बेबीलोनिया की सभ्यता (The Babylonian Civilization In Hindi)

प्राक्कथन – सुमेरियन सभ्यता के बाद मेसोपोटामिया में एक अन्य सभ्यता का विकास हुआ, जिसका मुख्य केन्द्र बेबीलोन (Babylon) था, इसीलिए इस सभ्यता को बेबीलोनिया की सभ्यता कहा जाता है।

1. राजनीतिक इतिहास (Political History) बेबीलोनिया की सभ्यता के निर्माता सेमेटिक (Semetic) जाति राजनीतिक इतिहास (Political History) बेबीलो लोग थे, जो सुमेरिया के आस-पास के प्रदेशों में खानाबदोश के समान जीवन व्यतीत करते थे । मेसोपोटामिया की | उपजाऊ भूमि से आकर्षित होकर वे धीरे-धीरे इस घाटी में आकर बसने लगे । 2750 ईसा पूर्व में इस जाति के पहले कबीले ने सुमेरिया के निवासियों से लड़कर कुछ प्रदेश प्राप्त कर लिये और आपकड. (Akkad) का राज्य स्थापित कर लिया।

धीरे-धीरे इस कबीले ने उन्नति की बौर 2500 ईसा पूर्व के लगभग आपकादियन ‘शासक’ ‘सारगन महान’ (Sargon the Grat) ने सारे मेसोपोटा- मिया पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। इसी शासक ने बेबीलोन या बाबुल नगर की नींव डाली। इस नगर के नाम पर भी यह सभ्यता बेबीलोनिया की सभ्यता कहलाई।

इसके दो सौ वर्षों के बाद आक्काडियन साम्राज्य का पतन होने लगा और सेमेटिक जाति के अन्य कवीले मेसोपोटामिया में आने लगे । 2300 ईसा पूर्व के लगभग ‘एलोमाइट’ कबीले ने दक्षिण के कुछ नगरों पर अधिकार कर लिया। इसके बाद 2200 ईसा पूर्व में ‘अमोराइट’ ( Amorite) कवीले ने मेसोपोटामिया पर आक्रमण कर दिया और आक्कादियन व एलोमाइट कबीलों को पराजित करके मेसोपोटामिया के एक बढ़े भाग पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। इन कबीले का सबसे अधिक शक्तिशाली शासक हेम्मुराबी (Ham murabi) था जिसने 2123 से 2080 ईसा पूर्व तक मेसोपोटामिया पर शासन किया। यह शासक एक महान विजेता, महान प्रशासक, राजनीतिज्ञ तथा कानून निर्माता था। इसके शासन काल में स्थापत्य कला का भारी विकास हुआ और कानून के क्षेत्र में क्रांतिकारी सुधार हुये ।

हेम्मूराबी की मृत्यु के बाद उसके साम्राज्य का पतन होने लगा। 2750 ईसा पूर्व में पश्चिम से हिटाहर (Hitities) जाति ने और पूर्व से साइट (Kassites) जाति ने आक्रमण करके बेबोलोनिया के साम्राज्य को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। बाद में बेबीलोनिया पर असीरिया व मिश्र का अधिकार हो गया। इसके बाद 6043से 562 ईसा पूर्व के बीच राजा नेवूकदरेजार (Nebuchadrezzar) ने थोड़े समय के लिए बेबीलोनिया के प्राचीन गौरव को फिर से स्थापित करने का प्रयत्न किया और झूलते हुए बाग (Hanging gardens ) बनवाये। इस शासक की मृत्यु के बाद ईरानियों ने बेबीलोनिया पर अपना अधिकार जमा लिया।

2. शासन व्यवस्था (System of Administration) – इस सभ्यता में देवता वास्तविक सम्राट माने जाते थे और सम्राट उनके प्रतिनिधि के रूप में करते थे। वे निरंकुश शासक थे। पुरोहित, सामन्त तथा धनी वर्ग के लोग उनके परामर्शदाता होते थे । साम्राज्य कई प्रान्तों में विभक्त था, जिनके अधिकारी राजा के कमी होते थे । प्रजा पालन व न्याय करना राजा के प्रमुख कार्य माने जाते थे ।

3. सामाजिक जीवन (Social life) – बेबीलोनियाका समाज तीन वर्गों में बंटा हुआ था। उच्च वर्ग (अमेतू) में पुरोहित, सामन्त आदि आते थे। मध्यम वर्ग (मुशकितु) में व्यापारी, मजदूर तथा कृषक आदि शामिल थे। निम्न वर्ग में दालों और युद्ध बन्दियों को रखा गया था। इस समय बालों की दशा बड़ो शोचनीय थी ।

समाज में स्त्रियों की दशा काफी अच्छी थी और राज्य की ओर से उन्हें विशेष अधिकार प्राप्त थे । उन्हें सम्पत्ति रखने व व्यवसाय करने की पूरी स्वतंत्रता थी। इस समय विवाह एक कानूनी बन्धन बन गया था । साधारणतया पुरुष एक ही स्त्री से विवाह करता था परन्तु समाज में बहु विवाह प्रथा भी प्रचलित थी। विधवाओ को पुनः विवाह करने का और विवाहित स्त्रियों को तलाक लेने का अधिकार प्राप्त था । इनका भोजन सादा था। ये लोग मांस का कम प्रयोग करते थे।

4. आर्थिक जोवन (Economic life)- यहाँ के लोगों के मुख्य व्यवसाय कृषि, पशुपालन, व्यापार, कुटीर तथा वस्तु निर्माण थे । यहाँ की उपजाऊ भूमि में गेहूँ, खजूर, अंगूर तथा जैतुन, आदि की खेती होती थी। सिचाई के लिये बड़े-बड़े तालाबों तथा नहरें बनायी जाती थीं। यहाँ के निवासी या कपड़ा बुनने बर्तन बनाने आभूषण बनाने तथा कांसे के औजार बनाने में बड़े कुशल थे। इनका व्यापार पश्चिमी एशिया के देशों के साथ होता था। मीना (Mine) और शैकल (Shakel) उनके प्रमुख नाप-तोल के साधन थे । वस्तुनियम के साथ ही चांदी के डलों को भी के रूप मुद्रा में प्रयोग किया जाता था। इस समय सूद प्रथा भी प्रचलित थी।

5. धार्मिक जीवन (Religious Life) – बेबीलोनिया के लोग प्रकृति पूजक व सह देवतावादी थे । जस पृथ्वी तथा आकाया के अतिरिक्त ये लोग सूर्य, वायु आदि देवी-देवताओं की पूजा करते थे । मादुं क (Marduk) इनका प्रमुख देवता था। इस समय पशु बलि जानू-टोना, मुहूर्त निकालने की प्रथा तथा भेंट देने की प्रथा आदि प्रचलित थी। पुरोहित वर्ग को समाज में वड़ा मान-सम्मान मिलता था।

6. कलाओं का विकास (Growth of Arts ) – इस सभ्यता के लोग कच्ची व पक्की ईंटों से सुन्दर मकान बनाते थे । इनके निर्माण में स्तम्भों, मीनारों, वाटों तथा मेहराबों का अधिक प्रयोग होता था। बेबीलोनियः नगर के चारों ओर जल से भरी बाइयां बनी हुई थीं और घर कोठे की दीवार 200 हाथ ऊंची तथा 50 हाय बाड़ी थी। इसमें पीतल के 200 दरवाजे थे। नगर के बीच में राजा का महल व कार्यालय बने थे । यहाँ बु तथा मन्दिर जिनकी ऊंचाई 208 फुट थी, बड़े प्रसिद्ध थे ।

इस समय कुछ भारी व बड़े आकार की मूर्तियों का निर्माण भी हुआ। चित्रकला भी अपने विकास पर था। यहाँ के लोग पशु, पक्षियों व धर्म सम्बन्धी चित्र अधिक बनाते थे। इस समय कपड़ा बुनने व आभूषण बनाने का कला भी उन्नति पर थी। संगीत के क्षेत्र में यहाँ के लोगों ने ढोल, तम्बूरा, सारंगी तथा बांसुरी आदि साजो का आविष्कार कर लिया था। इस समय के बने हुए ‘झूलते हुये जान’ (Hanging Gardens) आज संसार में सात आश्चर्यों में गिने जाते हैं। इस समय फर्नीचर बनाने व मुद्रण वाला भी विकसित हो चुकी थी ।

7. लेखन कला (Art of writing ) – सुमेरियन की भांति इस सभ्यता में भी प्लेटों पर कीलक विधि लिखने का रिवाज था । प्लेटों के भंडार इस सभ्यता के विषय में काफी जानकारी देते हैं।

8. शिक्षा तथा साहित्य (Education and Literature) – बेबीलोनिया में शिक्षा को विशेष महत्व दिया जाता था। शिक्षा के लिए विशेष पाठशालाओं का प्रबन्ध था, जहाँ लड़के व लड़कियाँ दोनों पढ़ते थे। प्रत्येक बड़े मन्दिर में एक स्कूल होता था। 1884 ई० में यहाँ की खुदाई से एक स्कूल के खण्डहर मिले हैं। इस समय सुन्दर लेख पर विशेष जोर दिया जाता था।

इस सभ्यता का साहित्य उच्चकोटि का तो नहीं था, फिर भी साहित्य का काफी विकास हुआ था । साहित्य अधिकतर धर्म से सम्बन्धित या कहानी, कविताओं, उपदेश तथा महाकाव्यों को लिखने का रिवाज था । महाकाव्यों में गिल्लमेश काव्य (Epic of Gilgamesh) सबसे प्रसिद्ध था। बेबीलोनिया में अनेक शिक्षात्रव कहावत प्रचलित थी। जिनमें मूल सबसे बड़ी बीमारी हैं, भूना और देवयं का परित्याग करों’; अपने से बड़ों के हितों का सदा ध्यान रखो नादि मुख्य थीं और सिप्पा की खुदाई में एक पुस्तकालय मिला है, जिसमें सीस हजार प्लेटें सुरक्षित थी।

9. विज्ञान, खगोल शास्त्र और व्योतिष (Science, Astronomy and Pomestry ) गणित के क्षेत्र में बेबीलोनिया के लोगों ने एक, बस और सौ के लिए विभिन्न चिन्हों का आविष्कार कर रखा था । एक का चिन्ह दो बार लिखने से 2 और नौ बार लिखने से 9 बन जाता था । उन्होंने पहाड़े भी बना रखे थे और वृत्त को भी 360 अंशों में बाँट रखा था।

बेबीलोनिया के प्रत्येक नगर में एक बेवशासा स्थापित थी। 2000 ईसा पूर्व तक वे लगभग सभी ग्रहों का स्थान निर्धारित कर चुके थे और वेधशालाओं से ग्रहों की गतियों का निरीक्षण किया करते थे। इन लोगों ने भी वर्ष को 12 महीनों में, महीने को 30 दिनों में, दिन को 24 घन्टों में, चन्टे को 60 मिनटों में और मिनट को 60 सेकण्डों में बांट रखा था। ये लोग जल व धूप घड़ी का आविष्कार भी कर चुके थे।

बेबीलोनिया के प्रत्येक नगर में एक बेवशासा स्थापित थी। 2000 ईसा पूर्व तक वे लगभग सभी ग्रहों का स्थान निर्धारित कर चुके थे और वेधशालाओं से ग्रहों की गतियों का निरीक्षण किया करते थे। इन लोगों ने भी वर्ष को 12 महीनों में, महीने को 30 दिनों में, दिन को 24 घन्टों में, चन्टे को 60 मिनटों में और मिनट को 60 सेकण्डों में बांट रखा था। ये लोग जल व धूप घड़ी का आविष्कार भी कर चुके थे।

बेबीलोनिया के निवासी चिकित्सा शास्त्र के क्षेत्र में भी काफी उन्नति कर चुके थे। उन्हें अनेक रोगों और उनके इलाज के लिए विभिन्न प्रकार की औषधियों का ज्ञान था प्रकार की औषधियों का ज्ञान था।

10. सभ्यता का महत्व व बेन (Significance and Legacy of the Civilization) विश्व के इतिहास में बेबीलोनिया की सभ्यता का विशेष महत्व है। एडगर त्येन (Edgar Swain) के अनुसार- “दक्षिण-पश्चिम एशिया की बहुत सी सभ्यतायें और यहाँ तक कि यूनान की सभ्यता भी बेबीलोनिया के लोगों की बहुत आभारी हैं। उन्होंने भविष्य का विचार किये बिना अपने अतीत का अध्ययन किया। उन्होंने न केवल अपनी वरन् दूसरों की कहानियां को भी सुरक्षित रखा। उनके आलोचनात्मक निरीक्षण के अधीन विज्ञान ने अपना जीवन प्रारम्भ किया। उन्होंने लम्बाई-चौड़ाई, समय और तोल के मापने के लिए पैमाने बनाये। साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने महाकाव्य, प्रायश्चित गीत, कहानियां और कहावतों का लिखना प्रारम्भ किया। उन्होंने गणित, खगोल विद्या, पुरातत्व विज्ञान, इतिहास, औषधि विज्ञान, व्याकरण, शब्द कोष और दर्शन शास्त्र की नींव रखी। निसन्देह इन लोगों ने ज्ञान के समुद्र पर कई नये कार्य खोज निकाले, जिनके विषय में पहले कोई ज्ञान नहीं था। उनके द्वारा स्थापित किए गए प्रकाश स्तम्भ सदियों तक विद्वानों का मार्ग दर्शन करते रहे।

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