छठी शताब्दी ईसा पूर्व के लगभग महात्मा ‘जरथुस्य (जोरोस्टर) ने ईरान में पारमी धर्म का प्रतिपादन किया। ईरानी सम्राट दारा प्रथम ने इस धर्म को स्वीकार किया और उनका प्रचार किया। पारसी धर्म ‘अहरमजूदा’ नामक देवता को इस सृस्टि का निर्माता मानता है। इस धर्म का पवित्र ग्रन्थ अवेस्ता है। इस धर्म की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित है-
(1) इन धर्म के अनुनार ‘अहमजुदा’ एक मात्र ईश्वर है, जिसके सात गुण है, प्रकाश, शान, सुन्दरता, सत्य, अधिपतित्य, पवित्रता, स्वास्थ्य और अमरता ।
(2) इस धर्म के अन्दर देव और असुर दोनों की कल्पना की गई, जिनमें निरन्तर संघर्ष चलता रहता है। धर्म-अधर्म, सत्य-असत्य, साध और अन्धकार के संघर्ष में अन्त में सख्य के आधार पर पर्म की किलर होती है।
(3) वह धर्म अन्धविश्वानों और कर्मकाण्डों को कोई महत्व नहीं देता है। इसके अनुसार मनुष्य का उदारता, दानशीलता, सत्यता, फर्म मर्च, परियन बादि गुणों का विकास करना चाहिए और लोभ, लालच, अभिचार आदि से सदा दूर रहना चाहिए।
(4) यह धर्म नैतिकता, सत्यता, ईमानदारी पर विशेष जोर देता है।
(5) इस धर्म में वैराग्य के लिये कोई स्थान नहीं है। जरवुस्थ ने वैवाहिक जीवन को बहुत महत्व दिया था।
(6) यह धर्म कर्म आत्मा, परमात्मां, लोक, परलोक आदि में विश्वास रखता है।
(7) पारसी धर्म, जल, आकाश, वायु और अग्नि इन चार तत्वों से सृष्टि की रचना मानता है। इसीलिए पारसी लोग पृथ्वी की पवित्रता के लिए अपने शवों को गाढ़ते अथवा जलाते नहीं है।
(8) पारसी धर्म के अनुसार प्रत्येक घर में अग्नि का रखना आवश्यक है। अब इस श्रमं में विभिन्न प्रकार के मन्त्रों आदि का भी प्रयोग होने लगा है।
(9) यह धर्म मूति पूजा का विरोधी है।
(10) पारसी धर्म आशावादी, दयापूर्ण एवं मानवतावादी धर्म है।