National Commission for Scheduled Tribes- NCST (राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग)

National Commission for Scheduled Tribes (राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग)

हाल ही में संसद की सामाजिक न्याय और अधिकारिता संबंधी स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग’ (National Commission for Scheduled Tribes-NCST) पिछले चार वर्षों से निष्क्रिय रहा है और इसने इस दौरान संसद के समक्ष एक भी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है।

क्या आप जानते हैं?

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST)

पृष्ठभूमिः देश में ऐतिहासिक रूप से अस्पृश्यता के शिकार, आदि कृषि प्रथा, आधारभूत सुविधाओं का अभाव, भौगोलिक एकाकीपन जैसे गहन सामाजिक एवं आर्थिक पिछड़ेपन से पीड़ित रहे समुदायों को संविधान के अनुच्छेद 341 (1) और 342(1) के प्रावधानों के तहत क्रमश: अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित किया गया है।

संविधान के अनुच्छेद 338 के मूल प्रावधानों के अधीन अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिये नियुक्त विशेष अधिकारी (आयुक्त) को विविध विधानों में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिये सुरक्षणों से संबंधित सभी मामलों की जाँच करने एवं इन सुरक्षणों के कार्यान्वयन पर राष्ट्रपति को रिपोर्ट देने का कार्य सौंपा गया था।

आयोग का गठन: इन समुदायों के हितों की रक्षा हेतु पूर्व के कई प्रयासों के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) की स्थापना संविधान (89वाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 द्वारा संविधान के अनुच्छेद 338 में संशोधन करते हुए इसमें अनुच्छेद 3384 सम्मिलित करने के बाद की गई।

इस संशोधन के माध्यम से पूर्ववर्ती राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग को दो अलग-अलग आयोगों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था- (i) राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC), और (ii) राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST)

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग एक संवैधानिक निकाय है, पहले आयोग का गठन मार्च 2004 में किया गया था।

मुख्य बिंदु

समिति के अनुसार, वर्तमान में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की कई रिपोर्ट्स लंबित हैं जिनमें आदिवासी आबादी पर आंध्र प्रदेश में इंदिरा सागर पोलावरम परियोजना के प्रभाव के आयोग द्वारा एक अध्ययन और राउरकेला स्टील प्लांट के कारण विस्थापित आदिवासियों के पुनर्वास पर एक विशेष रिपोर्ट शामिल है।

समिति के अनुसार, वर्ष 2018 से आयोग की कुछ रिपोर्ट्स अभी भी जनजातीय मामलों के मंत्रालय में प्रक्रियाधीन हैं जिन्हें अब तक संसद में प्रस्तुत नहीं किया गया है।

 

शिथिल कार्यप्रणालीः आयोग की वेबसाइट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2021-22 में इसकी केवल चार बैठकें ही आयोजित हो सकी थीं। साथ ही, आयोग के समक्ष आने वाले मामलों एवं शिकायतों के निस्तारण की दर भी लगभग 50% है जो एक बड़ी चिंता का कारण है।

संचालन एवं प्रबंधन से जुड़ी समस्याएँ: समिति ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के बजट एवं कर्मचारियों की संख्या में भारी कमी के कारण इसके कामकाज में व्याप्त शिथिलता पर निराशा व्यक्त की है।

जनजातीय कार्य मंत्रालय के अनुसार, आयोग में भर्ती से जुड़ी समस्याओं का एक प्रमुख कारण आवेदकों की कमी से जुड़ा है, क्योंकि आयोग के रिक्त पदों की पात्रता को बहुत अधिक निर्धारित किया गया था तथा कई और उम्मीदवारों को आवेदन करने में सक्षम बनाने के लिये नियमों में बदलाव भी एक प्रमुख समस्या रही है।

स्थायी समिति द्वारा प्रस्तावित सुझाव

समिति ने कहा कि NCST की रिक्तियों को तुरंत भरा जाना चाहिये और इसमें अतिरिक्त देरी नहीं की जानी चाहिये क्योंकि आयोग में भर्ती नियमों से जुड़ी समस्याओं को दूर करने हेतु आवश्यक संशोधन किये जा चुके हैं।

संसदीय समिति ने यह भी कहा कि आयोग के लिये बजटीय आवंटन की समीक्षा की जानी चाहिये जिससे धन की कमी के कारण इसके कामकाज में बाधा न पहुँचे।

साथ ही, समिति ने आयोग के लिये वार्षिक रिपोर्ट, अधिकारियों की भर्ती और प्रबंधन से जुड़ी समस्याओं के संबंध में तत्काल आवश्यक कार्रवाई करने का सुझाव दिया।

उद्देश्यः राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग भारत के संविधान द्वारा सौंपे गए जनादेशों का पालन करते हुए देश की अनुसूचित जनजातियों की आबादी के संवैधानिक, सामाजिक-आर्थिक, कानूनी एवं नागरिक अधिकारों की रक्षा करने का प्रयास करेगा तथा देश की अनुसूचित जनजाति के हितों की रक्षा के लिये न्याय की आसान पहुँच व प्रभावी वितरण की सुविधा प्रदान करने में सहायता करेगा।

आयोग की संरचना: इस आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन पूर्णकालिक सदस्य (कम-से-कम एक महिला सदस्य) शामिल हैं।

आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है।

सदस्य दो से अधिक कार्यकाल के लिये नियुक्ति के पात्र नहीं होंगे।

NCST के अध्यक्ष को केंद्रीय कैबिनेट मंत्री तथा उपाध्यक्ष को राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त है, जबकि अन्य सदस्यों को भारत सरकार के सचिव पद का दर्जा प्राप्त होता है।

NCST के कार्य: भारत के संविधान के अनुच्छेद 338ए के उप-खंड (5) के तहत NCST के कार्यों का निर्धारण किया गया है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

संविधान के तहत या सरकार के किसी आदेश के तहत अनुसूचित जनजातियों के लिये प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जाँच और निगरानी करना तथा ऐसे सुरक्षा उपायों के कामकाज का मूल्यांकन करना ।

अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों और सुरक्षा उपायों से वंचित करने के संबंध में विशिष्ट शिकायतों की जाँच करना।

अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना और सलाह देना तथा संघ व किसी भी राज्य के तहत उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना ।

राष्ट्रपति को वार्षिक रूप से (तथा अन्य समय पर जिसे वह उचित समझे) उन सुरक्षा उपायों के कार्य पर रिपोर्ट प्रस्तुत करना ।

ऐसी रिपोर्टों में उन उपायों के बारे में सिफारिशें करना जो संघ या किसी राज्य द्वारा अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये उन सुरक्षा उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये किये जाने चाहिये।

भारत में अनुसूचित जनजातियों की स्थिति

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366(25) के अनुसार ” अनुसूचित जनजाति से आशय ऐसी जनजातियों या जनजातीय समुदायों के अंदर कुछ वर्गों या समूहों से है, जिन्हें इस संविधान के उद्देश्यों के लिये अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति माना जाता है।”

अनुच्छेद 342 (1) के अनुसार, राष्ट्रपति किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में वहाँ के राज्यपाल के परामर्श के बाद एक सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा उस राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में जनजातियों या जनजातीय समुदायों को अनुसूचित जनजाति के रूप में निर्दिष्ट कर सकता है।

वर्तमान में संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत देश में लगभग 705 से अधिक जनजातियों को अधिसूचित किया गया है।

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