संगीत मानव जाति की सार्वभौमिक भाषा है

संचार के लिये दुनिया में असंख्य भाषाएँ हैं परंतु संगीत में शामिल विभिन्न सांस्कृतिक पहलू तथा अभिव्यक्तियों की असीम संभावनाएँ इसे संवाद के लिये एक सार्वभौमिक भाषा के रूप में सक्षम करते हैं। ऐसा इसलिये है क्योंकि किसी भी संगीत में शाब्दिक अर्थ से परे भी रचना के उद्देश्य को प्रसारित करने की शक्ति होती है। संगीत को मानव संज्ञान की एक सार्वभौमिक विशेषता के रूप में मान्यता प्राप्त है। संगीत को सार्वभौमिक भाषा के रूप में वर्णित करने संबंधी तर्क प्रस्तुत करने के पूर्व हम इसे एक विशेष प्रकार के संगीत के रूप में भाषा का वर्णन करने के लिये विकास के दृष्टिकोण से अधिक निकट एवं उत्पादक पाए जाने की चर्चा करना प्रासंगिक मानते हैं। मानव विकास में संगीत की भूमिका को अक्सर सहायक और धीमी गति से परिपक्व करने वाला माना जाता रहा है। संगीत एक ऐसी भाषा है, जो पूरी दुनिया समझती है। संगीत दुनिया की वह कला है जो कि व्यक्ति से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई है। संगीत व्यक्तियों और समुदायों को जोड़ने का काम करता है और व्यक्ति के मन को बहलाने का काम भी करता है।

सुव्यवस्थित ध्वनि, जो रस की सृष्टि करे, संगीत कहलाती है। ‘गीतम् वाद्यम् तथा नृत्यम् त्रयं संगीत मुच्यते’ अर्थात भारतीय परिप्रेक्ष्य में गायन, वादन और नृत्य तीनों का समावेश संगीत कहलाता है। भारत से बाहर अन्य देशों में केवल गीत और वाद्य को ‘संगीत’ में गिनते हैं, क्योंकि स्वर और लय की कला को संगीत कहते हैं। स्वर और लय, गीत तथा वाद्य दोनों में मिलते हैं, किंतु नृत्य में लयमात्र होती है, स्वर नहीं। अतः वहाँ नृत्य को एक कला माना जाता है। शाब्दिक अर्थ और व्याख्या जो भी हो, पर संगीत दुनिया भर के लोगों को आपस में जोड़ने की सबसे खूबसूरत भाषा है। इसमें शब्द की बजाय भाव ज़्यादा काम आते हैं। युद्ध, उत्सव और प्रार्थना के समय मानव गाने-बजाने का उपयोग सदियों से करता चला आया है। उदाहरणार्थ संसार की सभी प्रजातियों में बाँसुरी, कुछ तार के वाद्य, कुछ चमड़े के बने हुए वाद्य, कुछ ठोककर बजाए जाने वाले यंत्र इसके प्रमाण के रूप में देखे जा सकते हैं। बजाने की कला आदमी ने कुछ बाद में भले ही खोजी हो, पर गाने और नाचने का आरंभ मानव ने लाखों वर्ष पहले ही कर लिया होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है।

‘भाषा को सीखने-सिखाने के लिये संगीत को एक बहुत शक्तिशाली साधन के रूप में विश्व भर में प्रयुक्त किया जाता है। फिर चाहे वह शास्त्रीय संगीत हो, लोक संगीत हो, फिल्मी संगीत हो, पॉप संगीत हो या पढ़ते-पढ़ाते समय पृष्ठभूमि में बजने वाली हल्की-हल्की संगीत लहरियाँ हों, इन सभी से भाषा के कौशलों का विकास होता है। इसलिये संगीत का प्रयोग विश्व की सभी सभ्यताओं में अनेक प्रकार से किया जाता है। विभिन्न समाजों में निर्मित संगीत में विद्यमान विशिष्ट समानता इस बात का प्रमाण है कि हर जगह मानव संस्कृति सामान्य विशेषताओं से बनी है। प्रागैतिहासिक काल के गुफा-चित्रों के आधार पर भू-वैज्ञानिकों का भी मानना है कि उस समय संगीत की उपस्थिति थी क्योंकि इन गुफा चित्रों में लोगों को नाचते हुए चित्रित किया गया है। अनेक प्रकार की संगीत रचना के अध्ययन के आधार पर पाया गया कि लोरी और नृत्यगीत सर्वव्यापी है और वे अत्यधिक विड भी हैं। कहने का तात्पर्य है कि संगीत की सार्वभौमिकता का अर्थ यह भी है कि संगीत को सार्वभौमिक रूप से सराहा, समझा, और महत्त्व दिया जाता है।

दुनियाभर के 300 समाजों के संगीत प्रारूप के एक मानवशास्त्रीय अध्ययन से भी पता चला है कि इन समाजों में संगीत की समानता पाई जाती है। दुनियाभर में विभिन्न भाषाओं और जातीय समूहों में फैले संगीत के सामान्य व्यवहार पैटर्न भी यह प्रदर्शित करते हैं। यह अध्ययन बताता है कि हर जगह मानव संस्कृति एक समान तत्त्वों से निर्मित होती है। सभी समाजों में शिशु देखभाल, उपचार, निरीक्षण और युद्ध जैसे व्यवहारों से संगीत किसी-न-किसी प्रकार से जुड़ा हुआ है। शोध बताते हैं कि संगीत की यह समानता सभी समाजों के बीच सामाजिक, राजनीतिक और भाषायी बाधाओं को दूर करती है। जबकि यह भी सच है कि सभी संस्कृतियों में संगीत का अलग-अलग रूप होता है। कहने का तात्पर्य है कि संगीत सार्वभौमिक भाषा के रूप में विभिन्न संस्कृतियों को समाहित किये हुए है। संगीत की धारणा जब व्यक्तिगत या सांस्कृतिक समझ के साथ अनुकूलता उत्पन्न करती है तो इसका वैश्विक महत्त्व ज्यादा समझ में आता है। एक भारतीय भी जब बिना कुछ समझे ओपेरा सुनता है जो ज्यादातर समय एक विदेशी भाषा में गाया जाता है, तो वह झूमने लगता है। साथ ही वह यह भी ध्यान नहीं रखता कि वह गीत को कितना समझता है क्योंकि संगीत खंड-खंड में अनुभव की ओर ले जाता है। इसी प्रकार किंवदंती है कि तानसेन के संगीत को वन्यप्राणी भी बहुत ध्यानपूर्वक सुनते और मंत्रमुग्ध हो जाते थे, जबकि वन्यप्राणियों की भाषा मानव भाषा की तरह भी नहीं होती। कुछ वर्ष पूर्व भारत के अभिनेता धनुष द्वारा गाया गया दक्षिण भारतीय गीत उत्तर भारत में भी लोकप्रिय हुआ जिसके बोल को शायद ही कोई अर्थपूर्ण ढंग से समझता था।

विक्टर ह्यूगो का कहना है कि संगीत वह सब कुछ अभिव्यक्त करता है, जिसे कहा नहीं जा सकता लेकिन जिस पर कुछ न कहना भी असंभव है। लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिये संगीत का सफल प्रयोग दुनियाभर के विज्ञापनों में देखने को मिलता है। क्या हम उन लोकप्रिय जिंगल्स को कभी भूल सकते हैं जिनमें विज्ञापनकर्त्ताओं ने अनेक वर्षों से अपने उत्पादों की बिक्री के लिये संगीत का सहारा लिया है? संगीत सुनने की क्षमता के बिना बोलना सीखना असंभव रहा होगा। संगीत मस्तिष्क के एक विशिष्ट क्षेत्रों को उद्दीप्त करता है, जो स्मृति नियंत्रण और भाषा के लिये जिम्मेदार होता है। भाषा और संगीत प्रारंभिक जीवन में गहराई से जुड़े हुए हैं। नदियों की कल-कल, चिड़ियों की चहचहाहट, झरने के गिरते पानी की आवाज जैसा सहसा संगीत पूरी दुनिया में मानव की मानसिक तरंगों में उतार-चढ़ाव लाने में सक्षम है, जबकि इनकी कोई भाषा भी नहीं होती। इसके अलावा पूरी दुनिया में मस्तिष्क को विश्रामावस्था में पहुँचाने, मस्तिष्क को शक्तिशाली बनाने और मस्तिष्क की कार्यशैली को उन्नत बनाने के लिये संगीत लहरियों का प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार कुछ वैज्ञानिक शोध यह बताते हैं कि जब इंसान किसी तरह के दर्द से पीड़ित होता है तो उसे उसका मनपसंद संगीत सुनाने से दिमाग में डोपामाइन का स्तर बढ़ जाता है, जिससे उसका ध्यान दर्द से हट जाता है।

पूरी मानव प्रजाति के लिये संगीत एक उपहार है। संगीत के बारे में कहा गया है कि संगीत की कोई सीमा नहीं है, यह तो सभी सीमाओं से परे है। संगीत जीवन में और जीवन संगीत में निहित है। संगीत की कोई भाषा नहीं होती, यह अपने आप में ही एक भाषा है। इस धरती पर जहाँ-जहाँ मनुष्य है, उसने अपने आसपास की छोटी-से-छोटी बात को अभिव्यक्त करने के लिये जो भाषा विकसित की है, उनके समवेत से एक ऐसा संगीत निकलता है जो किसी व्याकरण की आवश्यकता को महसूस नहीं करता। इस सबके बावजूद हम प्रकृति में व्याप्त संगीत को आत्मसात करने हेतु अपने लिये नियमबद्ध संगीत रखते हैं। जैसे यह जानते हुए भी कि ईश्वर सर्वव्यापी है, कण-कण में मौजूद है; लोग उसे नए-नए रूप और आकार देते हैं, उसी प्रकार संगीत और भाषा को विभिन्न समाज अपनी-अपनी संस्कृति और परंपरा के अनुसार विकसित करते हैं। वैसे कई कारकों ने संगीत और भाषा के उद्भव की समझ को धूमिल कर दिया है। इसमें सबसे

पहले यह है कि संगीत और भाषा की अत्यधिक प्रतिबंधात्मक परिभाषा है। रेटनर नामक विद्वान के अनुसार, संगीत भाषा की तरह अपने स्वयं के सीख हुए नियमों के सेट पर आधारित है और दोनों एक रूप में काम करते हैं। यह देखते हुए कि एक घटना के रूप में संगीत इतना विविध है और इसकी इतने सारे अलग-अलग तरीकों की व्याख्या और मूल्यांकन किया जा सकता है, जिस कारण इसके सार्वभौमिक होने में संदेह उत्पन्न होता है। इसके बावजूद संगीत प्रारूप और शैलियों के अधिकांश मानकीकरण और संगीत के मूल्य तथा महत्त्व के पदानुक्रम के आधार पर यह कहा जाता है कि संगीत की धारणा भले ही व्यक्तिगत या सांस्कृतिक समझ के अनुकूल हो, पर यह सार्वभौमिकता के तत्त्व के साथ मौजूद होती है। स्पष्ट है कि संगीत को सार्वभौमिक भाषा के रूप में सही अंकित किया जाता है क्योंकि यह लोगों को उनकी संस्कृति या राष्ट्रीयता की परवाह किये बिना अपनी धुनों पर थिरकने को मजबूर कर देता है।

हालाँकि यह प्रश्न भले ही उठता हो कि संगीत में भाषा के समतुल्य कोई अर्थपूर्ण सार्वभौम तत्त्व मौजूद है या नहीं, पर इसके अभाव में संगीत के सार्वभौमिक भाषा होने पर प्रश्नचिह्न नहीं उठाया जा सकता। यह कहते हुए कि भाषा को आमतौर पर गलत समझा जा सकता है जिसके परिणामस्वरूप एक कमज़ोर संबंध होता है लेकिन संगीत की अभिव्यक्ति अनजाने में नकारात्मक बातचीत की कमी को दूर करती है। दुनिया भर में इसका प्रयोग हम मनोरंजन, संप्रेषण, शिक्षा, चिकित्सा, संस्कृति संरक्षण आदि विभिन्न क्षेत्रों में करते हैं। इसी कारण संगीत, भाषा की तरह मानव जीवन का अविभाज्य अंग है। संगीत एक ऐसी भाषा है जिसे पूरी मानव जाति जानती है। निष्कर्षत: डेविड वुडेन के इस कथन से सहमत होने में कोई गुरेज नहीं है कि संगीत एक सार्वभौमिक भाषा है।

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