1. सभ्यता की खोज (Discovery of Civilization)—18 वीं शताब्दी तक मेसोपोटामिया के 50 निवासी अपने प्राचीन गौरव को भूले हुए थे। प्राचीन ईशक के मुख्य नगर बालू में दब चुके थे और उनके विषय में किसी को कोई जानकारी नहीं थी । 16 वीं शताब्दी में सर लियानार्ड बूली (Sir Leonard wooley) ने ईरान के प्राचीन नगर ‘उर’ के स्थान पर खुदाई की जहा से अन्य वस्तुओं के अतिरिक्त उसने मिट्टी की तख्तियाँ, शाही कब्र और मोजेक के काम के नमूने खोद निकाले। बाद में अनेक स्थानों पर खुदाईयाँ की गई, जिनके फल- स्वरूप परसेंट पुलिस, निप्पुर, बाबुल, उर, निनेवेह आदि कुछ प्रमुख नगरों के खण्डहर प्राप्त हुए । इन खुदाइयों से देवताओं की बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ प्राप्त हुई और राजा डेरियन का प्राचीन शिला लेख मिला । यह लेख फारसी, एलामी तथा अन्य तीन लिपियों में लिखा गया था। इन लिपियों के पढ़ने के बाद और असंख्य वस्तुओं के अध्ययन से सुमेरिया की सभ्यता प्रकाश में आई । इस सभ्यता की खुदाई से एक राजकीय कब्रिस्तान और एक विभिन्न रंगों वाला झण्डा भी मिला है ।
2. सभ्यता के मूल निवासी (Citizens of the Civilization) -सुमेरिया के मूल निवासी कौन थे, इस सम्बन्ध में अभी तक कोई लिखित सामग्री उपलब्ध नहीं हुई है। इस सम्बन्ध में विद्वानों के विभिन्न मत हैं। कुछ विद्वान इन्हें मंगोल तथा द्रविड़ जाति का मानते हैं। कुछ का कहना है कि सिन्धुवासियों ने यहाँ सभ्यता का प्रचार किया । कोष (Keith) का मत है कि सिन्धु तथा सुमेरियन सभ्यता दोनों का उद्गम स्थान कहीं फरात और सिन्धु नदियों के बीच में था । सिन्धु सभ्यता व सुमेरियन सभ्यता की अनेक वस्तुटों एक समान है। इसलिए कुछ विद्वान इस सभ्यता को आर्य तथा द्रविड़ सभ्यता का सम्मिश्रण बताते हैं। कुछ विद्वानों का मत जमींदार है कि यह उस जाति से सम्बन्धित थे, जो पश्चिम में स्पेन से लेकर पूर्व में प्रशान्त महासागर तक और भूमध्य सागर के तटीय प्रदेशों में फैली हुई थी ।
(3) राजनीतिक जीवन (Political Life ) — सुमेरियन सभ्यता के अन्तर्गत किश (Kish), उर (Ur), लगाश (Lagash), उल्मा (Umma) तथा निप्पर (Nippur) आदि नगर राज्य स्थापित थे । 3500 ईसा पूर्व के लगभग यहाँ पर केन्द्रीय शासन संगठित हो चुका था। यहाँ के प्राचीन नगर राज्य आपस में सदैव लड़ा करते थे। प्रत्येक नगर राज्य का अपना-अपना शासक होता था, जो प्रायः ‘पुरोहित’ होता था । इस शासक को ‘परोसी’ (Patesi) या पतेस्ती (Patesti) कहा जाता था । उर नगर की खुदाई से मिले अवशेषों से पता चलता है कि प्रत्येक नगर राज्य में एक विशाल और भव्य महल होता था, जो चारों ओर परकोटे (दीवारों) से घिरा होता था। राजा अपने अधिकारियों की सहायता से अपने राज्य के कार्यों का संचालन करता था।
सुमेरियन सम्राटों में किस की रानी ‘भजगवाक’, ‘उर’ के सम्राट ‘डर एंगर (Ur Engur) और लगाया के शासक ‘गुडिया’ (Gudea ) का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। रानी अजगवाऊ’ ने ‘किस’ पर लगभग २० वर्षों तक शासन किया था। उसके काल में साहित्य, कला और व्यापार की काफी उन्नति हुई थी । उर एंगर राजा के काल में स्थापत्य कला का अत्यधिक विकास हुआ। लगाश का शासक ‘गुडिया’ एक प्रजाहितकारी राजा था। उसकी मृत्यु के बाद लोग देवता के समान उसकी पूजा करने लगे थे। उसने २६०० ईसा पूर्व के लगभग शासन किया था ।
2750 ईसा पूर्व में एक सेमेटिक या खानाबदोश जाति ने सम्पूर्ण सुमेरिया पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। इस जाति का पहला महान शासक ‘सारगन प्रथम’ (Sargon I) था। इसके काल में सुमेरियन: साम्राज्य का विस्तार फारस की खाड़ी से लेकर भूमध्य सागर तक फैल गया। इसके 200 वर्षो के बाद इस साम्राज्य का भी अन्त हो गया।
प्राचीन काल में सुमेरिया में अनेक छोटे-छोटे नगर राज्य थे। आरम्भ में इन राज्यों में प्रजातन्त्र शासन प्रणाली नी । प्रत्येक राज्य में एक सभा होती थी, जिसके राज्य के सभी वयस्क नागरिक सदस्य होते थे । ईसा पूर्व ३००० वर्ष में सुमेरिया में राजतन्त्र शासन प्रणाली की स्थापना हुई ।
इस समय राज्य की सेना का विभाजन नहीं होता था। राजा ही प्रमुख सेनापति होता था । सैनिक अनुष-बाण व तलवार आदि शस्त्रों से युद्ध किया करते थे ।
प्राचीन सुमेरिया में न्याय वदण्ड व्यवस्था प्राचीन परिपाटियों और रीतिरिवाजों पर आधारित थी। बाद में न्यायालयों की स्थापना की गई, जिनमें साधारण व धार्मिक न्यायालय प्रमुख थे। फिर लेन-देन, विवाह आदि के विषय में कानून बनाये गये। इस समय सुमेरिया में ‘जैसे को तैसा’ या ‘दाँत के सदले बांत’ जैसा दण्ड विधान प्रचलित था ।
(४) सामाजिक जीवन (Social Life ) — मिश्री समाज के समान सुमेरियन समाज भी तीन वर्गों में बंटा हुआ था। उच्च वर्ग में राजवंश के लोग, उच्च अधिकारी तथा पुरोहित लोग शामिल थे । मध्यम वर्ग में जमींदार, व्यापारी व व्यवसायी लोग थे, जबकि निम्न वर्ग में कृषक और दास लोग शामिल थे। सुमेरियन समाज में दास प्रथा प्रचलित थी, परन्तु यह मध्यकालीन यूरोप की भाँति कठोर नहीं थी। सुमेरियन समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी थी। उन्हें सम्पत्ति रखने का अधिकार था और वे अपना अलग व्यवसायं भी अपना सकती थीं
इस सभ्यता के समाज में प्रायः एक विवाह की प्रथा प्रचलित थी, लेकिन कुछ कारणों से बहु विवाह भी हुआ करते थे। सुमेरियन लोगों का रहन-सहन बहुत उच्च कोटि का था। वे लोग सूती और ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे। सुन्दर पक्के मकानों में रहते थे और सफाई तथा पवित्रता की ओर विशेष ध्यान देते थे। गेहूं, क . तथा खजूर आदि उनका मुख्य भोजन था ।
(5) आर्थिक जीवन (Economic Life ) — सुमेरियन नगरों की खुदाई से सोना, चाँदी, आभूषण सुन्दर हार, हाथी दांत, रथ व उच्च कोटि का फर्नीचर मिला है। इससे पता चलता है कि वे लोग आर्थिक दृष्टि मे बड़े सम्पन्न थे ।
सुमेरिया की भूमि काफी उपजाऊ थी । अतः यहाँ के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था । लोग बांध बनाकर व नहरें निकाल कर सिचाई द्वारा अपने खेतों को उपजाऊ बनाते थे। गेहूँ, जौ, दालें तथा साक-सब्जा आदि यहाँ की मुख्य फसलें थीं। पशु पालन भी सुमेरियन वासियों का प्रमुख व्यवसाय था । गाय, बैल, भेड़ बकरी, गदहे आदि पशुओं के लिए चारे की कोई कमी न थी।
सुमेरियन बड़े अच्छे कारीगर भी थे। सोना, चांदी, तांबा, हाथी दांत, पत्थर और लकड़ी आदि से वे बड़ी सुन्दर वस्तुयें बनाते थे । वे झुंती और कभी दोनों प्रकार का कपड़ा बुनना भी जानते थे। उन्होंने पक्की ईटों द्वारा सुन्दर मन्दिरों और राज महलों का निर्माण किया । पहिये का आविष्कार भी इन्होंने ही किया, क्योंकि सुमेरियन संसार में सबसे अधिक प्राचीन माने जाते हैं । सुमेरियन लोगों का व्यापार भी काफी विकसित था। सिन्धु घाटी में मिली मोहरों से पता चलता कि सुमेरियन लोगों का व्यापार भारत से बहुत अधिक मात्रा में होता था। सुमेरिया में सूती ऊनी कपड़े, पदार्थ फल तथा चमड़े की वस्तुएँ बाहर भेजी जाती थीं और बाहर से सोना, चांदी, तांबा, हाथी दांत और सन्दल की लकड़ी आदि वस्तुयें सुमेरिया में आती थी। आरम्भ में यह व्यापार ‘वस्तु विनिमय’ से होता था। बाद में सोने व चांदी की मुद्रा व्यापार का माध्यम बन गई ।
सुमेरिया में मिली मोहरों से पता चलता है कि यहाँ के व्यापारी व्यापारिक लेनदेन व हिसाब-किताब रखने में प्रयोग में उस समय वही जाता लिखने का प्रचलन प्रारम्भ हो चुका था ।
(6) न्याय व्यवस्था (Judical System ) :-न्याय व्यवस्था तथा कानून बनाना इन सभ्यता की प्रमुख विशेषतायें थी। उर तथा गी आदि कानूनों की ‘संहिता का निर्माण किया था। इस समय परिवार, व्यापार, सामाजिक जीवन सभी पर कानून बने हुये थे। न्यायालय दो प्रकार के थे । धार्मिक व्यायालय, जिनमें पुरोहित, निर्षद देते थे और राजकीय न्यायालय, जिनमें राजा प्रमुख न्यायाधीश होता था। मुकदमों की सुनवाई का लिखित रिकार्ड रखा जाता था। ऐसे बहुत से रिकार्ड मिट्टी की तख्तियों पर खुदाई में मिले हैं।
(7) धार्मिक जीवन (Religious life) – सुमेरिया धर्म प्रधान देश था। प्रारम्भिक नगर राज्यों में प्रत्येक नगर का अपना-अपना देवता होता था । पुरोहित देवता के प्रतिनिधि के रूप में शासन कार्य चलाते थे।
इस समय वायु देवता या एनलिल (Eniil), सूर्य देवता या ‘शोमश’ (Shamash) तथा ईश्वर (Ishtar) देवी की पूजा सम्पूर्ण सुमेरिया में की जाती थी।
इन देवी-देवताओं के विशाल और भव्य मन्दिर होते थे जिनमें निप्पर का वायु देवता का मन्दिर, लगाझ का सूर्य देवता का मन्दिर प्रमुख थे। इन मन्दिरों को जिम्गुरात (Ziggurates) कहा जाता था। इन मन्दिरों के गुजारियों का समाज में बड़ा मान व सम्मान था धन की अधिकता के कारण उनका जीवन विलासमय हो गया था
सुमेरियन लोगों में अन्ध विश्वास जादू-टोना तथा सर्जन्म की धारणा प्रचलित थी। ये लोग देवता प्रसन्न करने के लिए बलि भी चढ़ाते थे।
सुमेरिया के निवासी अपने मुर्दों कोजमीन में गाड़ते थे। उस समय शाही कब्रों में राजा रानी के शवों को एक साथ रखा जाता है।
(8) सुमेरियन कला (Sumerian Arts) सुमेर निवासी बड़े कला प्रेमी थे। उन्होंने संसार मेहराब, स्तम्भ और गुम्बद बनाने का ज्ञान हा जो आधुनिक भवन निर्माण कला एक प्रमुख अंग है । इस काल में सुमेरियन नगरों में विशाल व भव्य मन्दिर बनाये गये थे इलें होती थीं और दीवारों पर नाना प्रकार की पच्चीकारी की जाती थी । मन्दिरों की छतों पर लकड़ी की सुमेरेयन लोग कुशल शिल्पकार भी थे। वे सोने, चांदी, बोहे आदि की ढलाई की कला जानते थे । खुदाई में लोहे के अनेक औजार मिले हैं। यद्यपि सुमेरियन मूर्तिकला में सजीवता और सुन्दरता का अभाव था, फिर भी उन्होंने विभिन्न धातुओं के आभूषण बना कर इस कमी को पूरा कर लिया था। इस काल में कपड़ा बुनने, बर्तन बनाने, मोहरें बनाने की कला काफी उन्नत थीं ।
(e) लेखन कला (Art of Writing) – सुमेरिया में लगभग 3000 ईसा पूर्व में कीलक लिपि का अविष्कार हुआ। अनेक विद्वानों का मत है कि सुमेरियन लेखन कला के प्रथम आविष्कारक थे । चित्र लिपि की भाँति लिपि में भी विभिन्न रूप अक्षरों व शब्दों को व्यक्त करते है जिनकी संख्या 250 के लगभग थी। ये कोणात्मक तर होते थे। एक अक्षर एक शब्द के एक भाग को प्रकट करता था । कई चिन्हों को मिलाकर एक बड़ा शब्द नाया जाता था। सुमेरियन चिकनी मिट्टी की पतली तख्तियों पर लिखा करते थे और सरकन्डे की कलम का योग करते थे । तख्तियों को आग में तपा कर पक्का कर लिया जाता था, जिससे लिखावट कड़ी और पक्की हो ती थी। खुदाई में एक ऐसा पुस्तकालय भी मिला है, जिसमें तीस हजार तख्तियों को क्रमानुसार रखा गया । इस समय के शिला लेख भी उपलब्ध हुये हैं ।
(10) साहित्य (Literature) – सुमेरियन लोगों ने साहित्य के क्षेत्र में भी काफी उन्नति कर रखी थी। उनके पास कहानियों, गीतों, महाकाव्यों तथा धार्मिक साहित्य का विपुल भण्डार था। खुदाई में मिली प्लॅटे व सख्तियों इस बात की पुष्टि करती हैं ।
(11) विज्ञान (Sciences) – (I) गणित—सुमेरिमन लोगों ने गणित, विशेषकर अंकगणित और रेखा- गणित में विशेष उन्नति की थी। उनकी गिनती में 60 के अंक का अपना विशेष महत्व था । उन्होंने ही सबसे पहले एक घण्टे को 60 मिनटों और एक मिनट को 60 सेकण्डों में बाँटा । सबसे पहले उन्होंने ही वृस को 360 अंशों में विभक्त किया। उन्होंने अने विषयों पर वैज्ञानिक परीक्षण किये। वनस्पति विज्ञान और रसायन विज्ञान में आज भी कुछ सुमेरियन नाम प्रचलित हैं।
(II) भूगोल-खुदाई से 2707 ईसा पूर्व का एक मानचित्र मिला है जिसमें पृथ्वी गोल दिखाई गई है 1 और सात महासागर दिखाये गये हैं। इससे पता चलता है कि उन्हें भूगोल का भी काफी ज्ञान था। वे वर्ष 360 | दिनों का मानते थे और पाँच-छः वर्षों में एक फालतू महीना जोड़कर इस अन्तर को दूर कर लेते थे। वे वर्षों के नाम किसी महत्वपूर्ण घटना के नाम पर रख देते थे ।
(II) ज्योतिष बौर खगोल विद्या-सुमेरियन लोगों ने सूर्य, चन्द्रमा और अनेक नक्षत्रों का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन किया। उन्हें चन्द्र व सूर्यग्रहण का ज्ञान था। वे भविष्यवाणी भी करते थे। कुछ सुमेरियन विद्वानों ने सगोल तथा फलित ज्योतिष की रचना की थी ।
(12) सुमेरियन सभ्यता की देन (Legacy of Sumerian Civilization) – इस प्रकार स्पष्ट है कि ईस से चार-पांच हजार वर्ष पहले सुमेरियन लोगों ने एक उच्चतम सभ्यता का विकास कर रखा था। बिल डयूरे नामक विद्वान ने सुमेरियन सभ्यता की देन पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि “सुमेरियन लोगों ने सबसे पहले राज्यों और साम्राज्यों का निर्माण किया, सबसे पहले सिचाई के साधनों का प्रयोग किया, सबसे पहले सोने चाँदी की वस्तुओं को विनिमय के माध्यम के रूप में प्रयुक्त किया, सबसे पहले लिखित व्यापारिक समझौते किये और ऋण सम्बन्धी नियम बनाये, सबसे पहली कानून संहिता बनायी, सबसे पहले लेखन कला का व्यापक प्रयोग किया, सबसे पहले पुस्तकालय तथा विद्यालय खोले और मेहराब, गुम्बद तथा स्तम्भों का प्रयोग किया । इस प्रकार विश्व सभ्यता को उनकी देनें कम महत्वपूर्ण नहीं हैं।