पृथ्वी पर जीव का अवतरण अनेक रहस्यों से भरा हुआ है। मानव सभ्यता की प्रारम्भिक कहानी जितनी विचित्र तथा अनोखी है, उतनी ही वह पुरानी भी है। प्रागतिहासिक काल के मानव का अतीत अभी भी बहुत कुछ अन्धकार के आवरण में ढका हुआ है।” -‘एच डेबीज’
प्राक्कथन – यह पृथ्वी जिस पर हम आज रह रहे है, कब और कैसे बनी सबसे पहले जीव का जन्म कब और कहाँ हुआ तथा उनका विकास कैसे हुआ, मनुष्य जिसे आज संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना जाता है, कैसे और कितने समय में अपनी वर्तमान अवस्था में पहुँच गया।
यह एक लम्बी और बड़ी रोचक कहानी है। इस विषय पर विद्वान हजारों वर्षों से खोज करते रहे हैं, पर आज भी हम निश्चित रूप से कह नहीं सकते कि विद्वानों के द्वारा निकाले गये निष्कर्ष एकदम ठीक ही है।
प्रागैतिहासिक काल के स्रोत (Sources of Pre Historic Period)
सभ्यता के विकास की कहानी इतनी पुरानी है कि उसके विषय में कोई ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त नहीं होती, फिर भी अनेक भूगर्भ वैज्ञानिकों (Geologists), मानव विज्ञान शास्त्रियों (Anthropologists) तथा पुरातत्व वेत्ताओं (Archaeologists) ने थोड़ी-बहुत उपलब्ध सामग्री का निरीक्षण करके तथा अपनी कल्पना शक्ति का सहारा लेकर आदि मानव की कहानी को जोड़ने का प्रयत्न किया है।
संक्षेप में प्रागतिहासिक काल के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित है—
1. औजार तथा हथियार (Tools and Weapons )
अनेक स्थानों की खुदाइयों में विभिन्न प्रकार के छोटे-बड़े, भद्दे या सुन्दर, पालिश किये हुये या बिना पालिन वाले पत्थर के अनेक औजार व हथियार मिले है। इनमें हथौड़े, कुल्हाड़ी, चाकू, छेनी, बर्छी, नेजे व माले बादि प्रमुख हैं।
इन प्रागैतिहासिक औजारों में हथियारों का अध्ययन कर विद्वानों ने आदि मानव के प्रारम्भिक विकास की कल्पना की है और उनके जीवन, रहन-सहन आदि के सम्बन्ध में अनेक निष्कर्ष निकाले हैं।
2. मानव तथा पशुओं की हड्डियां (Fossils of Men and Animals)
खुदाई से प्राप्त होने वाली मानव व पशुओं को हड्डियों का निरीक्षण करके वैज्ञानिकों ने आदि मानव के शारीरिक गठन, उसकी जाति तथा उसके समय का अनुमान लगाने का प्रयत्न किया है। जावा, पेकिंग, जर्मनी आदि देशों में मिली हड्डियों की वैज्ञानिक जांच करके विशेषज्ञों ने आदि मानव की प्राचीनता का भी अनुमान लगाया है।
3. चित्रकला के नमूने (Samples of Paintings)
उत्तरी स्पेन में स्थित अल्तमीरा (Altamira) तथा फ्रांस में स्थित लास्को (Lascaux) की गुफाओं में चित्रकला के अनेक नमूने प्राप्त हुये हैं, जिनमें सांड, सुअर, हाथी, मैण्ड, रेडियर, हिरन, भेड़िये आदि के चित्र प्रमुख हैं।
इन चित्रों का अध्ययन कर विद्वानों ने आदि मानव के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के साथ ही साथ उसके रहन-सहन आदि का अनुमान लगाया है। इन चित्रों से प्रागैतिहासिक काल के स्त्री, पुरुषों की शक्लों व उनकी पोशाक का भी थोड़ा-बहुत जान प्राप्त होता है।
4. कला के अन्य नमूने (Artifacts)
खुदाई से मिली हड्डियों, मिट्टी व पत्थर की बनी विविध प्रकार की मूर्तियों तथा कुछ औजारों व हथियारों पर की गई खुदाई का अध्ययन कर विद्वानों ने आदि मानव के धार्मिक जीवन के सम्बन्ध में अनेक निष्कर्ष निकाले हैं।
पुरातत्व विमान (Archaeological Department)
प्रागैतिहासिक काल के विषय में जानकारी देने में पुरातत्व विभाग का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान रहा है। विश्व के लगभग सभी देशों में पुरातत्व विभाग स्थापित हैं। 16 और 17 वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड, जर्मनी, फ़्रांस, इटली, आदि देशों में पुरातत्व विभागों की स्थापना हुई।
इसके बाद विश्व के लगभग सभी देशों में इस विभाग का महत्व अनुभव किया जाने लगा। भारत में लार्ड कर्जन ने सन् 1905 में पुरातत्व विभाग की स्थापना की, जो बाद भी नयी दिल्ली में बड़ी सफलता के साथ कार्य कर रहा है। पुरातन विभाग का कार्य विभिन्न स्थानों की खुदाइयाँ कराना है और खुदाई से मिले अवशेषों, खंडहरों तथा अन्य बहुत सी वस्तुओं को एकत्र करना है।
पुरातत्व विभाग के अधिकारी, जिन्हें पुरातत्व वेत्ता कहा जाता है और जो प्राचीन कला, साहित्य व संस्कृति के विषय में विशेष योग्यता रखते हैं, इन वस्तुओं का निरीक्षण करके प्राचीन काल की मानव सभ्यता के विषय में अनुमान लगाते हैं और निष्कर्ष निकालते हैं।
इंग्लैण्ड के पुरातत्व विभाग ने मानव सभ्यता की खोज में विशेष कार्य किया है। हमारे देश के पुरातत्व विभाग में सन् 1912 में सिन्धु घाटी की सभ्यता की खोज की थी। इसी प्रकार मिश्र, मेसोपोटामिया, प्राचीन चीन, यूनानी तथा रोमन सभ्यता का ज्ञान भी पुरातत्व विभाग की खुदाइयों पर ही आधारित है। इतना ही नहीं पुरातत्व विभाग की खोजों से ही हम यह जान सके हैं कि मानव की उत्पत्ति कैसे हुई और उसका श्रमिक विकास किस प्रकार से हुआ।
पुरातत्व विभाग की एक शाखा ‘मानव शास्त्र‘ (Anthropology) से सम्बन्धित है, जिसने मानव के विकास, सामाजिक संगठन, आदिम जातियों के रीति रिवाज, रहन-सहन तथा दैनिक जीवन पर यता है। पुरातत्व विभाग के कार्य संचालन में भूगर्भ वैज्ञानिकों, शरीर विज्ञान शास्त्रियों, भाषा और कक्षा व लिपि विशेषज्ञों की भूमिका भी बड़ी महत्वपूर्ण रही है।
मानव को उत्पत्ति तथा विकास-पृथ्वी पर जीवन का प्रारम्भ (Origin and Growth of Human Being-Beginning of Life on Earth)
1. पृथ्वी को उत्पत्ति
आज से कोई 200 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी, मंगल आदि ग्रह नहीं थे। सूर्य और समय सभी ग्रह तरल गैस का एक विशाल पिण्ड थे। यह विशाल पिण्ड आग का धधकता हुआ गोला था, जो निरन्तर गति से घूम रहा था। इसे ही सूर्य का नाम दिया गया ।
किसी समय एक शक्तिशाली नक्षत्र सूर्य से जा टकराया। इससे सूर्य का एक टुकड़ा टूटकर अलग हो गया। इसके और छोटे-छोटे टुकड़े भी इस विशाल पिण्ड से पृथक हो गये। ये ग्रह अधिक दूर न आकर सूर्य के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगे।
पृथ्वी भी करोड़ों वर्ष तक एक विशाल आग के गोले के रूप में सूर्य के इर्द-गिर्द चक्कर काटती रही, फिर धीरे-धीरे भूकम्पों, तूफानों और भारी वर्षा के मध्य यह ठण्डी होती गई और इसका धरातल अस्तित्व में आया। अनेक भयंकर परिवर्तनों के बाद इस पर पहाड़ों, घाटियों, पास के मैदानों तथा समुद्रों का निर्माण हुआ, इस प्रकार धीरे-धीरे पृथ्वी शान्त हुई।
2. हिम युग (Ice Age )
भूगर्भ शास्त्रियों का मत है कि पिछले दस लाख वर्षों में पृथ्वी में बड़े महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए, इनके अनुसार चार हिम युग हुए। पहला हिम युग आज से कोई 6 लाख वर्ष पहले हुआ, जब उत्तरी ध्रुव जम कर बर्फ हो गया और यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका के उत्तरी भागों में बड़े-बड़े बर्फीले तल बन गये।
बर्फ की यह मोटी पर्त दक्षिण की ओर फैलने लगी। यूरोप, एशिया तथा अमेरिका के बहुत बड़े भागों को इन परतों ने ढक लिया। इससे उष्ण खण्ड समशीतोष्ण खण्डों में बदल गये। इस क्षेत्र में वन नष्ट हो गये और केवल पास के मैदान रह गये।
इसी प्रकार के चार हिम युग हुए। इन युगों के बीच का काल कुछ गर्म होता था। अन्तिम हिम युग बाद से लगभग 50 हजार वर्ष पहले आया था। आज भी उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव प्रदेश का अधिकांश भाग बर्फ से ढका रहता है।
3. जीव की उत्पत्ति (Origin of Creature)
यह स्वाभाविक ही है कि जब पृथ्वी पर इतने भयंकर परिवर्तन हो रहे थे, उस समय इस पर कोई जीव नहीं रह सकता था। फिर भी पृथ्वी पर जीव की उत्पत्ति हुई, लेकिन जीव पृथ्वी पर कैसे और कब आया, यह कहना बड़ा कठिन है।
विद्वानों का अनुमान है कि आज से 50 करोड़ वर्ष पूर्व पानी में जीव का जन्म हुआ, इसका आकार बहुत छोटा था, परन्तु समय के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की वनस्पति और जीव-जन्तु अस्तित्व में आने लगे।
पानी में मछलियों का जन्म हुआ और फिर मेढक की भांति कुछ ऐसे जीव आये जो जल और थल दोनों स्थानों पर रह सकते थे। तत्पश्चात पेट के बल रेंगने वाले जीवों के दर्शन हुये। इनमें से कुछ तो सर्प और छंछूदर की भाँति छोटे प्राणी थे और कुछ डाइनासोर (Dinosaurs) की माँति इतने बढ़े जीव- जन्तु थे कि उनकी लम्बाई 30 मीटर तक थी।
इसके करोड़ों वर्षों के बाद आकाश में उड़ने वाले पक्षियों का जन्म हुआ। अन्त में, कोई 5 करोड़ वर्ष पहले स्तनधारी जीवों (Mammals) का प्रादुर्भाव हुआ। दूध पिलाने वाले ये पशु अनेक प्रकार के थे। इनमें से कुछ की शक्ल और आकार आजकल के हाथियों, ऊटों, सूअरों और मेवों जैसा था। इसके बाद कुछ इस प्रकार के पशु भी पैदा हुए जो वृक्षों पर निवास करते थे और आजकल के बन्दर, लंगूर आदि से मिलते जुलते थे ।
वैज्ञानिकों का ऐसा अनुमान है कि इन्हीं पशुओं क बीच में कहीं पाँच लाख वर्ष या इससे भी कुछ समय पहले मानव का जन्म हुआ।
4. जीवों का वर्गीकरण (Classification of Creatures)
वैज्ञानिकों ने जीवों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया है-
(i) प्रथम महाकाल के जीव (कैम्बियन काल)
इस काल में अमीबा, स्पंज, जैली, मछली, झींगा, बिच्छू, आदि जीवों की उत्पत्ति हो चुकी थी। इन जीवों में रीढ़ की हड्डी नहीं होती थी।
(ii) कार्बन (कोयला) युग के जीव
इस काल में जल-बिच्छू, कान खजूरे, फेफड़े, रीढ़ की हड्डी वाले अनेक जीव, मेंढक, रेंगने वाले जीव, कीट, पतंगे, मक्खियाँ आदि जीवों का जन्म हुआ ।
(iii) परमियन युग के जीव
इस युग में सरीसृप जाति के विशालकाय जीवों का विकास हुआ, जिनमें मगरमच्छ, सर्प, अजगर तथा छिपकली आदि जीवों के पूर्वज थे। इनकी लम्बाई 30 मीटर और ऊंचाई 5 मीटर तक होती थी। इन जीवों की खोपड़ी व मस्तिष्क छोटा होता था। ये जीव मांसाहारी डाइनासोर जीवों के शिकार बने ।
(iv) आधुनिक युग के जीव
इस युग में समतापी और स्तनधारी जीवों की उत्पत्ति हुई, उड़ने वाले पक्षी पैदा हुये और जल में रहने वाले अनेक जीवों का जन्म हुआ
(v) मानव की उत्पत्ति (Origin of Man)
मानव के जन्म की कहानी बड़ी ही महत्वपूर्ण और रहस्य से भरी हुई है। क्या मानव बन्दर और लंगूर आदि का वंशज था या नहीं, यह एक विवाद का विषय है। हाँ, यह बन्दरों आदि से काफी मिलता जुलता था और सभी जीवों में सबसे अधिक अद्भुत जीव था। आधुनिक विद्वानों का मत है कि आदिमानव एक विशेष वर्ग था और हर वर्ग से या वर्तमान मानव से एकदम भिन्न था।
(VI) मानव का विकास (Growth of Human Being)
आदिमानव के विकास की कहानी बड़ी विचित्र और रोचक है। पुरातत्व वेत्ताओं और वैज्ञानिकों ने संसार के विभिन्न भागों में मिलने वाली मनुष्यों की हड्डियों का सूक्ष्म निरीक्षण करके आदि मानव के शारीरिक विकास की कहानी को पूरा करने का प्रयत्न किया है।
(VII) विकास का सिद्धान्त
विकासवाद के सिद्धान्त के प्रवर्तक डार्विन (Darwin) में इन्होंने अपनी पुस्तक “विकासवाद का सिद्धान्त (Theory of Evolution)” में इस बात का प्रतिपादन किया है कि जीव धारियों का विकास आकस्मिक नहीं है।
डार्विन के अनुसार मानव तथा अन्य जीवन वाले प्राणियों का विकास कम जीव कोष वाले तन्तुओं (cells) से हुआ है। एक-एक करके अनेक जीव कोषों के मेल से भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवों की उत्पत्ति होती रही है। लेकिन यह परिवर्तन इतनी धीमी गति से होता है कि उसे जानना कठिन है।
हमारे पौराणिक साहित्य में भी ईश्वर के 24 अवतारों का उल्लेख मिलता है। यह क्रमिक रूप से मत्स्यावतार, कुर्मावतार, बराहवतार और नृसिंह अवतार थे। इससे इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि पहले पृथ्वी पर जल में रहने वाली मछली (मत्स्य) थी, फिर जल व थल दोनों स्थानों में फिरने वाले कछुआ (कच्छप), मेंढक आदि की और फिर स्तनधारी जीव वराह (वनमानुष) एवं फिर अर्द्ध मानव की उत्पत्ति हुई। नृसिंह के बाद के सब अवतार मानव रूप थे ।
आदि मानव के विभिन्न प्रकार (Different Types of Pre Historic Man)
प्राक्कथन- जावा, पेकिंग, हीडल वर्ग (जर्मनी), पिल्टडाउन, नीन्दरथल (जर्मनी), फांस, रोडेशिया तथा संसार के अन्य भागों में खुदाई के उपरान्त आदि मानव के अनेक अवशेष (हड्डियाँ आदि) प्राप्त हुये हैं, जिनका अध्ययन कर मानव विज्ञान शास्त्रियों ने आदि मानव के विषय में बड़ी रोचक और उपयोगी सामग्री प्रस्तुत की है। उनकी खोजों से यह पता चलता है कि आदि मानव को आधुनिक मानव की स्थिति तक पहुंचने में जहाँ लाखों वर्ष लगे, वहां उसे परिवर्तन की अनेक अवस्थाओं में से भी गुजरना पड़ा। प्राप्त अवशेषों के आधार पर आदि मानव के निम्न प्रकारों की खोज की गई है—
1. जावा मानव ( Java Man )
सन् 1894 में एक उच्च सैनिक डाक्टर यूजन दुबोइस ने जावा में स्थित ‘ट्रिनिल‘ (Trinil) नामक स्थान की खुदाई से बन्दर के समान मनुष्य की कुछ हड्डियाँ (दांत, खोपड़ी का ऊपरी भाग तथा पैरों की कुछ हड्डियाँ) प्राप्त की। इन हड्डियों का अध्ययन कर मानव शास्त्रियों ने यह अनुमान लगाया है फि जावा का मानव आज से लगभग 5 लाख वर्ष पहले इस संसार में रहा करता था। उसकी लम्बाई 165 सेन्टीमीटर थी और वह झुक कर बन्दरों के समान चलता था। उनका मस्तिष्क बन्दर से बड़ा, किन्तु आधुनिक मनुष्य से छोटा था।
2. पेकिंग मानव ( Peking Man)
सन् 1921 में पेकिंग के निकट स्थिति चाऊ कोटिन (Chou kou-Tien) नामक स्थान पर खुदाई से 40 नर कंकाल मिले, जिनका अध्ययन करके यह अनुमान लगाया गया है कि आज से 5 लाख वर्ष या उससे भी पहले, ऐसा आदिमानव यहां निवास करता था।
इस खुदाई में एक गुफा से कुछ जली हुई हड्डियां भी मिली हैं। इससे यह अनुमान लगाया गया है कि पेकिंग मानव आग का प्रयोग जानता था। पेकिंग मानव की शक्ल जावा के मानव से मिलती-जुलती है। इस आदिमानव का कद छोटा, उभरी भौंहे, ढालू मस्तक, मजबूत दांत और जबड़े, मोटी गर्दन आदि थी। उपलब्ध पत्थर के औजार इस बात की पुष्टि करते हैं कि पेकिंग का मानव इन औजारों से पशुओं का वध करता रहा होगा।
(३) हीडलबर्ग मानव ( Heidelburg Man)
सन् 1907 में जर्मनी में स्थिति हीडलबर्ग (Heidelburg) नामक स्थान पर मिली हड्डियों को देखकर यह अनुमान लगाया गया है कि यह आदिमानव आज से लगभग 6 लाख वर्ष पहले इस स्थान पर रहा करता था। यह पहले के मानव की अपेक्षा अधिक उन्नत दशा में था और आधुनिक मानव के अधिक निकट था । यह आदि मानव काफी मोटा ताजा, भारी जबड़ों वाला और बलवान था। विद्वानों का अनुमान है कि यह आदि मानव बोलने में असमर्थ था ।
आदि मानव के विभिन्न प्रकार | |
1. जावा मानव | 5. नीम्बरथल मानव |
2. पेकिंग मानव | 6. कोमन्नान मानव |
3. हीबल वर्ग मानव | 7. होमोसेपियन मानव |
4. पिल्टडाउन मानव | 8. रोडेशिया मानव |
4. पिल्टडाउन मानव (Piltdown Mab )
सन् 1612 में इंग्लैण्ड में पिल्टडाउन नमक स्थान पर चाल्स डाउसन (Charles Dowson) नाम के पुरातत्व वेत्ता ने एक खोपड़ी व जबड़े की हड्डियाँ प्राप्त कीं। इन अवशेषों का अध्ययन कर विद्वानों ने यह अनुमान लगाया है कि पिल्टडाउन (Piltdown) मानव आज से लगभग 2 लाख वर्ष पहले रहा करता था ।
यह आदि मानव जिसे हम ‘कवा मानव’ (Dawn Man) कह सकते हैं, पहले के आदि मानवों से अधिक विकसित और सभ्य था और यह जीजारों का प्रयोग करना भी जानता था।
5. नीम्बरथल मानव (Neanderthal Man)
सन् 1956 में जर्मनी के नीम्वरपल और अनेक अन्य स्थानों पर आदि मानव के अनेक अवशेष मिले हैं, जिन्हें देखकर यह अनुमान लगाया गया है कि मीन्टरबल (Neanderthal) मानव, जी आज से एक लाख वर्ष पूर्व रहता था, आकार में आधुनिक मानव के समान था। इस आदि मानव की हड्डियाँ बहुत मोटी, खोपड़ी पीछे से जागे की ओर ढालू, कम चपटा मस्तिष्क; बड़ी व आगे निकली माँहे, भारी तथा लटके जबड़े तथा गर्दन झुकी हुई थी। यह मानव सीवा खड़ा हो सकता था, परन्तु बोलने में असमर्थ था। यह गुफाओं में रहता था, शरीर के घने बाल सर्दी से इसकी रक्षा करते थे। यह मानव आग जलाना, पशुओं का शिकार करना, सुण्डों में रहना, मुर्दों को गाड़ना और अच्छे हथियार व गौजार बनाना आदि जानता था ।
6. कोममा मानव (Cro-Magnon)
फांस में फोरम (Cro-Magnon) नामक स्थान पर अनेक मानव अवशेष मिले हैं, जिन्हें देखकर यह अनुमान लगाया गया है कि यह मानव आज से लगभग ३५ हजार वर्ष पहले रहा करता था। उसका आकार आधुनिक मानव से काफी मिलता-जुलता था। यह मानव ६ फुट से अधिक लम्बा, चौड़े मस्तक, पतली नाक, ऊंची ठोड़ी वाला था। यह तन कर खड़ा हो सकता था। यह अधिक स्वस्थ और सुन्दर भी था। यह बोलना भी जानता था। उसके पत्थर से बने औजार अधिक अच्छे थे। गुफाओं में पाये गये चित्रों से पता चलता है कि यह मानव कलाकार जीवा और चित्रकला में रुचि रखता था ।
7. होमो सेपियन मानव (Homo Sapien Man )
मध्यएशिया के कुछ भागों में मानव जाति के लगभग 30 से 40 हजार वर्ष पुराने हड्डियों के अवशेष मिले हैं। लेकिन इन अवशेषों में काफी भिन्नता मिलती हैं। विद्वानों का अनुमान है कि इस समय मानव दो उपजातियों में बंट चुकां था। एक पूर्व में विकसित होकर फैल जाने वाली भूरे रंग की मानव जाति और दूसरी दक्षिण में विकसित होकर फैल जाने वाली काले रंग की मानव जाति थी।
मानव विज्ञान शास्त्रियों का कहना है कि होमो सेपियन मानव का विकास पामीर के पठार व (३०. काश्मीर के निकट हुआ था और वहीं से इनके समूह प्रत्येक दिशा में फैल गये।
8. रोडेशिया मानव (Rodashia Man )
सन् 1622 में अफ्रीका में रोडेशिया में ब्रोकन हिल Brocken Hill) नामक स्थान पर एक मानव की हड्डियों के अवशेष मिले है। यह नीन्दरथल अर्ध मानव तथा आधुनिक मानव के बीच का मानव प्रतीत होती है। वह तन कर खड़ा हो सकता था और जंगलों जानवरों से रक्षा कर सकता था।
लेकिन यह मानव आधुनिक मानव के समान सम्य नहीं था। यह मानव भी गुफाओं में रहता था और पशुओं का शिकार करके अपना पेट भरता था। वह खेती करना, पशु पालन, मकान बनाना, बर्तन बनाना आदि नहीं जानता था अभी तक हमें कोई ऐसे प्रमाण नहीं मिले हैं, जिनके आधार पर यह कहा जा सके कि यह मानव किस समय आधुनिक मानव के समान शरीर वाला हो गया। अतः यह कहना कठिन है कि यह परिवर्तन कब, कहाँ और कैसे हुआ।
आदि मानव की जातियाँ (Castes of Pre Historic Man)
विश्व के विभिन्न स्थानों से प्राप्त अवशेषों का गहन अध्ययन कर मानव शास्त्रियों ने शरीर के आकार, निचले जबड़े की बनावट, नाव व सिर की बनावट, रंग व बालों की रंगत पर आदि मानव को निम्न चार जातियों में बांटा है-
- नाडिक जाति- इस जाति के मानव का सिर लम्बा व कद छोटा होता था। यह यूरोप के उत्तरी प्रदेश में रहता था। इस जाति के लोग कालान्तर में मध्य एशिया, ईरान और भारत आदि देशों में आबाद हुए और आर्य कहलाने लगे ।
- भूमध्य सागरीय जाति- इस जाति के लोग लम्बे सिर, लम्बे कद, आगे बढ़े हुए जबड़े, काले रंग तथा कराने जाल रखते थे। इनका मूल निवास स्थान भूमध्य सागरीय प्रदेश: अरब, फिलिस्तीन आदि थे।
- आस्ट्रेलियाई जाति- इस जाति के लोगों के सिर लम्बे, रंग काला, बुंधराले बाल तथा कद छोटा था। ये लोग दक्षिणी अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, मलाया आदि देशों में रहते थे ।
- मंगोल जाति- इनके सिर गोल, रंग पीला, कद छोटा और बाल कठोर थे। इनके शरीर की हड्डियां उभरी हुई थीं। इनका मूल निवास स्थान चीन, जापान, नेपाल, दक्षिणी अमेरिका आदि देशों में था।
प्रागैतिहासिक मानव का जीवन (Human Life in Pre Historic Age)
प्राक्कथन- जिस काल के विषय में हमें लिखित सामग्री प्राप्त होती है, उसे इतिहासकारों ने ऐतिहासिक युग का नाम दिया है। इस युग का प्रारम्भ ईसा से लगभग 5 से 7 हजार वर्ष पूर्व माना जाता है। इससे पहले के एक लम्बे-चौड़े काल को पूर्व ऐतिहासिक युग या प्रागतिहासिक युग कहा जाता है।
प्रागैतिहासिक युग के जो अवशेष हमें प्राप्त हुए हैं, वे पत्थर या पाषाण के हैं। इसलिए हम मानव इतिहास के प्रारंभिक काल को पाषाण युग की संज्ञा देते हैं। इस युग के औजार व हथियार दो प्रकार के हैं ।
पहले वे जिन्हें बेडोल पत्थरों से सामान्य तरीके से बनाया गया है और उनमें उत्तम कटाई, चिकनापन तथा सुडौलता का अभाव है । दूसरे वे जो काफी सुन्दर, सुडौल तथा चिकने हैं। इसलिए इतिहासकारों ने इन औजारों तथा हथियारों के आधार पर सम्पूर्ण पाषाण युग को दो भागों में बांट दिया है।
पहले भाग को पुरा या पूर्व पाषाण युग और बाद वाले या दूसरे भाग को नव या उत्तर पाषाण युग कहा जाता है। अब हम पहले पूर्व पाषाण युग में मानव के जीवन का अध्ययन करेंगे ।
पूर्व पाषाण काल (The Paleolithic Age)
1. पूर्व पाषाण काल की अवधि- पूर्व पाषाण की अवधि का अनुमान लगाना एक कठिन कार्य है, क्यों- कि इस काल के विषय में कोई लिखित सामग्री प्राप्त नहीं होती है। विद्वानों का अनुमान है कि पूर्व पाषाण काल की अवधि काफी लम्बी थी और सम्भवतया पूर्व पाषाण काल आज से लगभग 5 लाख वर्ष पहले प्रारम्भ हुआ और अब से लगभग 15 हजार वर्ष पहले समाप्त हुआ। पुरातत्व वेत्ताओं ने पूर्व पाषाण काल को दो भागों में बांटा है-
(i) आदि पाषाण काल (Eolithic Age) – 5 लाख वर्ष से 50 हजार वर्ष पूर्व तक
(ii) पूर्व पाषाण काल (Palacolethic Age) – 50 हजार वर्ष से 15 हजार वर्ष पूर्व तक।
2. पूर्व पाषाण काल की भौगोलिक परिस्थितियाँ – इस युग की भौगोलिक परिस्थितियाँ आज की परिस्थितियों से बिल्कुल भिन्न थीं। विद्वानों का अनुमान है कि पूर्व पाषाण काल की लम्बी अवधि में अनेक भौगोलिक परिवर्तन हुए । भूगर्भवेत्ताओं के अनुसार इस काल में कोई एक लाख वर्षों के अन्तर से चार हिम युग आये।
पहले हिम युग के समय एवं प्रदेश जमकर बर्फ हो गये और बर्फ की परतें यूरोप, एशिया तथा उत्तरी अमेरिका तक फैल गई। इस भयंकर हिमपात और वर्षा के कारण पेड़, पौधे, पहाड़ आदि और डाइनासोर जैसे विशालकाय जीव तथा मानव की अनेक जातियाँ भी दबकर नष्ट हो गई, परन्तु कुछ मनुष्य अपनी बुद्धि का प्रयोग करके, गुफाओं में रहकर तथा आग का सहारा लेकर दक्षिणी भाग को और भाग कर यच्च निकले और हिम युग के बाद कुछ समय गर्मी पड़ने पर संसार के गर्म स्थानों में फैल गये।
इसी प्रकार के तीन अन्य हिम युग आये, जिनमें भी अनेक भौगोलिक परिवर्तन हुये अन्तिम हिम युग आज से कोई 50 हजार वर्ष पहले हुआ था, जिसके कुछ लक्षण आज भी टुण्ड्रा प्रदेश में पाये जाते हैं। इन हिम युगो के मध्य काल और उसके बाद मानव निरन्तर उन्नति के पथ पर बढ़ता रहा।
3. पूर्व पावाण काल में मानव जीवन का विकास – सभ्यता के विकास की कहानी के अध्ययन से बहू स्पष्ट है कि मानव के विकास और हथियारों के विकास का धनिष्ठ सम्बन्ध है। मानव ने इस काल में जो खोजें कीं, “वही मानव सभ्यता के विकास की आधार शिलायें बनी । मानव में पशुओं की अपेक्षा दो गुण अधिक थे। वह हाथ का प्रयोग कर सकता था, उसका मस्तिष्क अधिक विकसित था। अतः मस्तिष्क की चिन्तन शक्ति के द्वारा वह अपने हाथों को प्रयोग में लाने लगा। वास्तव में यह कहना ठीक हो है कि मानव के इतिहास की कहानी संसार की प्राकृतिक शक्तियों के साथ उसके संघर्ष की कहानी है।
संक्षेप में पूर्व पाषाण काल के मानव जीवन का श्रमिक विकास निम्न प्रकार से हुआ –
(1) औजार और हथियार- इस काल में मनुष्य का जीवन बड़ा कठोर और संघर्ष पूर्ण था। सबसे पहले मनुष्य ने जंगली जानवरों से अपनी रक्षा के लिये पत्थरों के हथियार बनाने शुरू किये। सर्वप्रथम उसने पत्थर का हथौड़ा बनाया और फिर उसकी सहायता से कुल्हाड़ी, चाकू, राम्पियाँ या पत्थर खरोंचने वाले औजार तैयार किये।
कुछ समय के बाद वह साधारण पत्थरों के स्थान पर अधिक मजबूत चकमक पत्थर से औजार और छेनियाँ आदि बनाने लगा | ऐसी छेनियाँ यूरोप, अफ्रीका तथा एशिया के अनेक देशों में प्राप्त हुई हैं। लेकिन इस युग के औजार व हथियार सीदे-सादे, बेडौल, बिना तराशे तथा बिना पालिश के थे ।
(2) भोजन – इस काल में मनुष्य खेती करना नहीं जानता था। वह भोजन की तलाश में इधर- घूमता रहता था और अनेक प्रकार के कन्द मूल, जंगली फल (सेव, नाशपाती, चेरी, बेरी) आदि खाकर अपना पेट भरता था। धीरे-धीरे वह खरगोश, रेनडियर, चूहे तथा मछली जैसे छोटे-छोटे जीव-जन्तुओं का शिकार करने लगा। कुछ समय के बाद वह हाथी, गैंडा, रीछ, दरियाई घोड़े, चीते तथा शेर आदि भयंकर पशुओं का खाइयाँ आदि खोदकर शिकार करने लगा । वह अब पशुओं की खाल पहनने लगा था।
(3) पहनावा – इस काल में प्रारम्भ में मनुष्य ने सर्दी से बचने के लिए वृक्षों के पत्तों व छाल का प्रयोग करना सीखा। कुछ समय के बाद वह मारे गये पशुओं की सालों को पत्थर के बीजारों से साफ करके पहनने लगा। बाद में वह कई खालों को सिलकर उनका प्रयोग बिस्तर के रूप में करने लगा। इस काल में उसने हड्डियों से सुइयाँ बनाना भी सीख लिया ।
(4) निवास स्थान- इस काल में मनुष्य घने वृक्षों के नीचे और गुफाओं में रहता था। जंगली जानवरों से ‘सुरक्षा के लिए वह गुफाओं को पत्थरों व वृक्षों की डालों से ढक दिया करता था।
(5) आग की खोज – प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि पेकिंग का मानव आग के प्रयोग से परिचित था। अतः इस काल में मानव ने आग की खोज कर ली थी। विद्वानों का अनुमान है कि आज से कोई 5 लाख वर्ष पहले मनुष्य ने बिजली गिरने, ज्वालामुखी फटने, सूखी डालों के परस्पर रगड़ने या पत्थरों के आपस में टकराने से आग को जलते हुए देखा होगा।
प्रारम्भ में तो वह आग से भयभीत रहता होगा। लेकिन धीरे- धीरे वह अपनी बुद्धि के बल पर आग की उपयोगिता को समझने लगा। बाद में वह सर्दी से बचने, रात में रोशनी करने, जंगली पशुओं को भगाने के लिए आग का प्रयोग करने लगा। सैकड़ों वर्षों के बाद वह आग की सहायता से अपना भोजन भी पकाकर खाने लगा ।
(6) कला- संसार के अनेक भागों में, विशेषक में स्थित मास्को (Lascaux) की गुफाओं में विभिन्न पशुओं (माण्ड, मुअर) के चित्र उपलब्ध होते हैं, जिनके आधार पर विद्वानों ने यह अनुमान लगाया है कि इस काल में मानव चित्रकारी से परिचित था। वह बाली समय में बच्चों के, समान गुफाओं की दीवारो पर विभिन्न प्रकार के पशुओं के चित्र बनाया करता था।
यह बात बड़ी आश्चयजनक है कि इस काल के चित्रों में लाल, पीले, नोले और भूरे रंग का भी प्रयोग मिलता है। नेल्सन नामक विद्वान का कहना है कि. “लाल, नीला, पीला व भूरा आदि रंग इन चित्रों में ऐसे चमकते हैं, मानो वे नये हो ।” इस काल में मानव अपने औजारों व हथियारों पर खुदाई करके पशुओं के चित्र उन पर बनाता था। इस काल में पत्थर, मिट्टी तथा हड्डी की कुछ मूर्तियां भी प्राचीन नात्व बनाता था।
(7) नृत्य कला- इस काल में मनुष्य ने (पूर्व पाषाण युग लगभग 250 हजार वर्ष पूर्व) बोलना नहीं सीखा था। इसलिए वह नाचकर अपने विचारों को प्रकट किया करता था। धीरे-धीरे जब मनुष्य ने बोलना सीखा तो वह नाच के साथ कुछ गाने भी लगा । इस काल के मिले चित्रों को देखकर विद्वानों ने यह अनुनाम लगाया है कि पूर्व पाषाण काल में मनुष्य प्रसन्नता, अन्धविश्वास व धार्मिक कारणों से नाचा गाया करता था।
(8) धर्म और विश्वास – इस युग में मनुष्य काफी समय तक पशुओं के समान जीवन व्यतीत करता रहा। धीरे-धीरे उसमें धार्मिक भावनायें तथा विश्वास उत्पन्न होने लगे। पहले उसने अपने पूर्वजों के सम्मान में उनकी पूजा करना सीखा। फिर वह बिजली, भूकम्प, आंधी तूफान आदि प्राकृतिक शक्तियों में भयभीत होकर जादू-टोने में विश्वास रखने लगा।
(9) शव विसर्जन — इस युग में मनुष्य ने अपने मृतकों को दफनाना सीख लिया था । ऐसे प्रमाण मिले हैं कि जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस युग में मनुष्य मृतक के शरीर पर पाउडर छिड़कता था और उसे सम्भवतया फिर से जिन्दा करने का प्रयास करता था। वह अपने मृतकों के साथ अस्त्र-शस्त्र, आभूषण तथा भोजन की वस्तुओं भी जमीन में गाड़ देता था। विदानों का अनुमान है कि शायद इस युग में भी मनुष्य का पुर्नजन्म में विश्वास था।
(10) सामाजिक तथा राजनीतिक भावना का उदय – विद्वानों का अनुमान है कि इस काल में मनुष्य ने जंगली जानवरों और प्राकृतिक शक्तियों में अपनी रक्षा करने के लिए समूह बनाकर रहना सीख लिया था। एक समूह में जो सबसे अधिक शक्तिशाली मनुष्य होता होगा, वह ही समूह का नेता बन जाता होगा। इस प्रकार आंशिक रूप से इस काल में मनुष्य में सामाजिक व राजनीतिक भावनाओं का उदय होने लगा था।
इस प्रकार स्पष्ट है कि पूर्व पाषाण काल में मनुष्य धीरे-धीरे सभ्यता के रास्ते पर बढ़ने लगा था। पाषाण युग के एक लम्बे काल में मनुष्य ने बहुत की ऐसी आधारभूत विशेषतायें प्राप्त कर ली थीं, जिनके कारण बाद में वह उन्नति करने में सफल हो सका। उसने औजार बनाये, आग पर नियन्त्रण करता मीखा, अपने लिए हर प्रकार के वस्त्र बनाये और किसी न किसी प्रकार अपना निवास स्थान बनाया। लेकिन इस युग. में मनुष्य ने घर बना कर रहना, खेती करता तथा पशु आदि को पना नहीं सीखा था।
भारत में पूर्व पाषाण युग (The Paleolithic Age in India)
भारत में पूर्व पाषाण युग के अवशेष बहुत कम मात्रा में प्राप्त हुए हैं। विशेष कर दक्षिणी भारत के कई स्थानों में इस युग को अनेक वस्तुयें मिली है। जिला कुरुनूस (मैसूर) की गुफाओं से कुछ वर्तनों के टुकड़े मिले हैं और मध्य प्रदेश, बिहार तथा उड़ीसा में कुछ पत्थर के बीजार पाये गये हैं, जिनमें गोल पत्थर, हवी, गंडाने, कुल्हाड़े वर्षों, चाकू आदि प्रमुख है। मध्य प्रदेश के जिले रायगढ़ में बाम के बासे बनाये गये कुछ चित्र भी मिले हैं, जिनमें पशुओं और शिकार के दृश्यों को चित्रित किया गया है।
नव पाषाण काल में मानव जोवन (Humans Life in Neolithic Age)
प्राक्कथन— मानव स्वभाव से ही एक बौद्धिक प्राणी है और उन्नति करना उसकी मूल प्रवृत्ति है। इस लिए हजारों वर्षों के बाद पूर्व पाषाण युग के मानव ने सभ्यता की ओर एक नया कदम बढ़ाया और एक नए युग में प्रवेश किया। यह नवीन युग मानव जाति के इतिहास में नव पाषाण युग के नाम से विख्यात है।
इस युग में मानव के हथियार और औजार पत्थर के ही थे, परन्तु अब वे पहले की भांति भद्दे व बेडौल नहीं थे। इस युग में मानव साफ, सुन्दर तथा सुडौल बजार व हथियार बनाने लगा था और उन पर पालिश भी करने लगा था। इस परिवर्तन के कारण ही इसे नव पाषाण युग का नाम दिया गया है। जब हम इस युग के मानव जीवन की विशेषताओं का अध्ययन करेंगे ।
1. नव पाषाण काल की अवधि
मानव शास्त्रियों और पुरातत्व वेत्ताओं के अनुसार यूरोप में इस काल का प्रारम्भ आज से लगभग एक लाख वर्ष पहले, अफ्रीका (नील की घाटी) व एशिया (भारत) में आज से कोई 15 हजार या 12 हजार पूर्व शुरू हो चुका था। नव पाषाण काल 12 हजार मा 10 हजार वर्ष ईसा पूर्व से प्रारम्भ होकर लौह काल तक अर्थात 4 या 5 हजार वर्ष ईसा पूर्व तक जारी रहा। लेकिन यह अवधि विद्वानों के अनुमान पर आधारित है, क्योंकि इस काल का भी कोई लिखित प्रमाण हमें उपलब्ध नहीं है
2. नव पाषाण काल की मौगौलिक परिस्थिति
इन काल में संसार बाज का सा रूप ग्रहण करता था रहा था। यूरोप और एशिया में हिम युग के चिन्ह मिटते जा रहे थे और बर्फ का प्रभाव साइबेरिया तथा ग्रीनलैण्ड आदि स्थानों तक ही सीमित रह गया था भूमध्य सागर और हिन्द महासागर मिल गये थे और चारों तरफ नये पेड़-पौधे व जीव जन्तु उत्पन्न होने लगे थे। दक्षिणी फ्रांस, स्पेन, दक्षिणी इटली, दक्षिणी जर्मनी एशिया बरब, मिथ, लीबिया, सीरिया, एशिया माइनर, कीट, पूनान आदि देशों में मनुष्य की अनेक जातियाँ निवास करने लगी थी और मानव सभ्यता के मार्ग पर तेजी के साथ चल पड़ा था।
3. नव पाषाण काल में मानव जीवन की विशेषतायें
इस काल में मानव जीवन की प्रमुख विशेषता निम्नलिखित थीं-
1. औजार और हथियार
इस युग में मनुष्य छोटे, हल्के, सुडौल, तेज तथा पालिशवार औजार व हथियार बनाने लगा था, हथियारों की संख्या भी तेजी के साथ बढ़ने लगी थी। चाकू, छुरी में हथौड़ी में लकड़ी तथा हड्डी के हेण्डिल लगाये जाने लगे थे। लकड़ी के हेण्डिल की कुल्हाड़ी व तीर कमान बनाना भी मनुष्य ने सीख लिया था मछलियों को पकड़ने के लिए मनुष्य कांटों का निर्माण करने लगा था।
2. पशु पालन
इस काल में मनुष्य ने सबसे पहले कुत्ते को पालना प्रारम्भ किया। धीरे-धीरे वह मेड़, बकरी तथा गाय आदि पशुओं को पाल कर उनका दूध व मांस प्राप्त करने लगा। कुछ समय के बाद उसने सवारी व माल ढोने के लिए घोड़ों, ऊंटों आदि को पालना शुरू कर दिया ।
3 कृषि का प्रारम्भ
इस युग के पहले मनुष्य भोजन की तलाश में इधर-उधर घूमता रहता था और जंगली कन्दमूल खाकर अपना पेट भरता था। विद्वानों का अनुमान है कि इस काल में कृषि की खोज शायद किसी स्त्री ने की। स्त्री ने किसी दिन कन्द मूल इकट्ठा करते समय पक्षियों को अनाज के दाने चुगते देखा और उसने अनुभव किया कि हम भी पक्षियों के समान इन दानों को खाकर अपना पेट भर सकते हैं। इसके बाद मनुष्य जंगली दानों को जमा करने लगा। फिर शायद कुछ दाने किसी स्थान पर नमी पाकर पौधे के रूप में उग बाये, जिन्हें देखकर मनुष्य के मन में कृषि करने का विचार जागृत हुआ ।
कृषि के लिए पानी की आवश्यकता पड़ती है, इसलिए मनुष्य ने पहले ऐसे स्थानों पर कृषि करनी शुरू की, जो नदियों के किनारे स्थित थे। ऐसे स्थान उन दिनों मिश्र में नील नदी के किनारे, मेसोपोटामिया (आधुनिक ईराक), दजला-फेरात, गंगा-सिन्धु, ह्वांगहो तथा यांगसिक्यांग आदि नदियों के किनारों पर उपलब्ध थे। इन स्थानों पर मनुष्य खेती करने लगा। पहले उसने देती के लिए भूमि को तैयार करने के लिए पत्थर के औजारों और पशुओं के सीगों का सहारा लिया। फिर उसने धीरे-धीरे फावड़ा, कुदाली और बाद में हल का निर्माण कर लिया । इस युग में मनुष्य गेहूं, चावल, जौ, मटर, सन आदि की खेती करने लगा ।
(4) निवास स्थान
कृषि के प्रारम्भ हो जाने से मनुष्य के लिए गुफाओं में रहना कठिन हो गया । अब वह अपने खेतों के निकट वृक्षों की डालियों, पत्तों, घास फूस, पत्थर के टुकड़ों तथा खालों की सहायता में झोंपड़ियाँ बनाकर रहने लगा। धीरे-धीरे वह अपनी सुरक्षा के लिये झीलों के बीच में अपने निवास स्थान बनाने लगा ऐसी झोंपड़ियों के अवशेष 1=54 में स्विटजरलैण्ड की एक झील में पाये गये थे । धीरे-धीरे मनुष्य अपने निवास स्थान मिट्टी. कच्ची ईटों तथा लकड़ी की सहायता से बनाने लगा ।
कुछ समय के बाद एक स्थान पर बहुत सी झोपड़ियाँ बनायी जाने लगीं और गाँव बसने लगे जोर्डन नदी की घाटी में जेरिको (Jericho) नामक गांव के अवशेष मिले हैं, जो ईसा से कोई 6 हजार वर्ष पहले आवाद था।
(6) वस्त्र
पूर्व पाषाण काल में तो मनुष्य या तो नंगा रहता था या सर्दी आदि से बचने के लिए पशुओं की खाल पहन लेता था। लेकिन इस युग में उसने भेड़ों की ऊन और सन आदि से किसी न किसी प्रकार कपड़ा कपड़ा बुनकर उसे पहनना शुरू कर दिया। लेकिन इस युग के वस्त्र आज के टांट या बोरी के समान ही थे ।
(6) आभूषण आदि
इस युग में स्त्रियों ने पत्थर, सीप व हड्डी के बने हुए विभिन्न प्रकार के आभूषणों को पहनना शुरू कर दिया और वे बालों को भी संवारने लगी।
(7) खान-पान
इस काल में मनुष्य ने दूध, दही, घी, मक्खन, शहद आदि का प्रयोग करना शुरू कर दिया था । विद्वानों का अनुमान है कि वह गेहूं व जौ की रोटी भी खाने लगा था।
(8) बर्तन बनाना
इस युग में मनुष्य अनाज, पानी, फल-फूल आदि रखने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाने लगा था। धीरे धीरे वह इन बर्तनों में भोजन भी बनाने और खाने लगा ।
(9) पहिये का आविष्कार
पहिये का आविष्कार इस युग की एक महत्वपूर्ण घटना थी क्योंकि पहिये के बिना तो आधुनिक सभ्यता ही असम्भव है । इस युग में मनुष्य ने पहिये का आविष्कार करके छोटी-छोटी माल ढोने वाली गाड़ियों और सवारी केि लये रथों को बनाने लगा । पहिये का सहारा लेकर मनुष्य ने चाक बनाया बौर तेजी के साथ बर्तन बनाने लगा। पहिये की सहायता से उसने कताई व बनाई की कला में भी उन्नति करनी शुरू कर दी ।
(10) कला
इस काल में चित्रकला, मूर्ति निर्माण कला तथा संगीत कला का विकास भी प्रारम्भ हो गया। स्पेन में वलनशिया (Valencia) नामक स्थान पर मिले अनेक चित्रों में शिकारियों का तीर व कमान के साथ शिकार करते हुए, स्त्री को शहद जमा करते हुए दिख युग में हुए दिखाया गया है। इन्हें देखकर पता चलता है कि इस मनुष्य स्त्री व पुरुषों के चित्र बनाने लगा था। पश्चिमी फांस और रूस में हाथी दांत तथा पत्थरों का बनी हुई स्त्री व पुरुषों की अनेक मूर्तियां मिली हैं। विद्वानों का अनुमान है कि वे मातृ बेबी की मूर्तियाँ हैं, जिनकी पूजा शायद इस युग में प्रारम्भ हो चुकी थी ।
इस काल में मनुष्य न संगीत के भी कुछ औजार बना लिये थे। विद्वानों का विचार है कि शायद धनुष की टंकार, बादलों के गर्जन या नदी की कल की आवाज से मनुष्य को संगीत के विभिन्न साज बनाने की प्रेरणा मिली हो। इस काल की अनेक हड्डी से बनी सीढ़ियाँ, बाँस की बाँसुरी, वनुष के आकार की कोटी खितार तथा मिट्टी व चमड़े से बने ढोल विभिन्न स्थानों पर उपलब्ध हुई है।
(11) धर्म और विश्वास
इस युग में मनुष्य पृथ्वी, जल तथा सूर्य आदि की पूजा करने लगा था। विद्वानों का कहना है कि इगलैण्ड स्थित स्टोनहेज (Stonehenge) के स्थान पर मिले अवशेष सूर्य मन्दिर के ही हैं।
इस काल में भी मनुष्य अपने शत्रु को पराजित करने, वर्षा लाने, रोगी को ठीक करने तथा अन्य कार्यों के लिए जादू-टोनों का प्रयोग करता था। जादू-टोने के प्रचलन से मानव समाज में पुजारियों और जादू-टोना करने वालों का महत्व बढ़ने लगा था। इस युग में मानव अपने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पशुओं की बलि भी देने लगा था।
(12) शव विसर्जन
इस काल में भी मनुष्य अपने मृतकों को जमीन में गाड़ता था और उसके साथ भोजन, वस्त्र आदि अनेक वस्तुयें रख देता था। धीरे-धीरे उसने मृतकों की समाधियाँ भी बनानी शुरू कर दीं, जो मिट्टी के ऊंचे टीले या स्तूप के आकार की होती थी और उनके चारों ओर पत्थरों की बाढ़ सी लगा दी जाती थी ।
(13) सामाजिक तथा राजनीतिक संगठन
इस काल में कृषि के प्रारम्भ हो जाने के कारण मनुष्य एक ही स्थान पर समूह के रूप में स्थायी रूप से रहने लगा। एक समूह में अनेक परिवार होते थे शक्तिशाली व्यक्ति समूह का नेता और बयोवृद्ध व्यक्ति परिवार का मुखिया होता था । प्रारम्भ में पितृ प्रधान परिवार अस्तित्व में आये और विवाह प्रथा भी शुरू हो गई। धीरे-धीरे एक परिवार अनेक परिवारों में बंट गया। परिवारों के मिलने से जातियाँ और बाद में कबीले अस्तित्व में आने लगे । कबीलों के उदय के साथ ही साथ मनुष्य में राजनीतिक संगठन की भावना तेजी के साथ बढ़ने लगी ।
सामाजिक व राजनीतिक विकास के साथ ही साथ भाषा का भी विकास हुआ। मनुष्य अपने अनुभव के आधार पर शब्द रचना करता गया। धीरे-धीरे शब्द भण्डार बढ़ता गया और अनेक प्रकार की भाषाएं और बोलियों का प्रचलन शुरू हुल्ला । प्रत्येक परिवार और कबीले ने अपनी-अपनी भाषा का प्रसार किया। कुछ समय बाद fafe (लिखने की कला) का भी आविष्कार हुआ । इस प्रकार व पाषाण युग में मनुष्य धीरे-धीरे बदंर व जंगली अवस्था को त्याग कर सभ्यता के मार्ग पर बढ़ने लगा
भारत में सुदूर भारत में नव प्रवास युग (The Neolithic Age in India) दक्षिण के भाग को छोड़कर मारे देश में नव पाषाण युग के अवशेष मिले हैं, जिनमें विशेषकर दक्षिण के जिले सलेम, मालाबार व उत्तर में बिजापुर तथा बांदा और मध्य भारत में रायगढ़ (मध्य प्रदेश) तथा होसंगाबाद में इस युग के सुडौल, सुन्दर व पालिशदार औजार व हथियार, मिट्टी के बर्तन आदि भारी संख्या में मिले हैं।
आज भी भारत में अनेक आदिम जातियां मिलती हैं, जिनमें गॉड, नोल, कोल, सम्याल, नागा मिजो, खासी आदि प्रमुख हैं। इन जातियों का जन-जीवन आज भी काफी पिछड़ा हुआ है. और इनके रीति-रिवाज के धार्मिक विश्वास भी काफी पुराने हैं।
विदेशों में प्रागतिहासिक संस्कृति (Pre Historic Culture in Forolgy Countries)
दक्षिणी अफ्रीका में आज भी कुछ ऐसी जातियां पायी जाती है, जो पाषाण युग के अधिक निकट हैं। उनके औजार पाषाण युग के ही हैं और ये जातिया मनुष्य का मांस खाती हैं। सामाजिक, आर्थिक मिक जीवन भी आदिम संस्कृति से मिलता-जुलता है। सी न्यूजमेण्ट में मओरी, उत्तरी अमेरिका में एस्किमो दक्षिण अमेरिका में इसको व रेड इण्डियन जाति के लोग आज भी पाषाण युग की सभ्यता में ही जीवन व्यतीत करते हैं। इस प्रकार पाषाण युग में मानव सभ्यता की उन्नति की गति बड़ी धीमी रही, परन्तु धातुओं की खोज के बाद उस गति में आचर्यजनक वृद्धि होने लगी। पाषाण युग के बाद कांसे का युग आया और इसके बाद बाज से कोई ३ हजार वर्ष पहले लोहे का प्रयोग प्रारम्भ हो गया। इसी के साथ विश्व में नदी घाटी की सभ्यतायें विकसित होने लगीं और मानव नस्यता के शिखर की ओर तेजी के साथ बढ़ने लगा।
पूर्व पाषाण काल और नव पाषाण काल की तुलना (Comparision of the Paleolithic Age and the Neolithic Age)
नव पाषाण काल में मानव का जीवन पूर्व पाषाण काल की अपेक्षा काफी बदल चुका था। समय की गति के साथ नव पाषाण युग में अनेक ऐसे परिवर्तन जा गए, जिनके परिणामस्वरूप वह पूर्व पाषाण युग से काफी भिन्न हो गया। संक्षेप में मानव सभ्यता के इन दो कालों की तुलना निम्न प्रकार से की जा सकती है—
पूर्व पाषाण काल | नव पाषाण काल |
(1) पूर्व पाषाण काल की अवधि आज से लगभग 5 लाख वर्ष पहले से 12000 वर्ष तक रही।
(2) पूर्व पाषाण काल में चार हिम युग हुए, जिनमें संसार की भौगोलिक परिस्थितियों में भयंकर परिवर्तन हुए। (3) पूर्व पाषाण काल के हथियार मोटे, सीधे-साधे और बेडौल थे । (4) पूर्व पाषाण काल का मनुष्य एक शिकारी था। (5) इस काल का मानव भोजन के लिए मारा-मारा फिरता था । (6) इस युग में मनुष्य ने आग की खोज कर ली थी । (7) इस काल में मनुष्य गुफाओं तथा वृक्षों की डालों पर रहता था। (8) इस काल में मनुष्य मांग तथा कन्दमूल खाकर अपना पेट भरता था । (9) इस काल में मनुष्य प्रायः नंगा रहता था या वृक्षों की छाल, पत्ते व पशुओं की खालों से अ शरीर ढकता था। (10) इस काल में मनुष्य पैदल घूमा करता था। (11) इस युग में पूर्वजों की पूजा, जादू-टोनों में विश्वास और शव को दफनाना मनुष्य के धार्मिक जीवन के प्रमुख अंग थे । (12) इस युग में पशुओं की अपेक्षा अपनी शारीरिक शक्ति में कमी होने के कारण मनुष्य से समूह में रहना आरम्भ कर दिया और उनमें सबसे अधिक शक्तिशाली व्यक्ति समूह का नेता बन गया। |
(1) नव पाषाण काल की अवधि १२००० वर्ष ईसा पूर्व से लेकर ५ मा ६ हजार वर्ष ईसा पूर्व तक रही।
(2) नव पाषाण काल में हिम युगों का प्रभाव निरन्तर कम होता गया और संसार की भौगोलिक स्थिति आज के समान बनती गई। (3) नव पाषाण काल के औजार अधिक साफ-सुथरे, चिकने और पालिशदार थे। (4) नव पाषाण काल में मनुष्य कुछ पशुओं को पाल कर गडरिया बन गया। (5) इस काल में मनुष्य ने भोजन पैदा करना सीख लिया था। (6) इस युग में मनुष्य ने आग के प्रयोग और वर्तनों को बनाना सीख लिया था । (7) इस काल में मनुष्ये झोंपड़ी बनाकर रहने लगा था। (8) इस काल में मनुष्य मांस के साथ-साथ दूध, गेहूं, चावल, शहद आदि का प्रयोग करने लगा था। (9) इस काल में मनुष्य ने ऊन तथा सम के बने मोटे कपड़े पहने लगा था। (10) इस काल में उसने घोड़ों, ऊंटों तथा रथों का प्रयोग करना सीख लिया था । (11) प्रकृति की उपासना, जादू-टोनों में विश्वास, मनुष्य व पशुओं की बलि तक के साथ उसकी अनेक वस्तुओं को दफनाना आदि नव पाषाण युग के मनुष्य के धार्मिक जीवन की प्रमुख बातें थीं। (12) हम युग में मनुष्य परिवार व कवी में रहने लगा और उसमें राजनीतिक संगठन की भावना तेजी के साथ विकसित होने लगी। |