रोम की सभ्यता (Roman Civilization)
रोम, इटली देश की राजधानी है। यह देश पुशेष महाद्वीप के दक्षिण में स्थित है। इटली की तीन मुख्य नदियाँ पो, अरनी और टाइबर हैं। रोम ‘टाइबर’ नदी पर स्थित है और कई पहाड़ियों से घिरा होने के कारण यह बड़ा सुरक्षित है। जिस समय यूनान में मेसोटोपिया का सम्राट सिकन्दर महान अपने साम्राज्य को विस्तार कर रहा था, उसी समय रोम की सभ्यता दीरे-धीरे उन्नति के मार्ग पर बह रही थी । धीरे-धीरे यह छोटा सा नगर एक नगर राज्य में बदल गया और बाद में रोम का एक बहुत विशाल साम्राज्य बन गया।
1. प्राचीन रोम के निवासी (Citizens of Ancient Rome)
प्राचीन रोम में अनेक जातियों के लोग निवास करते थे । इटली के उत्तर में एट्रस्कन जाति का, मध्य इटली में लेटिन जाति का, दक्षिण में यूनानियों का तथा पश्चिमी भाग में कार्येजनियन जाति का प्रभुत्व था। सबसे पहले रोमन और एट्रस्कन जातियों में संघर्ष हुआ । एट्रस्कन सभ्यता ने बाद में स्थापित होने वाली रोमन सभ्यता को बहुत प्रभावित किया। रोमन जाति विशाल आर्य जाति की ही एक शाखा थी जो १२०० ईसा पूर्व रोम के निकट प्रदेश में रहने लगी थी ।
2. रोम का राजनीतिक इतिहास (Political History of Rome)
पौराणिक कथाओं के अनुसार रोमुलस (Romulus) तथा ‘रामस’ नामक भाइयों ने 753 ईसा पूर्व में रोम नगर की नींव डाली थी। एक अन्य कथा के अनुसार ट्राय युद्ध के प्रसिद्ध ‘ट्रोजन वीर इनीज ने अपनी पराजय के बाद एक नए राज्य की खोज में इटली में प्रवेश किया और उसके पुत्र ने रोम नगर की स्थापना की ।
प्राचीन समय में रोम एक छोटा सा नगर राज्य था और उसे अपनी स्वाधीनता के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। गोल (Gout) तथा एट्रस्कन जातियों से रोमवासियों को कई बार युद्ध करना पड़ा। अन्त में 276 ई० पू० तक रोम ने अपने सभी शत्रुओं को पराजित करने में सफलता प्राप्त कर ली और इटली पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। इसके बाद रोमन साम्राज्य का विस्तार उत्तरी अफ्रीका में स्थित कार्थेज (Carthage) नामक राज्य के साथ कोई एक शताब्दी तक होने वाले युद्धों के कारण रुका रहा, परन्तु 202 ई० के लगभग जामा (Zana) के युद्ध में रोमन कार्थेज के विख्यात सेनापति हैनीबाल (Hanibal) को पराजित करने में सफल रहे और कार्थेज पर उनका अधिकार हो गया ।
इसके बाद मेसीडोनिया पर भी रोम ने अपना अधिकार जमा लिया और यूनान को रोमन साम्राज्य में मिला लिया। इसके बाद जूलियस सीजर, सिसरो और आगस्टस सीजर आदि सम्राटों के काल में रोम के सामाज्य का अत्यधिक विस्तार हुआ। इस विशाल सामाज्य की सीमायें पूर्व में दजला नदी से पश्चिम में स्पेन तक और दक्षिण में सहारा के मरुस्थल से लेकर उत्तर में ब्रिटेन तक फैली हुई थीं। रोमन साम्राज्य तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी तक फलता फूलता रहा ।
3. राजनीतिक जीवन और शासन व्यवस्था (Political Life and System of Administration):-
रोम के राजनीतिक जीवन को तीन भागों में बाटी जा सकता है –
(I) राजतन्त्र युग (753-506 ईसा पूर्व) – इस युग रोम में राज तन्त्र का बोलबाला रहा। इस समय राजा ही सारे देश का सबसे बड़ा अधिकारी होता था। वहीं धार्मिक गुरु भी होता था और वहीं प्रधान न्यायाधीश होता था ।
(II) गणतन्त्र युग (506-27 ईसा पूर्व):- सन 506 ईसा पूर्व के लगभग राजाओं की विलासिता से तंग आकर रोमवासियों ने अन्तिम राजा तारक्यून (Tarquin) को गद्दो से उतार कर रोम में गणतन्त्र की स्थापना की। अब सीनेट हो शासन की प्रधान उत्तरदायी संस्था बन गई। सीनेट बुढों को एक स्थायी संख्या थी। यही मासन कार्य चलाने के लिये दो अधिकारी चुनती थीं, जिन्हें व सिल कहा जाता था। कोसल एक वर्ष के लिये चुने जाते थे, जो एक-दूसरे की शक्ति पर नियंत्रण रखते थे। संकट काल में जनता एक विशेष अधिकारी का चुनाव करती थी, जो डिक्टेटर या अधिनायक कहलाता था। यह अधिनायक समस्त अधिकारों को अपने हाथ में ले लेता था और उसके निर्णय के विरुद्ध कोई अपील नहीं हो सकती थी लेकिन इस अधिकारी का कार्यकाल ६ महीने से अधिक नहीं होता था। अन्त में 27 ईसा पूर्व रोम में गणतन्त्र शासन का अस्त हो गया।
(III) साम्राज्य युग (27 ईसा पूर्व से 476 ई० तक ) – रोम में आन्तरिक संघर्ष के कारण मेरियस (Marius) सुल्ला (Sulla) पॉम्पी (Pompey) तथा जूलियस सीजर जैसे सेनापति अत्यधिक शक्तिशाली बन गये। गृह युद्ध के दौरान 44 ईसा पूर्व में जूलियस सीजर का वध हो गया और उसके भतीजे आगस्टस सीजर ने अन्त में, रोम में पुनः राजतन्त्र की स्थापना कर दी। आगस्टस सीजर या ऑक्टेवियस (Octavius) के शासन काल में रोमन सभ्यता का काफी विकास हुआ। इसके बाद मार्कस ओरिलियस (Marcus Aurelius-160-180 AD) और कान्स्टेण्टाइन (Constantine 306-337 A.D) जैसे योग्य प्रजापालक तथा धार्मिक शासक हुये। कॉन्स्टेण्टाइन ने रोम के स्थान पर बाइजेण्टियम को अपनी राजधानी बनाया जो आज भी उसी के नाम पर कान्सटेण्टी नोपल के रूप में विख्यात है।
साम्राज्य युग में सारा साम्राज्य अनेक प्रान्तों में विभक्त था। इन प्रान्तों में एक समान शासन व्यवस्था प्रचलित थी और सभी में एक जैसे कानून लागू होते थे । रोमन लोगों का शासन प्रबन्ध उच्च कोटि का था । अपने विशाल साम्राज्य की व्यवस्था व संगठन के लिए रोमन शासकों ने एक विशाल सेना संगठित कर रखी थी। सेना के एक स्थान से दूसरे स्थान को जाने के लिए अनेक सड़कों तथा पुलों का निर्माण किया गया था।
(IV) सामाजिक जीवन (Social life)- रोमन समाज मुख्य रूप से दो भागों में बटा हुआ था। पहला वर्ग पेट्रीशियन (Patricion) कहलाता था, जिसमे धनी व सामन्त लोग शामिल थे । वे जमीनों के स्वामी होते थे और वैभव पूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। उनके भवन बड़े विशाल और सुन्दर होते थे। वे अपना बहुत सा समय खेल तमाशों और गाने बजाने में व्यतीत करते थे। दूसरे वर्ग में साधारण जनता आती थी जिन्हें ब्लीबिन्ज (Plebias) कहा जाता था। इसमें कारीगर और मजदूर लोग शामिल थे, जो छोटा मोटा बन्धा करके अपनी जीविका चलाते थे ।
इन दोनों वर्गों के अतिरिक्त रोमन समाज में बहुत से दास भी हुआ करते थे जिन्हें प्रायः किसी प्रकार के भो अधिकार प्राप्त नहीं थे। वे पशुओं के समान जीवन बिताते थे और उन्हें खरीदा व बेचा जाता था। उनकी दशा रोमन समाज में बड़ी ही शोचनीय थी।
रोमन परिवार में पिता हो पर का मुखिया होता था। उसकी आज्ञा का पालन परिवार के सभी सदस्यों को करना पड़ता था। रोमन समाज में स्त्रियों का बड़ा मान और सम्मान था ।
रोमन लोग सरस, दंगल, पशुओं के युद्ध, रथों की दौड़ आदि के शौकीन थे। लगभग प्रत्येक नगर में जंगली पशुओं के युद्ध के लिए अखाड़े बने हुये थे। कभी-कभी दासों अथवा मुद्ध बन्दियों को शेर, चीता या रीछ बादि पशुओं से लड़ने के लिये विवश किया जाता था। रोम में नाटक खेलने व देखने का भी काफी प्रचार था।
(V) आर्थिक जीवन (Economic Life) – आरम्भ में रोमन वासियों का मुख्य व्यवसाय खेती करना था। वे गेहूं, जौ, बाजरा, मटर, अंगूर व अंजीर आदि की कृषि करते थे । साम्राज्य विस्तार के साथ-साथ रोमन व्यापार की भी उन्नति होने लगी। अब कृषि कार्य दासों से कराया जाने लगा और अनेक व्यवसायों की तेजी के साथ प्रगति होने लगी । रोमन लोग भारत मिश्र, अरब व सीरिया आदि देशों के साथ व्यापार करने लगे । भारत में मिले रोमन सिक्के इस बात के प्रमाण है।
(VI) धार्मिक जीवन (Religious Life) – प्रारम्भ में रोमवासी एक ही ईश्वर में विश्वास रखते थे । बाद में यूनानियों के प्रभाव के कारण वे अनेक देवी-देवताओं की पूजा करने लगे। उनके प्रमुख देवी-देवता- जुपिटर (Jupitor) मार्स (Mars), मिनर्वा (Minerva ), डायना (Diana) आदि थे। मार्मिक कार्यों का सम्पादन पुरोहित लोग करते थे। रोमन लोग धार्मिक मामलों में बड़े सहनशील थे। उन्होंने धर्म के नाम पर कभी भी अत्याचार नहीं किये। ‘राजा आगस्टस को रोमवासी एक देवता के समान पूजते थे। बाद में अन्य रोमन सम्राटों की भी ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में उपासना की जाने लगी। रोमन साम्राज्य में ईसाई धर्म की उत्पत्ति हुई और उसका काफी प्रसार हुआ । ईसाई धर्म का प्रवत्तक ‘ईसा मसीह’ फिलिस्तीन के निवासी थे, जो रोमन साम्राज्य का ही एक प्रान्त था। रोमन सम्राट कॉन्स्टेन्टाइन’ ने ईसाई धर्म के प्रचार के लिये वही कार्य किया, जो भारत में सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के लिये किया था ।
(VII) शिक्षा और साहित्य (Education and Literature ) — रोम में शिक्षा का अच्छा प्रबन्ध वा । उस समय प्राइमरी और हाई स्कूल दोनों प्रकार की शिक्षा की सुन्दर व्यवस्था थी । घनी बच्चे घर पर ट्यूवान लगाकर पढ़ते थे। रोम में गणित, रेखागणित, संगीत, नृत्य, शारीरिक शिक्षा (व्यायाम), ज्योति, कानून, वास्तुकला आदि विषयों की शिक्षा दी जाती थी। शिक्षा में अनुशासन को बड़ा महत्व दिया जाता था।
रोम में साहित्य का भी काफी विकास हुआ। प्राचीन रोम में ‘होरेस’ (Horace) और जिल (Vergil) आदि विख्यात कवियों को जन्म दिया, जिनकी अमर रचनाओं से रोम का गौरव सारे संसार में फैल गया। ‘लिबी’ (Livay ) नामक इतिहासकार ने रोम के गणतन्त्र का इतिहास लिखा और ‘टेसीटस’ (Tacitus) ने रोम के पतन की कहानी लिखी। सिसरो’ जैसा महान दार्शनिक और ‘टालमी’ जैसा भूगोलशास्त्री रोम की ही देन थे।
(VIII) भवन निर्माण कला (Architecture) – रोम वासी भवन निर्माण कला में बड़े प्रवीण थे। इन्होंने मेहराबों, गोलाकार छतों और गुम्बजों का प्रयोग संसार को सिखाया। इनको सहायता से रोमनां ने रोम और पॉम्पी आदि नगरों में अनेक सुन्दर नाट्यगृहों, मण्डियों, सभागृहों, देव मन्दिरों, राजमहलों, स्नानागारों और विजय स्तम्भों का निर्माण किया।
उस समय रोम संसार का सबसे सुन्दर नगर था। उसके सात-सात मंजिलों के विशाल भवन आज भी आधुनिक भवनों की चमक-दमक को फीका कर देते हैं। सम्राट ‘पॉम्पी (Pompey) द्वारा बनवाया गया थियेटर भवन निर्माण कला का एक उत्कृष्ट नमूना था। इसके बीच में तो रंगमंच था और चारों ओर गोलाई में एक तिमंजला भवन था, जिसकी प्रत्येक मंजिल को अलग-अलग तरीके से सजाया गया था। रोमन शासक जूलियस सीजर द्वारा बनवाया गया शाही सभागृह एक भव्य संगमरमर का भवन था । रोमन सम्राट आगस्टस द्वारा बनवाया गया राजमहल भी एक दर्शनीय वस्तु थी । इसके अतिरिक्त रोमन कारीगरों ने उच्चकोटि के गर्म स्नानागार भी बनाये, जिनमें ‘अपोलोडोरस’ (Appllodorus) का स्नानागार विशेष रूप से उल्लेखनीय है। रोमन शासकों ने नई दिल्ली के ‘इण्डिया गेट’ के समान अनेक विजय द्वारों का भी निर्माण किया, जिनमें ‘टीटस का विजय द्वार’ सबसे अधिक सुन्दर था ।
रोमन भवन निर्माण कला के अन्य सुन्दर नमूने हमें ‘कोलोसियम’ (Colosseum) और ‘पैथीअन’ (Pantheon) नामक मवनों में मिलते हैं। कोलोनियम एक प्रकार का गोलाकार विवेटर (मण्डप) बा, जहाँ रोमवासी पशुओं और दासों के दंगल देखा करते थे। इसमें 45 हजार दर्शकों के बैठने का प्रबन्ध था। योजन एक देव मन्दिर था, जिसमें सभी देवताओं को मूर्तियाँ स्थापित की गई थीं। यह मन्दिर एक गोलाकार भवन था । उसको 20 फुट मोटी दीवारों पर एक विशाल गुम्बज बना हुआ था, जिसकी ऊंचाई 142 फुट थी। पर मन्दिर आज भी सुरक्षित है। इनके अतिरिक्त रोम का सेन्ट पीटर का गिर्जाघर, कुस्तुनतुनिया को सेन्ट सोफिया का चर्च’ और ‘ओम (शलक का चर्च’ भवन निर्माण कला के सुन्दर उदाहरण हैं ।
सड़क और पुल बनाने में भी रोमवासी अन्य देशों के लोगों से बहुत आगे थे। उनकी सड़कें बड़ी मजबूत थीं और उनको बनाने में बजरी, रेत, चूना तथा सोमेन्ट आदि सामग्री का प्रयोग होता था। प्राचीन काल को सड़कें बाज मी रोम में पायी जाती है। रोगवासियों द्वारा बनाये गये भवन, बाँध, नहरें आदि आज भी ब्रिटेन, जर्मनी फांग, स्पेन, उत्तरी अफ्रीका तथा एशिया माइनर में मिलते हैं। फ्रांस में एक पुल और 100 फुट ढकी नाली आज तक मौजूद है।
(IX) मूर्तिकला (Sculpture) – रोम में असंख्य मूर्तियों का निर्माण हुआ था। जूलियन सीजर, ऐन्टोनी मार्कस आरलियन आदि शासकों की मूर्तियां बड़ी सुन्दर है। अधिकतर मूर्तियां देवताओं के नमूने पर बनती थी। रोमन मूर्तिकला यूनानी कला से प्रभावित थी।
(X) चित्रकला और पच्चीकारी (Painting and Plastic Art)- रोम चित्रकला यूनानी चित्रकला के समान थी। रोमवासी भित्तिचित्र बनाने में दक्ष थे। पापाई नगर में रोमन चित्रकला के अनेक नमुने मिले हैं। रोमन पत्थर व प्लास्टर में नक्काशी का काम बड़े सुन्दर तरीके से करते थे। शीशे के बर्तन बनाते समय कटाई और चित्रकारी का सुन्दर काम होता था ।
(XI) रोमन कानून ( Roman Law) – रोमन सभ्यता की एक बड़ी देन रोमन का कानून संग्रह है। रोम के समक्ष सभी एक समान थे । न्याय में पक्षपात नहीं किया जाता था । ४५० ई० मे रोम में पहला मैं कानून कानून संग्रह तैयार किया गया, जो १२ तालिकाओं में विभक्त था। इसमें परिवार धन सम्बन्धी, विवाह व तलाक सम्बन्धी कानून शामिल थे। छठी शताब्दी में सम्राट जस्टोनियन (Justinian-527-565 A. D) मे कानूनों को मिला कर एक विशाल कानून संग्रह तैयार करवाया, जिसमें दीवानी और फोजदारों के सभी कालुक शामिल थे।
(XII) विज्ञान ( Sciences) – प्टालिमी ने स्थिति विज्ञान का विकास किया और पार्ट का मुल्यांकन किस एल्डर ने प्रकृति सम्बन्धी ग्रन्थ लिखे । ‘सेनेका’ ने ज्योतिप, भूगर्भ तथा भूकम्प के विषय में नमी विचार धाराओं का प्रतिपादन किया। ‘ग्लेन’ ने चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन्जीनियरिंग में रोम ने विशेष उन्नति की थी।
(XIII) रोमन सम्राट (Roman Emperors) – रोम में ऐसे अनेक महान शासक हुए, जिन्होंने रोमन सभ्यता को संसार में अमर बना दिया। इन शासकों में दो के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है-
(i) जूलियस सीजर (100 ईसा पूर्व से 44 ई० पू० तक)- जूलियस सीजर ने 12 जुलाई 100 ईसा पूर्व को एक धनी परिवार में जन्म लिया था। वह विख्यात रोमन राजनीतिज्ञ मेरियस (Marius) का नतीजा था। उसका गुरु एण्टोनियस (Antonius) अरस्तु के समान ही संसार का एक महान विद्वान था। अपनी योग्यता के बल पर जूलियन सोजर उन्नति करता हुआ रोम का प्रथम कोमल (Consal) व प्रधान न्यायाधीश बन गया । 25 मार्च, 44 ईसा पूर्व को उसका वध कर दिया गया।
सीजर एक महान सेनानायक अच्छा विद्वान, कुशल प्रशासक और दूरदर्शी राजनीतिज्ञ था। उसने 48 ईसा पूर्व में चिली में पास्थी को पराजित किया और मिश्र, स्पेन, गॉल तथा ब्रिटेन पर अदा किय स्थापित किया। उसकी गणना संसार के महानतम व्यक्तियों में की जाती है । वह कहा करता था कि मैं आया, मैंने देखा और मैंने विजय प्राप्त कर ली।” उसने देश में फैली हुई अव्यवस्था और अराजकता का अंत किया। सेनापति के रूप में उनकी तुलना हैनिवाल तथा सिकन्दर महान से की जा सकती है।
(ii) आगस्टस सीजर (27-14 ईसा पूर्व)- यह भी रोम के महान सम्राटों में से एक था। यह जूि यस सीजर का भतीजा था और इसका वास्तविक नाम ‘ओक्टेवियस था इसने लगभग ४० वर्षों तक रोम में शासन किया। इसके राज्यकाल को रोम के इतिहास का स्वर्ण युग माना जाता है। आगस्टस एक प्रवाहि कारी शासक था। उसने देश में अनेक सुधार किये। उसके समय में रोम का काफी आर्थिक विकास हुआ और कला तथा साहित्य की विशेष उन्नति हुई।
इन सम्राटों के अतिरिक्त ‘रोमन सम्राट नीरो’ बड़ा अत्याचारी था। उसने अनेक लोगों की हत्या कराई। उसके सम्बन्ध में यह कहावत प्रचलित है कि ‘जब रोम जल रहा था, उस समय नीरों अपने महल में बैठा हुआ बांसुरी बजा रहा था। इसके बाद रोम में ईयन (68-117 ई०) हैट्रियस (117-138 ई०), एंटों नियत (135 – 161 ई०) और मार्कस आरकिलियस (161–180 ई०) चार महान सम्राट हुये। मार्कस एक दार्शनिक सम्राट था । इसके बाद सम्राट कॉन्सटेन्टाइन (323-337 ई०) के समय में ईसाई धर्म रोम का राजधर्म बन गया ।
(XIV) रोमन सभ्यता की बेन (Legacy of Roman Civilization) — रोमवासी असाधारण प्रतिभा के व्यक्ति थे । उन्होंने संसार को निम्न देने दी हैं-
• रोमवासियों ने ही सर्वप्रथम विश्व साम्राज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया।
• रोमनों ही सबसे पहले सुसंगठित तथा अनुशासित शिक्षा का प्रबन्धं किया ।
• रोम ने जूलियस सीजर, पॉम्पी जैसे महान सेना नायकों को जन्म दिया।
• रोमन कानून विश्व की सभ्यता को सबसे बड़ी देन हैं ।
• सैनिक संगठन के क्षेत्र में रोमवासी संसार में अग्रणी माने जाते थे ।
• रोमन धर्म में सहनशीलता थी और रोम ने ही इसाई धर्म को संसार भर में प्रसारित किया ।
• रोम की भवन निर्माण कला संसार में सर्वश्रेष्ठ थी ।
• साहित्य, विज्ञान, दर्शन आदि के क्षेत्र में भी रोम की अनेक देने वही महत्वपूर्ण है