूल की स्थापना के समय स्कूल वृद्धि का लक्ष्य निर्धारित किया जाना चाहिये। बच्चों के पुनः नामांकन में

बच्चों की सीखने की क्षमता की स्थिति जानने के लिये उनका नियमित रूप से आकलन किया जाना चाहिये।

बच्चों को आधारभूत शिक्षा पढ़ाने को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।

कैच अप लर्निंग को बढ़ाने के लिये शिक्षकों को छात्रों को उनकी आयु और कक्षा स्तर की बजाय उनके सीखने के स्तर के आधार पर उन्हें समूहबद्ध करने हेतु समर्थन दिया जाना चाहिये।

डिजिटल विभाजन को कम करने के लिये कनेक्टिविटी सॉफ्टवेयर, उपकरणों और शिक्षक पेशेवर विकास में निवेश करने की ज़रूरत है।

शिक्षा पर वित्तीय आवंटन बढ़ाने की आवश्यकता है।

भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम

नई शिक्षा नीति, 2020: कक्षा 3 तक सभी छात्रों द्वारा मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। यह लक्ष्य वर्ष 2025 तक प्राप्त किया जाना है।

समझ के साथ पढ़ने तथा संख्या गणना में निपुणता हेतु राष्ट्रीय पहल (NIPUN भारत ): यह मूलभूत साक्षरता और संख्या कौशल (Foundational Literacy and Numeracy: FLN) पर एक राष्ट्रीय मिशन है। इसका उद्देश्य FLN की सार्वभौमिक प्राप्ति को सुनिश्चित करना है। इससे वर्ष 2026-27 तक प्रत्येक बच्चा कक्षा 3 के अंत में और कक्षा 5 तक पढ़ने, लिखने तथा अंकगणित में सीखने की वांछित क्षमता प्राप्त कर सकेगा।

आगे की राह

यदि लर्निंग पॉवर्टी से निपटने हेतु सरकारों या देशों द्वारा अहम कदम नहीं उठाए गए तो वर्तमान पीढ़ी की उत्पादकता कम होगी, आय कम होगी, भविष्य में कल्याण कम होगा जिससे सभी को बचने की आवश्यकता है।

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