सिक्ख धर्म के संस्थापक ‘गुरु नानक’ (1469-1538 ई०) थे। उन्होंने सिक्ख जाति को संगठित कर एक धारिक सम्प्रदाय का रूप प्रदान किया। सिक्ख धर्म की पवित्र पुस्तक ‘ग्रन्य साहब’ है। गुरुद्वारों में ‘पद साहब’ का पाठ किया जाता है। गुरु नानक की प्रमुख शिलायें निम्नलिखित थीं-
(1) सिक्ख धर्म में जाति-पाति का भेद-भाव नहीं किया जाता है। गुरु नानक सभी जातियों की एकता के समर्थक थे।
(2) मिक्स धर्म के अनुसार गुरु के माध्यम से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है।
(3) सिक्ख धर्म के अनुनार व्यक्ति को ईश्वर की भक्ति भाव से प्रार्थना और उपासना करनी चाहिए।
(4) मिक्स धर्म भी एक ही ईश्वर में विश्वास रखता है। गुरु नानक के अनुसार ईश्वर तो एक ही है.लेकिन उसके नाम अनेक है।
(5) विख धर्म चरित्र निर्माण, सदाचार पर विशेष बल देता है।
(6) सिक्त धर्म के अनुसार मनुष्य को मन की गुद्धि के साथ भोग साधना करनी चाहिए ।
(7) सिक्त्रों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह ने विकत्र सम्प्रदाय को सैनिक रूप से संगठित करके खालसा पत्य की स्थापना की और प्रत्येक सिक्ख के लिए पांच ककार-नेश, कड़ा, कंघी, कच्छा और कृपाण रखना अनिवार्य कर दिया।